
जीवन में अर्थ और रंग व रस तभी आता है जब आप जीवन को जीते हैं, जीवन के हर मोड़ पर खुश होना सीखते हैं और एक निर्मल खुशी को लेकर जीते हैं तो आप अकेले ही खुश नहीं होते अपने साथ अपने लोगों को लेकर खुश होते हैं और आपकी खुशी में अन्य लोगों की खुशी भी शामिल हो जाती है। इसीलिए वे सारे लोग जो जीवन के छोटे छोटे प्रसंग को खुशी के साथ जीते हैं, अपनी खुशी में औरों को शामिल करते चलते हैं उनके पास खुशियां भी दौड़ी चली आती है और जो मुंह फुलाकर बैठे रहते हैं वे बैठे ही रह जाते हैं। ऐसे लोगों का कोई भी कुछ नहीं कर पाता।
– विवेक कुमार मिश्र

प्रसन्नता मन की दशा होती है। जरूरी नहीं कि हर समय हर कोई प्रसन्न दिखे या प्रसन्न रहें, हो सकता है कि समय और परिस्थिति के हिसाब से वह प्रसन्न न रह पाता हों पर यह भी ध्यान देने की बात है कि जब सब लोग प्रसन्न हों तो आपको भी प्रसन्न रहना चाहिए। कई लोग इस तरह के भी होते हैं कि चार लोग किसी बात से खुश हैं तो वे अपना अलग मत रखने के लिए ही दुःखी हो जायेंगे और बिना बात के ऐसे दुःखी दिखेंगे कि सारा संकट उन्हीं के उपर आ गया हों जबकि दुःख उनका है ही नहीं और जिस तरह से दुःखी दिख रहे हैं उसके पीछे जो हेतु है वह यह कि और खुश हैं इसलिए वे दुःखी होकर एक नई राह पर चलने का दिखावा कर रहे हैं। ऐसे लोगों से दुःख भी दुःखी रहता है और वह भी इनसे दूर ही रहता है कि जब प्रसन्नता के समय में इसका यह हाल है तो दुःख के समय यह क्या करेगा। कैसे अपने को और अपनी दुनिया को कंट्रोल करेगा । फिर ऐसे लोग अक्सर अकेले में अलग थलग पड़े मिलते हैं। यह भी साफ है कि दुनिया रहने के लिए मिली है और जब तक आप खुश होकर नहीं रहते जब तक दुनिया को खुशी खुशी नहीं जीते तब तक दुनिया का कोई मतलब ही नहीं। इसलिए वे सारे लोग सही होते हैं जो कैसी भी स्थिति क्यों न हों आराम से रहते हैं और धैर्य के साथ हर तरह के संकट को दूर करते हैं। आपके चीखने चिल्लाने से कोई संकट दूर नहीं होता पर जब आप एक एक कर धैर्य से समस्या का समाधान करते चलते हैं तो समस्या दूर भी होती है और संकट से लड़ने का हुनर भी मिलता है। यहां कौन है जो पूरी तरह से संतुष्ट और आनंद में है। सबके पास एक न एक हैरानी परेशानी है और इस हैरानी परेशानी के पुल पर से सभी गुजरते हैं और जिंदगी के लिए एक संभावना भरी दुनिया खोज कर लाते हैं। बहुतों का तो यहां तक कहना होता है कि आपदाएं हमारी परीक्षा लेने आती हैं और इस परीक्षा को पास करना ही सच्चे अर्थों में जीवन धर्म होता है। इस बिंदु पर आकर जीवन की रचनात्मकता ही आदमी को अर्थवान बनाती है।
जीवन में अर्थ और रंग व रस तभी आता है जब आप जीवन को जीते हैं, जीवन के हर मोड़ पर खुश होना सीखते हैं और एक निर्मल खुशी को लेकर जीते हैं तो आप अकेले ही खुश नहीं होते अपने साथ अपने लोगों को लेकर खुश होते हैं और आपकी खुशी में अन्य लोगों की खुशी भी शामिल हो जाती है। इसीलिए वे सारे लोग जो जीवन के छोटे छोटे प्रसंग को खुशी के साथ जीते हैं, अपनी खुशी में औरों को शामिल करते चलते हैं उनके पास खुशियां भी दौड़ी चली आती है और जो मुंह फुलाकर बैठे रहते हैं वे बैठे ही रह जाते हैं। ऐसे लोगों का कोई भी कुछ नहीं कर पाता । इन्हें पूरी दुनिया भी मिल जाये तो किसी और लोक के लिए दुःखी हो जायेंगे। इन्हें कोई भी खुश नहीं कर सकता। ये मन से खुश नहीं होते, इनकी खुशी भौतिक पदार्थों के साथ होती है और यह भी सच है कि पदार्थ क्षणिक खुशी ही दे सकते हैं। जैसे ही पदार्थ और वह कारक बल खत्म होता इनकी खुशियां भी खत्म हो जाती। आजकल जो भी सोशल स्टडी हो रही है उसमें मनुष्य के स्वभाव को सबसे पहले जांचा और परखा जा रहा है। यह बराबर से देखने में आ रहा है कि आप अपने स्वभाव का इलाज नहीं करा सकते, मन की जो बीमारी है वह मन में ही जड़ीभूत होती रहती है और एक दिन यहीं मन सबसे बड़े बवाल का तनाव का कारण बन जाता है। इसके पीछे का कारण यहीं है कि आप मन से खुश नहीं हैं और आपकी ग्रंथि इतनी कटुता से भर गई है कि जब दुनिया में सही ढ़ंग से रहने की बात आती है जब सही आचरण की बात आती है तो आप पता नहीं किस दुनिया से तनाव को लेकर जीने लगते हैं और यहीं तनाव अनावश्यक खतरनाक बीमारियों को जन्म देती हैं। बहुत सारे लोग ठीक ठीक दिखते हैं फिर एक दिन पता चलता है कि वे कहीं जा रहे थे और गिर गये अब यह जो गिरना है उसका समय तो वे नोट करके बैठे नहीं थे और न ही इसके लिए तैयार थे। यह स्थिति जब आती है तो आदमी पछतावा करता है कि यह नहीं कर पाया और वह नहीं कर पाया पर अब पछताने से क्या होगा जब समय था जब हंसते खेलते दुनिया को जिंदादिली से जी सकते थे तब तो तनाव में समय निकाला बिना बात के दुःख मनाया और दुःख की चादर ओढ़ कर सो रहे पर इससे हासिल तो कुछ नहीं हुआ। इसीलिए यह कहा जाता है कि जब तक समय है तब तक अच्छे से जीवन को जीने में लगाना चाहिए। हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि हम स्वयं खुश रहे और औरों को भी हमारी वजह से खुशी मिले। यह खुशी किसी भी दुकान पर नहीं मिलती न ही किसी शोरूम में रखी हुई है कि आप जाएं और उठा लाएं । यह तो आपके भीतर है और आपको मन से खुश होने का हुनर पालना होगा तभी आप इस दुनिया में कुछ बेहतर कर पायेंगे। कहने का मतलब यह है कि सामान्य स्थिति में बहुत सारे लोग प्रसन्न होते हैं और होना भी चाहिए।
कामायनी में जयशंकर प्रसाद ने श्रद्धा के मुख से कहलवाया है कि –
‘औरों को हंसते देखो मनु,
हंसो और सुख पाओ ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो
सबको सुखी बनाओ।।’
औरों को खुश होते देखना और स्वयं खुश होने की जो सीख है वहीं सबसे बड़ी मानवता है। यह मानवीय मूल्य है कि हमें अपनी खुशी के साथ साथ औरों की खुशी और औरों की दुनिया को भी देखना होता है और अपना विस्तार करना होता है। मनुष्यता विस्तारित होती है और यही पर जीवन का संसार का सुख और वह संकल्प होता है जिसमें हम केवल अपने लिए नहीं औरों के लिए जीते हैं।
प्रसन्नता एक सद्गुण की तरह है वह आपके पूरे जीवन को, परिवार को, समाज को एक साथ प्रभावित करता है। प्रसन्न होने में कुछ लगता नहीं पर बहुत सारे लोग प्रसन्न होते ही नहीं। अनायास ही मुंह फुलाकर घूमते रहते हैं। उनके मुंह फुलाकर घूमने से किसी को कुछ फर्क भी नहीं पड़ता पर ऐसे लोग खुश होने की जगह नाराजगी जाहिर करने में ही अपना सब कुछ दांव पर लगा कर घूमते रहते हैं। मान लीजिए कि आप किसी बात से, किसी संदर्भ से खुश नहीं हैं कोई बात नहीं दुनिया में बहुत सारी बातें ऐसी होती रहती हैं जिससे कोई भी खुश नहीं होता पर अपने मन को तो मत मार कर रखिए। यदि आप खुश नहीं रहते हैं तो आप मन को मार रहे हैं और यह भी सत्य है कि मन को मारने से आदमी की पूरी सेहत गिर जाती है। यदि आप स्वभाव से खुश हैं तो विपरीत परिस्थितियों में भी आपका कुछ नहीं बिगड़ता और बड़े आराम से आदमी इस संसार को जीने लगता है। यह जो दुनिया है वह जीने के लिए मिली है, खुश होकर जब मन से अपना हर कार्य संपादित करते हैं तो सीधी सी बात है कि कोई मुश्किल नहीं आती और आदमी हर हालात को अपने ढ़ंग से हैंडल कर लेता है। आदमी का सबसे बड़ा मित्र उसका धैर्य है, धैर्य को अपने साथ लेकर चलते रहिए और बगल की जेब में विवेक को भी रखते चलें यदि विवेक नहीं है तो फिर कितने भी तर्क करते रहे कुछ होने वाला नहीं है। धैर्य, लगन, बुद्धि विवेक ही संसार को संसार की तरह समझ कर जीने में आदमी की मदद करते हैं।
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