आर्थिक कामयाबी का मॉडल बांग्लादेश अब खाई की ओर

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-सुनील कुमार Sunil Kumar

पिछले बरस सत्तापलट के बाद बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार वहां की अर्थव्यवस्था को संभाल नहीं पा रही है, जबकि एक अर्थशास्त्री मो.युनूस सरकार के मुखिया हैं, और बिना ओहदे के वे प्रधानमंत्री की तरह सब कुछ देख रहे हैं। जो टेक्सटाइल उद्योग बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बना हुआ था, वह एकदम से चरमरा गया है, पूरी दुनिया की दर्जनों बड़े-बड़े ब्रांड के कपड़ों, जूतों, और खेल के सामानों की सिलाई बांग्लादेश में होती थी, और अब वह सिलसिला खतरे में पड़ गया है। यह उद्योग अकेला इस छोटे से देश में 40 लाख से अधिक कामगारों को रोजगार दे रहा था, और करीब 2 करोड़ लोग इससे जुड़े हुए दूसरे रोजगारों में लगे हुए थे। अब हालत यह है कि वहां लाखों लोगों का काम छूट रहा है, क्योंकि शेख हसीना सरकार के हटा दिए जाने के बाद 7 महीने में ही करीब डेढ़ सौ सिलाई कारखाने बंद हो चुके हैं, और मजदूर रमजान और ईद के इस मौके पर भी बिना मजदूरी पाए हुए बेरोजगार हो चुका हैं, या बेरोजगारी का खतरा झेल रहे हैं। देश बड़ी आर्थिक मंदी से गुजर रहा है, राजनीतिक अस्थिरता का शिकार है, धर्मान्ध और साम्प्रदायिक संगठन देश के राज-काज पर हावी हैं, और राजनीतिक ब दले की भावना इतनी अधिक है कि शेख हसीना के समर्थकों और सहयोगियों के कारखानों को घोषित-अघोषित रूप से बंद करवा दिया गया है। बांग्लादेश का सिलाई उद्योग ऐसा था जिसमें काम सीखी हुई महिलाओं का अनुपात सबसे बड़ा था, लेकिन झंझावात से गुजर रहे इस देश में आज सब कुछ चौपट हो गया दिख रहा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को हटाते समय लोगों को बड़े सुनहरे सपने दिख रहे थे, वो तमाम अब धूल-मिट्टी में मिल गए हैं।

एक तो पूरी दुनिया ट्रम्प नाम के बवंडर को झेल रही है, लोगों की आंखों में धूल भर गई है, और किसी को भविष्य दिखाई नहीं पड़ रहा है। ऐसे में कोई देश अगर इस वैश्विक अस्थिरता से परे अपनी घरेलू अस्थिरता को भी झेल रहा है, तो उस पर दोहरी मार पड़ रही है। दुनिया का दर्जी बना हुआ बांग्लादेश अभी दो-चार बरस पहले ही प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत से आगे निकल गया था, उसे सर्विस सेक्टर की कामयाबी की एक बड़ी शानदार मिसाल माना जा रहा था, और आज सब कुछ चौपट हो गया है। इस नौबत से न सिर्फ वहां की सरकार को, बल्कि पूरी दुनिया को बहुत कुछ सीखने का एक मौका मिल रहा है।

शेख हसीना की सरकार एक निर्वाचित सरकार थी, उसमें चाहे दर्जनों खामियां रही हों, वह एक चुनाव प्रक्रिया से गुजरकर सत्ता पर पहुंची थी। लेकिन उन्हें हटाना सडक़ के एक आंदोलन के रास्ते हुआ, बांग्लादेश की बहुत सी ताकतें मिल गई थीं, जो कि किसी भी कीमत पर हसीना को हटाना चाहती थीं, और उन्हें जान बचाकर फौजी हेलीकॉप्टर में भारत आकर शरण लेनी पड़ी थी। किसी भी देश के लिए वे नजारे अच्छे नहीं थे जब वहां के आंदोलनकारी प्रधानमंत्री आवास में घुसकर उनके अंत:वस्त्र हवा में लहराते हुए घूम रहे थे। बांग्लादेश शेख हसीना के पहले भी फौजी हुकूमत भी झेल चुका है, और नेताओं पर तरह-तरह के मुकदमे भी झेल चुका है। इसलिए शेख हसीना को अगर किसी चुनाव में हटाया जाता, या किसी अदालती फैसले से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती, तो भी ठीक था। उन्हें सडक़ के एक आंदोलन के रास्ते हटाया गया, और वहां न किसी विकल्प का कोई इंतजाम था, और न ही किसी और तरह के शासनतंत्र की तैयारी थी। ऐसे में नोबल शांति पुरस्कार प्राप्त मो.युनूस एक बड़ी अप्रिय स्थिति और कड़ी चुनौती में फंस गए हैं।

फिर इस मुसीबत में मानो और इजाफा करने के लिए बांग्लादेश में आज सत्तापलट के दिन से ही जो भारतविरोधी और हिन्दूविरोधी भावनाएं हिंसा कर रही हैं, वह बांग्लादेश के लिए आत्मघाती है। वहां तो हिन्दू और भारतीय मूल के लोग लाखों में होंगे, लेकिन भारत में बांग्लादेशी लोग करोड़ों में हैं। यह तो भारत में अभी तनाव काबू में है, वरना बांग्लादेश के जवाब में अगर भारत में हिंसा होने लगती, तो क्या होता? आज की वहां की सत्ता अनुभवहीन है, और उसे यह समझ भी नहीं पड़ रहा है कि मददगार बनकर खड़े हुए चीन, और बांग्लादेश का राष्ट्र निर्माण करने वाले हिन्दुस्तान के बीच किस तरह से फर्क किया जाए। आज हालत यह है कि बांग्लादेश पाकिस्तान के करीब जा रहा है, जिससे अलग होकर 1971 में वह बना था, और भारत की मदद से बना था। आज बांग्लादेश की घरेलू राजनीति में भारत को लेकर जो तनातनी चल रही है, वह भी उसके खुद के लिए नुकसानदेह है। उसका सबसे बड़ा पड़ोसी, और मददगार-दोस्त आज उसकी घरेलू राजनीति को लेकर कई तरह की तोहमतें झेल रहा है, जबकि इस आधी सदी में भारत ने अपने सीने पर बड़ा बोझ झेलते हुए भी करोड़ों बांग्लादेशियों को अपने देश में जगह दी, और कई करोड़ तो नागरिकता भी पा चुके हैं, या कम से कम काम-धंधे से लगे हुए हैं।

खैर, दूसरे देशों के साथ रिश्तों की बातों को पल भर के लिए किनारे भी कर दें, तो बांग्लादेश आज घरेलू मोर्चे पर एक कामयाब अर्थव्यवस्था से एक चौपट अर्थव्यवस्था तक कुछ महीनों में ही पहुंच गया है, जो कि उसके लिए एक राजनीतिक खतरे की बात भी है। कब वहां की जनता बाहुबल से एक और सत्तापलट सोचने लगे, इसका कोई ठिकाना नहीं है, और वहां की हवा में ऐसी तोहमतें भी तैर रही हैं कि वहां की फौज इस मौजूदा अंतरिम सरकार को पलटाना चाहती है। हम राजनीतिक नफरत और साम्प्रदायिकता से देश की हवा में जहर घोलने का जो नुकसान बांग्लादेश में देख रहे हैं, उससे वह देश आसानी से नहीं उबर पाएगा। पिछली सरकार के करीबी या पसंदीदा कहे जाने वाले लोग अगर बांग्लादेश में कारखानेदार हैं, तो सत्तापलट होने के बाद उन कारखानों को बंद करवा देना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने सरीखा काम है। हमने अभी-अभी पाकिस्तान को कंगाल होते देखा है, श्रीलंका को कंगाल होते देखा है, म्यांमार खत्म हो चुका है, और अब लगता है कि बांग्लादेश की बारी है। अभी हम बांग्लादेश से भारत पर पडऩे वाले फर्क की चर्चा करना नहीं चाहते, खुद बांग्लादेश की फिक्र पहले कर रहे हैं। इस देश को यह समझना होगा कि अल्पसंख्यकों के साथ हिंसा करके, भारतीय मूल के लोगों को भगाने की बातें करके, राजनीतिक कटुता से कारखाने बंद करवाकर बांग्लादेश की सरकार देश को गहरी खाई में ही ले जा रही है। हर देश को ऐसी नौबत के सबक समझने चाहिए।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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