बिरयानी को पीछे छोड़ आईटी में आगे कैसे बढ़ा हैदराबाद

अगर आप देश के किसी छोटे-बड़े शहर या महानगर में रहते है, तब आपको मालूम होगा कि आपके अड़ोस-पड़ोस के कुछ नौजवान नौकरी करने के लिए हैदराबाद चले गए हैं। यह भी मुमकिन है कि आपके अपने घर-परिवार से भी कुछ बच्चे अब तक चारमीनार और बिरयानी के लिए मशहूर हैदराबाद शहर की किसी टेक या फार्मा सेक्टर की कंपनी में जाकर काम करने लगे हों।

-डॉ० आर.के.सिन्हा

अगर आप देश के किसी छोटे-बड़े शहर या महानगर में रहते है, तब आपको मालूम होगा कि आपके अड़ोस-पड़ोस के कुछ नौजवान नौकरी करने के लिए हैदराबाद भी चले गए हैं। यह भी मुमकिन है कि आपके अपने घर-परिवार से भी कुछ बच्चे अब तक चारमीनार और बिरयानी के लिए मशहूर हैदराबाद शहर की किसी टेक या फार्मा सेक्टर की कंपनी में जाकर काम करने लगे हों। दरअसल हैदराबाद गुजरे बीस-पच्चीस सालों में दुनिया के आई टे सेक्टर के नक्शे के केंद्रबिंदु पर आ गया है। शायद ही दुनिया की कोई मशहूर आईटी कंपनी हो, जिसके ऑफिस तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में न हो ।

अगर आज हैदराबाद इस मुकाम पर पहुंचा है, तो इसका श्रेय़ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को तो देना ही होगा। वरिष्ठ लेखक दिनेश सी. शर्मा ने अपनी हाल ही में प्रकाशित किताब बियॉन्ड बिरयानी: द मेकिंग ऑफ ए ग्लोबलाइज्ड हैदराबाद ( (बिरयानी से आगे: एक वैश्वीकृत हैदराबाद का निर्माण) में हैदराबाद के तेजी से बदले चेहरे की कहानी बयां की है। चंद्रबाबू नायडू ने आंध्र प्रदेश में अपने पूर्ववर्तियों द्वारा रखी गई ठोस वैज्ञानिक अनुसंधान और आर्थिक नींव का लाभ उठाया। हैदराबाद के आईटी पावर हाउस बनने से पहले ही   यहां वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएलएसआईआर) की तरफ से प्रयोगशालाएं स्थापित हो चुकी थीं। यहां से योग्य वैज्ञानिक देश-दुनिया को मिल रहे थे। इसी तरह से यहां इंडियन ड्रग्ज एंड   फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ( आईडीपीएल)

और इलेक्ट्रानिक्स कारपोरेशन आफ इंण्डिया लिमिटेड (ईसीआईएल) जैसे संस्थान भी पहले से थे। इनका लक्ष्य अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाना था। इन दोनों सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों   ने तकनीकी जनशक्ति का एक बड़ा आधारसेतु विकसित कर दिया था, जिसने उद्यमियों के लिए नए क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए आधार तैयार किया।

देश में 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण की हवा बहने लगी। लाइसेंस परमिट कोटा राज का बड़ी मुश्किल से ही सही , पर धीरे- धीरे अंत हुआ। इसके बाद 1993 में कर्नाटक सरकार ने दूसरे प्रौद्योगिकी एन्क्लेव के रूप में सूचना प्रौद्योगिकी पार्क बनाने के लिए टाटा समूह और सिंगापुर स्थित कंपनियों को अपने साथ जोड़ा।  उसे सफलता भी मिली। तब हैदराबाद में ऐसा कोई तकनीकी केंद्र विकसित नहीं हो पाया था।

अब चंद्रबाबू नायडू 1995 में आंध्र प्रदेश के  मुख्यमंत्री बने। वह हैदराबाद को सूचना प्रौद्योगिकी में बैंगलुरू को हराना चाहते थे। उन्होंने अपने सरकारी अफसरों को साफ कह दिया था कि हैदराबाद को सूचना प्रौद्योगिकी में लंबी- ऊंची छलांग लगानी है। हैदराबाद के पास इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सब कुछ था: तकनीकी जनशक्ति का एक बड़ा आधार,  प्रौद्योगिकी क्षेत्र में  काम कर रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और अनुसंधान संस्थानों और उद्यमियों की एक श्रृंखला , जो जोखिम उठाने को तैयार थी। लेकिन , हैदराबाद में बुनियादी ढाँचे का अभाव था जैसे एक प्रौद्योगिकी एन्क्लेव, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति, अच्छी सड़कों का जाल और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा। चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने इन सब क्षेत्रों पर एक साथ काम किया और हैदराबाद की भारत और भारत से बाहर निवेशकों के बीच गंभीरता से मार्केटिंग भी की।

उन्होंने विज्ञान पार्क मॉडल को अपनाया, जिसे पश्चिम के साथ-साथ दक्षिण कोरिया, ताइवान और मलेशिया जैसे पूर्वी एशियाई देशों में प्रौद्योगिकी आधारित आर्थिक विकास और विकास के मॉडल के रूप में सफलतापूर्वक आजमाया गया था।

बेशक, चंद्रबाबू नायडू ने साबित कर दिखाया कि अगर आप में इच्छा शक्ति हो तो आप अपने प्रदेश या देश की किस्मत बदल सकते हैं। वह पहली बार लगभग तीन दशक पहले अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने अपने ससुर एनटी रामाराव को सत्ता से बेदखल कर दिया था। चंद्रबाबू नायडू ने अपनी इमेज एक उद्योग-समर्थक और प्रौद्योगिकी-समर्थक वाले नेता की बनाई । उन्होंने हैदराबाद को आईटी हब के रूप में स्थापित करने में दिन-रात की मेहनत की।   राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद वे माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स से मिले। उस मुलाकात के बाद से ही हैदराबाद बदलने लगा। वहां दुनिया भर की चोटी की आईटी कंपनियों ने अरबों रुपए का निवेश किया।   बिल गेट्स किसी काम के लिए राजधानी दिल्ली में थे। चंद्रबाबू को पता चला कि गेट्स राजधानी में हैं। वह गेट्स से मिलने की कोशिश कर ही रहे ही थे। उनकी तरफ से अमेरिका एंबेसी के अधिकारियों से गुजारिश की गई कि उनकी ( नायडू)  गेट्स से मुलाकात करवा दी जाए। उन्हें बताया गया कि गेट्स बहुत व्यस्त हैं, और अगर वे सच में उनसे मिलने को इच्छुक हैं तो वे शाम को एँबेसी में आयोजित पार्टी में शामिल हो जाएं। वहां गेट्स मिलेंगे। वहां तय समय पर नायडू पहुंच गए , गेट्स से मिलने। वहां दोनों मिले। नायडू ने एक लैपटॉप के माध्यम से गेट्स को प्रेंजटेशन दिया। इस तरह से प्रेजंटेशन देने वाले नायडू पहले भारत के नेता थे।  यह सब देखकर गेट्स काफी प्रभावित हुए। इसके बाद हैदराबाद में माइक्रोसॉफ्ट का विकास केंद्र स्थापित हुआ। उसके बाद तो हैदराबाद और आंध्र प्रदेश में दर्जनों आईटी कंपनियों ने तगड़ा निवेश किया।  खैर,हैदराबाद की बात होगी तो बिरयानी की चर्चा तो अवश्य ही होगी ही। दिनेश सी. शर्मा बियोंड बिरयानी में हैदराबादी बिरयानी की अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रियता को आर्थिक उदारीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण से जोड़कर देखते हैं।  पिछले साल जोमेटो से हरेक सेंकिड 3.19 बिरयानी के ऑर्डर  दिए गए। उधर स्विगी को हरेक सेंकिड 2.5 ऑर्डर मिले। इनकी कुल संख्या करोड़ों में है। इनमें सर्वाधिक ऑर्डर  हैदराबादी बिरयानी के लिए थे। बीते दो-तीन दशकों के दौरान हैदराबाद की टेक और फार्मा कंपनियों में काम करने के लिए देशभर से नौजवान पहुंचने लगे। इसी तरह से हैदाराबादी भी अपने शहर से कामकाज के सिलसिले में बाहर निकले। इस तरह की दो-तरफा आवाजाही से हैदराबादी बिरयानी लोकप्रिय होती गई और बिरयानी बेचने वालों की चांदी हो गई। बिरयानी समोसे की तरह, मध्य एशिया से भारत आई। कहा यह भी जाता है कि केरल का मालाबार वह इलाक़ा है जहां अरब व्यापारी सबसे पहले आए।वे अपने साथ बिरयानी भी लाए। बिरयानी अब हमारी हो चुकी है। हालांकि हैदराबादी बिरयानी के कद्रदान कहते हैं कि हैदराबादी बिरयानी के सामने मुरादाबादी, दिल्ली और मालाबर की बिरयानी को उन्नीस ही हैं। हैदराबादी बिरयानी में मसालेदार, पका हुआ चावल, मांस और नारियल और केसर का तड़का लगाया जाता है। अगर इसे कायदे से बनाए तो खाने वाले का पेट भर सकता है,पर नीयत नहीं। बहरहाल, हैदराबाद की पहचान अब सिर्फ बिरयानी भर से ही नहीं होती। हैदराबाद अब आई टी का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है ।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

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