
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान में बीजेपी की तिरंगा यात्रा जमीन पर सफल होती हुई दिखाई नहीं दे रही है, जबकि तीन दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाक सीमा के नजदीक बीकानेर आए थे और उन्होंने अपनी सभा में जोशीला भाषण देकर भाजपा तिरंगा यात्रा का भी जिक्र किया था और उपस्थित जन सेलाब मैं जोश भी भरा था। इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी की तिरंगा यात्रा में नेता तो नजर आते हैं मगर पार्टी के कार्यकर्ता कम ही नजर आते हैं और जनता तो दिखाई ही नहीं देती है। क्या राजस्थान के भाजपा के बड़े कद्दावर नेताओं के मन में पार्टी हाई कमान के प्रति उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का मलाल बरकरार है। शायद इसीलिए प्रदेश में भाजपा के कार्यक्रम जितने सफल होने चाहिए उतने सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं। राजस्थान में भाजपा की सरकार है और लोकसभा अध्यक्ष से लेकर देश के कानून मंत्री जैसे बड़े पदों पर राजस्थान के नेता मौजूद हैं। तिरंगा यात्रा में तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को भी देखा गया था मगर उस यात्रा में कार्यकर्ताओं की कमी और जनता नदारत देखी गई थी।
राजस्थान भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है। प्रदेश में जब भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती थी तब प्रदेश का मुख्यमंत्री राजपूत समुदाय से बनता आया है। 1977 में जब पहली बार गैर कांग्रेस की सरकार बनी तब राज्य के मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत बने और उसके बाद जब राज्य में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब भी राज्य के मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत बने। शेखावत के बाद यह सिलसिला जारी रहा और 2008 में शेखावत की जगह वसुंधरा राजे राज्य की पहली बार मुख्यमंत्री बनी। वह दो बार मुख्यमंत्री रहीं लेकिन तीसरी बार 2023 में भाजपा ने विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री की कुर्सी का फैसला पर्ची निकाल कर किया। बड़ी बात यह थी कि मुख्यमंत्री के लिए पर्ची राजपूत नेता देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने निकाली। शायद इसलिए क्योंकि राजस्थान का राजपूत नाराज ना हो और पर्ची राजपूत नेता की नहीं निकली पर्ची निकली पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा के नाम की। भजनलाल शर्मा भाजपा की तरफ से पहली बार गैर राजपूत समुदाय के मुख्यमंत्री बने।
राजस्थान में भाजपा के भीतर वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, देवी सिंह भाटी, राजेंद्र सिंह राठौड़, गजेंद्र सिंह खींवसर, दिया कुमारी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे बड़े कद्दावर नेता मौजूद हैं। इन नेताओं के दम पर राज्य में भाजपा भी मजबूत स्थिति में है मगर राजपूत नेताओं में से किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया इसका मलाल राजपूत समुदाय में राजस्थान के भीतर साफ नजर आता है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद भी अपनी सरकार का ना तो पुनर्गठन और ना ही राजनीतिक नियुक्तियां कर पा रहे हैं। यहां तक कि राज्य में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल भी नहीं कर पाए हैं। वसुंधरा राजे का प्रभाव पूरे राज्य में है। वहीं जोधपुर से सांसद केंद्रीय पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी प्रभावशाली नेता है, जिनका राजनीति प्रभाव प्रदेश की 36 कोमो में है। गजेंद्र सिंह शेखावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चाहते कार्यकर्ता भी हैं जिन्हें लगातार दूसरी बार केंद्र में मंत्री बनाया है। 23 मार्च को भाजपा के अंता से विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई है, इसका झटका भाजपा से अधिक वसुंधरा राजे को लगा होगा क्योंकि कंवरलाल मीणा वसुंधरा के खास सिपाहसालारों में से एक हैं। जो उनके संसदीय क्षेत्र झालावाड़ के अकलेरा विधानसभा सीट से हैं जो अंता विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने से पहले से अकलेरा से विधायक थे। झालावाड़ संसदीय क्षेत्र में मीना मतदाताओं की तादाद अधिक है जो भाजपा के पक्ष में अधिक मतदान करते हैं। यही वजह है कि झालावाड़ संसदीय क्षेत्र की सारी विधानसभा सीट वसुंधरा राजे के दम पर बीजेपी जीतती है और भाजपा झालावाड़ संसदीय क्षेत्र को लगातार जीत रही है। कंवरलाल मीणा समुदाय के बड़े नेता हैं। यही वजह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने अकलेरा की जगह अंता विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया। कंवरलाल मीणा ने कांग्रेस के राज्य के खनिज मंत्री प्रमोद जैन को शिकस्त देकर चुनाव जीता।
सवाल यह है कि राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा जोश भरने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की तिरंगा यात्रा सफल होती हुई नजर क्यों नहीं आ रही है। क्या राजपूत नेताओं में पार्टी हाई कमान द्वारा मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने का मलाल अभी भी बरकरार है। इसकी असल परीक्षा जब अंता विधानसभा का उपचुनाव होगा तब पता चलेगा। क्योंकि अंता विधानसभा क्षेत्र झालावाड़ संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है और झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से सांसद श्रीमती वसुंधरा राजै के पुत्र दुष्यंत हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)