
– विवेक कुमार मिश्र

आजकल तो सब बोगनवेलिया के दीवाने हो गए हैं । हों भी क्यों नहीं जिधर से निकलो उधर से ही बोगनवेलिया बुलाता सा दिखता है। हरे पेड़ से लेकर ठूंठ तक सब जगह बोगनवेलिया की ही महिमा है। जहां बोगनवेलिया आ जाता है फिर वही दिखता है फिर कुछ और नहीं दिखता। जिनके घरों पर बोगनवेलिया लग गया उनका न घर ही दिखता है न ही उनके लोग दिखते हैं। फिर तो लोग-बाग यही कहते मिल जाते हैं कि बोगनवेलिया वाला घर। उस घर का पता कोई मकान नंबर नहीं होता बस बोगनवेलिया वाला घर कह दीजिए पूरी पहचान दे देगा । यह उसके सुर्ख लाल रंग से लेकर अन्य चटक रंगों के कारण ही नहीं उसकी सहज उपस्थिति के कारण भी है। उसके लिए कोई देखरेख भी नहीं करनी पड़ती है। वह तो सहजता के साथ ही लग जाता है और कहीं भी आकार ले लेता है। धूप गर्मी किसी की परवाह नहीं बस खिलना और अपने रंग रूप के साथ बने रहना ही उसकी पहचान है जो सड़क पर, घरों में, पार्कों में और दीवारों से लेकर पेड़ों तक आजकल अपना जादू बिखेरा है। कहते हैं कि बोगनवेलिया का जलवा है।
बोगनवेलिया भी ऐसे सामने आ जाता है कि बस देखते देखते खो जाएं। रंग भी तरह तरह के जाफरानी बोगनवेलिया से लेकर जर्द पीले बोगनवेलिया और सफेद रंग के भी अलग अलग सेड से बोगनवेलिया ने सजा रखा है। कालेज के सामने से रेलवे स्टेशन वाली सड़क पर तो ऐसे ऐसे बोगनवेलिया हैं कि मानो लगता है कि पीपल से भी ऊंचे चलें जायेंगे। ऐसे बोगनवेलिया देखकर झाड़ी नहीं पेड़ का भी आभास होता है। आजकल हर डिवाइडर कनेर , बोगनवेलिया से ऐसे सजा हुआ दिखता है कि बस आप देखते ही रह जायेंगे कि हां बोगनवेलिया ने बुलाया है तो चलें बोगनवेलिया को देखते हैं। जिंदगी भी बोगनवेलिया सी ही होती है जो हर समय चहकती रहती है, खुशियों के रंग में खिलती है और आदमी इस बोगनवेलिया को बस जिंदगी समझ कर ही देखता रह जाता है। बोगनवेलिया खुद को रंगता है और औरों को भी रंग देता है। इधर होली का फागुन मौसम चल रहा है सब कुछ होली के भी रंग में रंग जाने के लिए बेताब सा है । होली, प्रकृति, बोगनवेलिया सब मिलकर रंगों का ही राज गाते रहते हैं। यह दुनिया भी इसी तरह रंगों के रंग से बोगनवेलिया की तरह खिलती रहे और इसके साथ कोटा तो मगन ही है । आप कहीं से कहीं होकर आ जाएं हर जगह बोगनवेलिया ही इंतज़ार करता मिलता है। यदि देखरेख हो तो ठीक न हो तो और ही मगन हो जाता है मन और बोगनवेलिया और आदमी । यदि मौका मिले तो बोगनवेलिया की छांव में चाय भी पी लें और दुनिया को रंग के साथ ही जीना सीख लें फिर दुनिया सुकून उसी तरह देती हुई दिखती है जैसे कि चाय और बोगनवेलिया के नजारे में मिलता है। अभी तो बोगनवेलिया के रंग ही बोल रहे हैं।