
-देवेंद्र यादव-

राजनीतिक और सोशल मीडिया के गलियारों में यह खबर सुनाई दे रही है कि कांग्रेस के सी वेणुगोपाल को बदलकर किसी अन्य नेता को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनाने पर विचार कर रही है। वेणुगोपाल को बदलकर जिस नेता को राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनाने की चर्चा सर्वाधिक है वह नाम राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सुनाई दे रहा है। वेणुगोपाल के स्थान पर जिस नेता के नाम की चर्चा राजनीतिक गालियारो और सोशल मीडिया में सर्वाधिक चर्चा हो रही है, उस नेता की राजनीतिक कार्य प्रणाली से समझदार राजनीतिक विश्लेषक और विशेषज्ञ समझ सकते हैं कि इस खबर में कितना दम है, क्योंकि राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव के खत्म होने और कांग्रेस के राजस्थान की सत्ता से बाहर होने के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई थी कि अब अशोक गहलोत का राजनीतिक भविष्य क्या होगा। इसका कारण राजस्थान में कांग्रेस ने अपनी सत्ता तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की महत्वाकांक्षा और है हठधर्मिता के कारण खोई थी। जब राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता थी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे तब कांग्रेस हाई कमान की इच्छा थी कि अशोक गहलोत राष्ट्रीय राजनीति में आएं और प्रदेश का मुख्यमंत्री किसी अन्य नेता को बनाएं मगर अशोक गहलोत अपनी जिद पर अड़े रहे और नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस 2023 का विधानसभा चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हो गई।
राजस्थान की सत्ता गंवाने के बाद लगातार खबर आने लगी कि अशोक गहलोत का राजनीतिक भविष्य क्या होगा। खबर यह भी सुनाई दी की पार्टी हाई कमान अशोक गहलोत को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देगा। मगर सवाल यह भी है जब पार्टी हाई कमान ने अशोक गहलोत से कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए कहा तब उन्होंने इसे क्यों ठुकरा दिया था बल्कि उनकी कैबिनेट के मंत्रियों ने कांग्रेस के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का अपमान भी किया था। पार्टी हाई कमान ने मल्लिकार्जुन खरगे को प्रभारी बनाकर कांग्रेस के विधायकों की राय शुमारी के लिए राजस्थान भेजा था तब गहलोत समर्थक विधायकों ने यह कहते हुए अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही रहेंगे। यदि गहलोत को हटाया तो तो हम विधायक पद से अपना इस्तीफा दे देंगे, और लगभग 90 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के पास अपना इस्तीफा भी पहुंचा दिया था।
पार्टी हाई कमान ने मुख्यमंत्री के पद से अशोक गहलोत को नहीं हटाया और ना ही अशोक गहलोत समर्थक विधायकों का इस्तीफा मंजूर किया। लेकिन कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी सत्ता को गंवा दिया। अब सवाल उठता है कि क्या पार्टी हाई कमान कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर एक बार फिर से अशोक गहलोत को केसी वेणुगोपाल की जगह नियुक्त कर देगा।
एक बात और जिसे शायद राजनीतिक पंडित भूल गए या उन्हें याद नहीं है, वेणुगोपाल कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री कैसे और कब बने थे, इसका भी बड़ा कनेक्शन राजस्थान ही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 100 विधानसभा सीट मिली थी तब पार्टी हाई कमान ने तब के कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री अहमद पटेल के कहने पर राजस्थान में मुख्यमंत्री बनाने के लिए प्रभारी के रूप में विधायकों से सलाह मशवरा लेने के लिए केसी वेणुगोपाल को राजस्थान पहुंचाया था। तब राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट थे। कांग्रेस ने उनकी अगुवाई में विधानसभा का चुनाव लड़ा था और सौ विधानसभा सीट जीती थी। मगर पार्टी हाई कमान ने प्रभारी वेणुगोपाल की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया। जिसका पहला इनाम अशोक गहलोत ने केसी वेणुगोपाल को राजस्थान से राज्यसभा में पहुंचाकर दिया। दूसरा इनाम अशोक गहलोत ने अहमद पटेल की मृत्यु के बाद वेणु गोपाल को कांग्रेस का राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनवा कर दिया। अहमद पटेल की मृत्यु के बाद अशोक गहलोत के सामने अपने राजनीतिक भविष्य का संकट गहराने लगा था क्योंकि गहलोत के सबसे बड़े राजनीतिक संकट मोचक अहमद पटेल थे और अहमद पटेल गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद नेता थे। अशोक गहलोत निश्चित रूप से भाग्यशाली भी हैं क्योंकि 2019 का लोकसभा चुनाव राहुल गांधी अमेठी से हार गए और केरल के वायनाड से चुनाव जीत गए। राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ना और जितना इसमें केसी वेणुगोपाल की बड़ी भूमिका रही थी, इसका फायदा राजनीतिक रूप से अशोक गहलोत ने उठाया। मगर अब खबर यह आ रही है कि वेणुगोपाल के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के पद पर अशोक गहलोत नजर क्यों गड़ा रहे हैं। यह पार्टी हाई कमान के लिए सबसे बड़ा सोचने का विषय है।
एक सवाल और कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय संगठन महामंत्री का पद राजनीतिक रूप से रास नहीं आया। अहमद पटेल जब कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री बने तब कांग्रेस 2014 में सत्ता से बाहर हो गई। तब से लेकर अब तक कांग्रेस सत्ता में नहीं आ पा रही है और कांग्रेस संगठन भी लगातार कमजोर हो गया। बल्कि यूं कहें कांग्रेस के मजबूत युवा नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा और अन्य दलों में शामिल हो गए। इस पर भी कांग्रेस हाई कमान को मंथन और चिंतन करना होगा और उसके बाद कांग्रेस के हाई कमान को अपना नया राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त करना होगा। संगठन में प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जो नियुक्तियां होती हैं उन नियुक्तियां की भनक ना तो गांधी परिवार को लगती है और ना ही पार्टी हाई कमान को होती है। यही नहीं जब राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों का चयन होता है इसकी भनक भी राहुल गांधी और गांधी परिवार को तब होती है जब कांग्रेस विधानसभा का चुनाव हार जाती है। ऐसे में राहुल गांधी और पार्टी हाई कमान को कांग्रेस का राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बनाने से पहले गहरा मंथन और चिंतन करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)