
-लोक उत्सव: परंपरा, उत्साह और समुदाय का संगम
-अखिलेश कुमार-

(पत्रकार एवं फोटोग्राफर)
कोटा के नान्ता गांव में इन दिनों में उत्सव की रंगीन छटा देखने को मिल रही है। यहाँ, गुर्जर समाज के आराध्य सतगुरु बक्शराम जी और दयाराम जी की समाधि पर मनाया जाने वाला वार्षिक “फुलेरी दूज उत्सव” न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत की ज्यों-त्यों जिवंतता भी दर्शाता है।

उत्सव का माहौल और सामुदायिक सहभागिता
गाँव में गुर्जर समाज के सभी घरों से “चौक पुराओ, मंगल गाओ” का उत्सव स्वर उठ रहा है। स्थानीय समुदाय के संत साधक और गुर्जर परिवार के सदस्य दूर-दराज से एकत्रित होकर इस पावन अवसर की तैयारियों में जुटे हैं। समाधि पर सजावट से लेकर विनायक स्थापना, बिंदोरी और कलश यात्रा तक, हर पहलू में परंपरा का अद्भुत संगम झलकता है। स्वागत गीत “म्हारा सतगुरु आगण आया, म्हे वारी जाऊं सा” के मधुर सुर न केवल भक्ति को दर्शाते हैं, बल्कि उत्सव के उल्लास को भी दोगुना कर देते हैं।

पारंपरिक कला और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तशिल्प
उत्सव की ख़ुशबू में एक अनोखी झलक मिलती है जब गांव के घर-घर में पारंपरिक मांडने से चौक सजा दिए जाते हैं। युवा समाज सेवी अर्जुन गुर्जर के घर के आंगन में देखा गया कि कैसे उनकी माता श्रीमती मोहन बाई अपने बचपन से सीखी गई मांडना कला को निभा रही हैं। अपनी पोती किंजल के साथ मिलकर, बिंदोरी का चित्रांकन करते हुए, कमल, चिड़िया और अन्य शुभ चिन्हों का अद्भुत संयोजन कर चौक को सजा रही हैं। यह न सिर्फ परंपरा का संरक्षण है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तशिल्प कौशल के हस्तांतरण का भी अद्भुत उदाहरण है।

आगामी रविवार को इस उत्सव की पूर्णाहुति होगी। यह आयोजन इस बात का प्रतीक है कि हमारे धार्मिक अनुष्ठान, लोक उत्सव और तीज-त्योहार भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। ये समारोह न केवल आस्था और भक्ति को प्रगाढ़ करते हैं, बल्कि समाज के हर वर्ग को एक साथ लाकर, जीवन में उत्साह और उमंग का संचार करते हैं।
इस प्रकार नान्ता गांव में मनाया जा रहा यह उत्सव परंपरा, संस्कृति और समुदाय की मिलीजुली शक्ति का एक अद्भुत प्रतिबिंब है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।