
-शैलेश पाण्डेय-
कोटा। देश के प्रमुख उद्योगपति सायरस मिस्त्री की नेशनल हाईवे पर कार दुर्घटना में मौत की देश दुनिया में खूब चर्चा हुई। आम जन से लेकर प्रशासकों और सरकार के मंत्रियों तक ने दुख जता दिया, सुरक्षा उपाय करने पर लम्बी चौड़ी बहसें हो गईं

लेकिन वास्तविकता यह है कि इस हादसे से कोई सबक लेने को तैयार नजर नहीं आता। सायरस मिस्त्री की मौत के बाद केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने भले ही कार में सवार सभी लोगों के लिए सीट बेल्ट अनिवार्य करने का संकल्प जता दिया हो।उन्होंने अपने कार्यकाल में सड़क परिवहन में सुधार के कई उपाय लागू करने, नेशनल हाईवे की स्थिति में सुधार, प्रति दिन हाईवे में 25 से 30 किलोमीटर की बढ़ोतरी जैसे कई सकारात्मक कदम उठाए जो प्रशंसनीय हैं लेकिन इसका स्याह पक्ष ज्यादा स्याह है। यानी उनके मंत्रालय के अधीन देश भर के हाईवे की बदतर हालत का अंदाजा लगाना हो तो आप कोटा से जयपुर के बीच नेशनल हाईवे 12 पर कार से सफर कर देख सकते हैं।

कोटा से जयपुर की दूरी मात्र 250 किलोमीटर है जिसे कार से सामान्य गति में पांच घंटे में तय किया जा सकता है। लेकिन पूरे रास्ते सड़कों पर मिलने वाले मवेशी, बगैर हेलमेट पहने और तीन-चार सवारी के साथ मोटर साइकिल दौड़ाते ग्रामीण, कहीं पर भी अचानक गांव की सड़क से हाईवे पर आ टपकते दुपहिया और ट्रेक्टर, बगैर देखे हाईवे को पार करते लोग बार-बार आपको दुर्घटना की आशंका से ग्रस्त किए रहते हैं। कई बार तो यह महसूस होता है कि सड़क मार्ग से सफर करने की गलती कर दी। इससे तो ट्रेन से सफर करना बेहतर और सुरक्षित रहता। ट्रेन के मुकाबले कई गुना ज्यादा पैसे खर्च करने के बावजूद हमेशा दुर्घटना और मौत की आशंका से तो निजात मिलती।

बहुत बड़े हिस्से में वन वे
आपको कोटा से बाहर निकलने के बाद बूंदी के आगे तलाब गांव तक के बहुत बड़े हिस्से में वन वे से निकलना पड़ेगा। इसके बड़े हिस्से में निर्माण कार्य जारी है तो कहीं टूट फूट ठीक कराई जा रही है जबकि यह नियमित प्रक्रिया होनी चाहिए। इस पूरे हाईवे में सबसे बुरी स्थिति मवेशियों की मौजूदगी को लेकर है। तेज गति से दौड़ते वाहनों के सामने डिवाइडर से कभी भी मवेशी कूद कर सामने आ जाता है। कोटा से जयपुर की यात्रा के दौरान कम से कम तीन दर्जन ऐसे स्पॉट मिले जहां डिवाइडर पर एक साथ 10 से 20 मवेशी तक थे और उनमें आपस में लड़ाई होने पर कूद कर आपके वाहन के सामने आ जाते हैं। ऐसा भी नहीं कि यह स्थिति सुदूर गांव के पास के हाइवे की है।

जिन टोल नाकों पर वाहनों से टोल वसूली की जाती है उसके आस पास के क्षेत्र में भी मवेशी सड़क पर मौजूद मिल जाते हैं। टोल नाके पर तैनात कर्मचारियों को वाहनों से टोल वसूली के अलावा कोई मतलब नहीं है। देवली से टोंक के बीच तो स्थिति बहुत दयनीय है। यहां का ही हाइवे रोड सबसे अच्छा है जहां आप मनमाफिक गति से वाहन चला सकते हैं। लेकिन इसी क्षेत्र में मवेशियों से सबसे ज्यादा खतरा भी है। यह कहना उचित नहीं होगा कि हाईवे पर मौजूद मवेशी आवारा हैं। कई स्थानों पर तो गाय अपने बछड़े के साथ सड़क पर चहल कदमी करती वाहनों के बीच आती मिलीं। इससे स्पष्ट है कि हाईवे के किनारे बसे लोग अपने पालतू जानवर खुले छोड़ देते हैं। हाईवे पर कई जगह मवेशियों के गोबर के ढेर इसकी कहानी खुद बयां कर देते हैं। जबकि गोबर की वजह से वाहन के फिसलने का खतरा रहता है।

कई जगह यह स्थिति थी कि पशु पालक हाईवे किनारे ही भैंसे और गाय तथा बकरियां चरा रहे थे। वे आराम से सड़क किनारे बैठे थे और मवेशी चर रहे थे। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं थी कि मवेशी कभी भी बीच सड़क पर पहुंच जाएगा। हाईवे के डिवाइडर के बीच लगी घास और पौधे आवारा मवेशियों की मौजूदगी की प्रमुख वजह है। यहां तक कि हाईवे पर खड़े होकर मवेशी डिवाइडर की घास चरता है। यदि इन पौधों की बजाय बड़े और छायादार पेड़ लगे होते तो ज्यादा बेहतर था। कम से बारिश के मौसम में लगी घास को चरने के लिए मवेशी तो इसमें नहीं घुसे रहते।

बगैर पार्किंग लाइट के ट्रक
हाईवे पर जगह-जगह ट्रक और ट्रोले बगैर पार्किंग लाइट जलाए सड़क किनारे पार्क मिल जाएंगे। तेज गति से आ रहे वाहन के चालक को पता ही नहीं चलता कि ट्रक खड़ा है। कई दुर्घटनाओं का कारण बगैर पार्किंग के खड़े ट्रक बनते हैं। कार ट्रक और ट्रोले में पीछे से घुस जाती है इसका कारण भी यही होता है। इस हाईवे पर कई स्थानों पर ट्रेक्टर ट्राली रौंग साइट आते मिलते हैं। उस पर ट्रेक्टर चालक हैड लाइट का संकेतक तक नहीं देता।

कई बार तो आपको यह समझ नहीं आता कि पीछे से ओवर टेक कर रहे वाहन से बचे या सामने से रौंग साइड आ रहे ट्रेक्टर ट्राली से। यही हाल दुपहिया वाहन सवारों का है। वे तो हेलमेट पहनना जैसे अपराध समझते हैं। उस पर जहां चाहा डिवाइडर काट रखे हैं जिससे वाहन को कुदा कर हाईवे पर आपके वाहन के सामने आ जाते हैं। अब बचने की जिम्मेदारी आपकी है। गांव से हाईवे पर मिल रही सड़क पर जब तक कट नहीं आता दुपहिया वाहन चालक रौंग साइड ही चलते मिलेंगे।
सड़ांध मारते शौचालय
टोल नाकों पर वाहन चालकों की सुविधा के लिए शौचालय बनाए हुए हैं। कोटा से जयपुर के बीच तीन टोल नाके हैं। लेकिन इनकी हालत किसी से छुपी नहीं है। गंदगी और बदबू की वजह से इनका उपयोग बीमारी और यूरीन इंफेक्शन को निमंत्रण देना है। यही वजह है कि कई वाहन चालक या तो हाईवे किनारे बने ढाबों के शौचालय का इस्तेमाल करते हैं अथवा बीच रास्ते में वाहन रोककर खेत या खुली जगह में फारिग होते हैं। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि कोटा से जयपुर के बीच 336 रुपए टोल वसूला जाता है। यानी कार चालक को प्रति किलोमीटर सड़क इस्तेमाल के एक रुपए 44 पैसे चुकाने पड़ते हैं। इसके बावजूद पूरा सफर भयग्रस्त होकर गुजारना पड़ रहा है। यदि सीट बेल्ट जैसे उपायों के साथ गडकरी जी मवेशी, बगैर हेलमेट लापरवाह दुपहिया वाहन चालकों, ट्रेक्टर ट्राली पर रोक लगाने के उपाय करें और टोल नाकों को केवल टोल वसूली के बजाय जिम्मेदार बनाएं तो बेवजह प्रति वर्ष हाईवे पर हादसे में असमय जान गंवाने वालों को बचाया जा सकता है।
टोल देने के बाद भी सड़क ठीक नहीं मिल रहीं, साइरस मिस्त्री की मौत के लिए तो जो कारण बताए वो हास्यास्पद है। एक्सीडेंट सड़क की खामियों के कारण हो रहे हैं। सीट बेल्ट लगा भी लेंगे तो क्या गारन्टी है कि एक्सीडेंट नहीं होगा। अपनी व dipartment
की खामी छिपाने के लिए नए नियम जारी कर रहे हैं।
हाईवे सड़कों की खराब हालत पर बेह्तरीन टिप्पणी।
केन्द्र तथा राज्य सरकारें वाहन मालिकों से पंजीकरण शुल्क,बीमा में जीएसटी, पर्यावरण प्रमाण पत्र चार्ज, पेट्रोल पर टैक्स और हाई वे पर टोल टेक्स के नाम से जेब खाली कराती है और हाईवे को भगवान् भरोसे छोड़कर सरकारें इति श्री करलेती है।शैलेश पाण्डेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन्होंने हाईवे की अव्यवस्थाओं पर सटीक टिप्पणी की है।