आंखे तलाशती रहीं एफिल टॉवर

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पेरिस की पहचान एफिल टॉवर
मेरा सपना-2

-शैलेश पाण्डेय-

योरोप और अमेरिका में भारतीयों से आव्रजन विभाग कड़ाई से पूछताछ करता है। उन्हें शक होता है कि कहीं ये पर्यटन के नाम पर आकर यहीं नहीं बस जाएं। इसलिए जब पेरिस हवाई अड्डे पर विमान से उतरने और सामान लेने के बाद बाहर आने के लिए आव्रजन जांच के लिए लाइन में लगे तो सख्त चेहरे वाले आव्रजन अधिकारियों को देखकर संशय में पड़ गए। बेटे ने पहले ही बता दिया था कि आव्रजन अधिकारी आपसे पूछताछ कर सकते हैं इसलिए आपको केवल यही बताना है कि फ्रांस आने का उद्देश्य महज पर्यटन है और दो सप्ताह में  स्वदेश लौट जाएंगे। अपनी तरफ से कोई बात नहीं करनी है। जब हम लाइन में लगे तो देखा हमारे से आगे के लोग अपनी बारी के अनुसार अलग- अलग काउंटर पर पहुंचते और पासपोर्ट तथा वीजा दिखाते। जिन पर थोड़ा भी शक होता उनसे पूछताछ भी होती। हमारे आगे एक युवा और उसकी मध्य आयु की मां को महिला आव्रजन अधिकारी ने पूछताछ के लिए रोक लिया तो हमारी चिंता बढ़ी। उनसे काफी देर तक पूछताछ होती रही। लेकिन हम तीनों को ही पासपोर्ट और वीजा की औपचारिक तौर पर जांच के बाद ही मोहर लगाकर बाहर जाने दिया। जब बाहर निकले तो होटल जाने के लिए टैक्सी की तलाश शुरू हुई। बेटे ने एप से टैक्सी बुक कर ली लेकिन भाषा की समस्या के कारण समझ नहीं आ रहा था कि यह किस जगह मिलेगी। इस बीच कुछ स्थानीय दलाल टाइप के युवा हमारे पीछे पड़े रहे कि उनके साथ टैक्सी में चलें क्योंकि आपने जो टैक्सी बुक की है उसमें बहुत ज्यादा किराया देना पड़ेगा । लेकिन बेटा अपने निर्णय पर अडिग रहा और एप से बुक की टैक्सी तक पहुँच गए। इसी दौरान मेरे कानपुर निवासी छोटे भाई राकेश पाण्डेय का बेटा अमन और उसका दोस्त भी वहां आ गए। अमन दिल्ली में इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर अचानक मिला था तब मालूम पड़ा कि वह और उसका दोस्त भी हमारी फ्लाइट से पेरिस से जा रहे थे। देश की प्रतिष्ठित एनआईटी का स्नातक अमन मल्टीनेशनल कंपनी में एक्जीक्यूटिव है और अपनी नौकरी के सिलसिले में उसका योरोप जाना लगा रहता है। लेकिन वह पहली बार घूमने के मकसद से पेरिस पहुंचा था। क्योंकि हमारे होटल अलग-अलग दिशा में थे इसलिए हम अलग टैक्सी से गंतव्य के लिए रवाना हुए।

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पेरिस हवाई अड्डे पर अपने भतीेज अमन, बेटे अजातशत्रु और पत्नी नीलम के साथ।

टैक्सी से होटल के लगभग आधे घंटे के सफर के दौरान क्योंकि रात के साढ़े नौ बजे होने के बावजूद उजाला था इसलिए पूरे रास्ते हम पेरिस को निहारते रहे। यही देखते रहे कि क्या यही हमारे सपनों का शहर है। क्या यही विश्वख्यिात आर्किटेक्चर, संगीत, पेंटिंग और इतिहास को अपने में समेटे हुए शहर है।
मेरे जैसे खेल प्रेमी के लिए यह शहर क्रिकेट के मक्का लार्ड्स और विम्बलडन के बाद सबसे प्रतिष्ठित रौलां गैरोस के तौर पर दिल में था। रौलां गैरोस पर प्रतिष्ठित फ्रेंच ओपन टेनिस टूर्नामेंट का आयोजन होता है जिसे टेनिस की सबसे कठिन प्रतियोगिताओं में माना जाता है। और सबसे प्रमुख एफिल टॉवर जिसके बगैर पेरिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पूरे समय मेरी निगाहें एफिल टॉवर को ढूंढ रही थीं क्योंकि सुन रखा था कि यह इतना ऊँचा है कि कहीं से भी देखा जा सकता है। लेकिन होटल शहर के बाहर होने के कारण यह दिखाई नहीं दिया। जब टेक्सी ने मिलेनियम होटल पेरिस में उतारा तो वहां से भी चारों ओर नजर दौड़ाई लेकिन एफिल टॉवर नजर नहीं आया। हालांकि कुछ निराशा हुई, हमने इस बारे में किसी से पूछताछ भी नहीं की।

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पेरिस के मिलेनियनम होटल में।

मिलेनियम होटल परंपरागत फ्रेंच वास्तु शैली में बना हुआ था। हमारे टूर मैनेजर राहुल जाधव ने होटल में हमारा स्वागत किया और रूम की चाबियां सौंपने के साथ डिनर के लिए शाकाहारी भोजन के पैकेट भी दिए। हम अपने कमरों में पहुंचे और दूसरे दिन सुबह से शुरू होने वाले टूर के कार्यक्रम पर चर्चा करने के बाद आराम करने लगे। इस दौरान मैं और श्रीमती जी होटल के कमरे की खिड़की से बाहर का नजारा देखने लगे। हल्की बारिश हो चुकी थी इसलिए चारों तरफ हरियाली छाई हुई थी और धीरे- धीरे अंधेरा घिरने के साथ दूर तक रौशनी से चमचमाती इमारतें नजर आ रही थीं। होटल में टूर में हमारे साथ रहने वाले अन्य भारतीय पर्यटक भी ठहरे हुए थे। लेकिन उनसे उस वक्त मुलाकात नहीं हुई। इसी होटल में स्पेन के किशोर-किशोरियों का एक दल भी ठहरा हुआ था जिनकी देर रात तक धमा चौकड़ी जारी थी। वे भी उसी तरह मस्ती करते दिखे जैसे हमारे यहां के युवा करते हैं। अंतर इतना था कि वे सभी बहुुत हष्ट पुष्ट थे। उनके स्वस्थ होने का राज अगले दिन सुबह नाश्ते के वक्त समझ आ गया। जब उन्हें दूध, चीज, बटर, कई तरह का जूस, अंडे और अन्य नॉन वेज आइटम खाते देखा। उनका यह नाश्ता इतना पौष्टिक और ज्यादा था कि हमारे यहां के युवा दिन भर में भी नहीं खा सकते। वैसे भी हमारे यहां आम तौर पर नाश्ते में मिलता ही क्या है। पोहे, ब्रेड, कचोरी या पराठा इत्यादी।
क्योंकि विमान में दो बार बहुत अच्छा खाना मिल चुका था इसलिए हमें भूख नहीं थी। हम दोनों ने ही भोजन के पैकेट को खोलकर भी नहीं देखा और सुबह जल्दी उठने की चिंता और अगले दिन अपने सपने के शहर पेरिस का दीदार करने की खुशी को दिल समाएं सोने चले गए।

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sanjay chawla
sanjay chawla
8 months ago

वे लोग lunch वैसा नहीं करते जैसा हम करते हैं. उनका lunch pasta से ही हो जाता है.