मेरा सपना …9
-बच्चों की किलकारियों से बचपन की स्मृतियां हुई ताजा
-जिसने डिज्नीलैंड नहीं देखा तो क्या देखा
-शैलेश पाण्डेय-
डिज्नीलैंड के बारे में मेरी जानकारी अपने बेटे अजातशत्रु के साथ उसके बचपन में टीवी पर देखे डोनाल्ड डक, प्लूटो और मिकी माउस जैसे करेक्टर्स तक सीमित थी। यह जरूर जानता था कि बच्चों में यह एनिमेशन के पात्र बहुत लोकप्रिय हैं और जब से इनका हिंदी में अनुवाद के साथ टीवी पर प्रसारण शुरू हुआ तब से भारत में घर-घर तक पहुंच गए। यह भी पता था कि डिज्नीलैंड में कई तरह की राइड्स होती हैं। कुछ अंग्रेजी फिल्मों में इन्हें देखा भी है। कोटा के दशहरा मेला और ग्वालियर की चर्चित नुमाइश समेत कुछ मेलों में इसके कुछ नमूने प्रत्यक्ष भी देखे हैं लेकिन किशोरावस्था के अलावा कभी इनका लुत्फ नहीं लिया।

पेरिस के डिज्नीलैंड थीम पार्क में आने के बाद पता चला कि अब तक जो कुछ देखा और अनुभव किया वैसी राइडृस तो स्वप्न में भी नहीं सोची थी। पहली बार महसूस हुआ कि बच्चे डिज्नीलैंड के जादुई मनोरंजन और इसके प्रिय करेक्टर्स के इतने दीवाने क्यों हैं। डिज्नीलैंड में जब भी कुछ नया देखता मुझे अपने परिवार, मित्रों और रिश्तेदारों के बच्चों के एक-एक कर चेहरे याद आते गए कि यदि वे भी यहां होते तो कौन बच्चा किस तरह रियेक्ट कर रहा होता। इसमें मुझे अपने बेटे का बचपन भी याद आया जब वह रविवार को स्कूल के अवकाश के दिन टीवी के सामने इन पात्रों की हरकतों को देखकर हंसी से उछलता था। आज वह साथ जरूर था लेकिन सोचता रहा कि काश वह बचपन में यहां आता।

हमारे ग्रुप में मेरी पत्नी नीलम समेत जिन लोगों को डिज्नीलैंड के बारे में खास जानकारी नहीं थी उन्होंने रूचि नहीं ली। उन्होंने इसके बजाय पेरिस में शॉपिंग को चुना। सभी जानते हैं कि दुबई से पहले पेरिस फैशन और लग्जरी सामानों की खरीद का सबसे बड़ा केन्द्र था। दुनियाभर से धनी लोग यहां शॉपिंग के लिए आते हैं। लेकिन जब बातचीत में उन्हें डिज्नीलैंड के अनुभव को सुनाया तो उन्हें बहुत अफसोस हुआ क्योंकि अब खरीदारी तो कहीं भी की जा सकती है लेकिन यह मौका फिर मिलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है।
हमारे होटल से डिज्नीलैंड की दूरी करीब 50 किलोमीटर थी। हम सुबह आठ बजे बस से रवाना हुए और रास्ते भर हरियाली और सुंदर स्थल देखते हुए करीब एक घंटे में गंतव्य पर पहुंचे। पार्किंग में टूर मैनेजर राहुल जाधव ने डिज्नीलैंड का प्लान समझाया और शाम को चार बजे उसी स्थल पर मिलने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी बताया कि जिनकी रूचि डिज्नीलैंड में नहीं हो वह पेरिस में शॉपिंग या अन्य पर्यटन स्थलों पर घूमने के लिए जा सकते हैं और वहां जाने के लिए निकट ही मेट्रो स्टेशन भी है।
हम डिज्नीलैंड के प्रवेश द्वार पर पहुंचे तो राहुल ने प्रवेश टिकट दिए जिनसे कड़ी सुरक्षा के साथ अंदर पहुंचे। यहां से डिज्नीलैंड पार्क और वाल्ट डिज्नी स्टूडियो पार्क में प्रवेश किया जाता है। दोनों के लिए अलग-अलग टिकट हैं। हमारा लक्ष्य डिज्नीलैंड पार्क था और हम कुछ ही देर में उसके भव्य प्रवेश द्वार की इमारत के समक्ष खड़े थे। यहां से पता चल गया कि जब नमूना ऐसा भव्य है तो अंदर क्या-क्या नहीं होगा। अंदर घुसते ही चकाचौंध का एक अनूठा संसार शुरू हो गया। वहां डिज्नी से संबधित वस्तुओं के शोरूम और रेस्त्रां तथा अन्य स्टाल थे। बेटे अजातशत्रु को अपने दोस्तों के लिए डिज्नीलैंड से कुछ स्मृतिचिन्ह खरीदने थे जिसके लिए कुछ शोरूम और स्टोर में गए। वहीं आइसक्रीम, पिज्जा बर्गर कॉफी इत्यादि की स्टॉल भी थी। अजातशत्रु को वहां की आइसक्रीम की वैरायटी के बारे में पता था इसलिए उसने दो कोन खरीदे और हम बाहर आकर वहां लगी टेबल चेयर पर बैठ गए। वहां रास्ते के दोनों छोर पर भीड जमा थी। बीच में रेल पटरी की लाइन बिछी थी। पहले तो कुछ समझ नहीं आया लेकिन कई पेरेंट्स को अपने छोटे बच्चों को कंधे पर बिठाए देखा तो उत्सुकता जगी। नजदीक जाकर देखा तो डिज्नी स्टार्स की परेड शुरू होने वाली थी और इस परेड को देखने के लिए यह हुजूम जमा हुआ था। थोड़ी देर में डोनाल्ड डक, मिकी माउस और डिज्नी के अन्य करेक्टर्स की परेड शुरू हुई। बच्चे उनको देखकर खुशी के मारे चिल्लाते। जब मिकी माउस या डोनाल्ड डक जैसा करेक्टर किसी बच्चे के करीब आता या उससे हाथ मिला लेता तो उस बच्चे की खुशी का पारावार नहीं होता। वहीं कोई विलेन करेक्टर करीब आता तो बच्चे डर जाते। करीब आधे घंटे तक यह सिलसिला चला जिसमें विशालकाय ड्रेगन से लेकर परियों, जलपरियों और विलेन करेक्टर्स का संसार तक सब कुछ था। बड़े जहाज नुमा वाहनों पर एलिस इन वंडरलैंड जैसे कई करेक्टर्स सवार थे तो विशालकाय ड्रेगन चलता हुआ आता। जब हम छोटे थे और कोटा के दशहरा मेला में दशहरा के दिन सवारी निकलती थी तब पिता के कंधों पर बैठकर देखते और खुश होते थे। वही हाल यहां का था। अंतर इतना ही था कि यहां के लोग हमारे भारतीय पेरेंट्स के मुकाबले बहुत हट्टे कट्टे और मजबूत थे।

मुझे तो डोनाल्ड डक, मिकी माउस, प्लूटो जैसे कुछ ही करेक्टर के बारे में ही पता था। जब डिज्नी स्टार परेड को देखा तब अहसास हुआ कि वाल्ट डिज्नी के ऐसे सैकड़ों करेक्टर हैं। कुछ समय के साथ विलुप्त हो गए तो कई अब तक पापुलर हैं। इनमें ऐसे भी हैं जो यहां उपस्थित बच्चों के पिता और दादा ही नहीं बल्कि परदादा तक के जमाने में भी लोकप्रिय थे। हों भी क्यों नहीं वाल्ट डिज्नी एनीमेशन स्टूडियो की 1923 में स्थापना के बाद से नए नए करेक्टर गढ़े गए और वे बच्चों में लोकप्रिय होते रहे। इनमें दर्जनों प्रिसेंस, जल परियां, दर्जनों विलेन, समुद्री जीव-जन्तु और स्नोमैन इत्यादी हैं। इस परेड को देखकर लगा कि प्रतिदिन इसकी तैयारी करेक्टर्स का मेकअप वगैरह जैसा श्रम साद्ध्य कार्य कैसे किया जाता होगा। क्योंकि इस परेड को शुरू में गंभीरता से नहीं लिया था इसलिए वीडियो बनाते और फोटो लेते वक्त बहुत कुछ छूट गया और अत्यधिक भीड़ की वजह से भी इस काम के लिए सही स्थान नहीं मिला। फिर भी जो कुछ भी वीडियो में कैद किया उससे इस भव्य परेड के आकर्षण का अंदाजा हो जाएगा।

प्रतिदिन यह परेड सुबह और शाम को आयोजित की जाती हैं। लेकिन इसका आकर्षण सुबह ही होता है। शाम को वह बात नहीं दिखती। न वैसी भीड़ और न परेड में शामिल करेक्टर्स में उत्साह। यह जरूर कहा जा सकता है कि डिज्नीलैंड का यह प्रमुख आकर्षण है और बच्चे तो इसी परेड की वजह से सुबह आते हैं। वैसे बड़ी संख्या में लोग शाम को आते हैं तब आतिशबाजी एक प्रमुख आकर्षण होती है। इसे डिज्नी इलेक्टिक स्काई परेड कहा जाता है। इसमें ड्रोन के माध्यम से सुबह होने वाली परेड को दर्शाया जाता है।
स्टार परेड से अंदाज हो गया था कि यह तो शुरूआत हुई है। जब शुरूआत ऐसी भव्य है तो आगे क्या- क्या नहीं होगा। और हुआ भी ऐसा ही हर जगह कुछ न कुछ नया और चकित कर देने वाला अनुभव था।
मेरे सुपुत्र शैलेश पाण्डेय, फ्रांस के डिज्नी लैण्ड का ,लंच के समय जिक्र करते, रोमाचित हो गए,ऐसा लगा इनको बचपन याद आ गया.विश्व भ्रमण में वह देखने को मिल जाता, जिसकी कल्पना शायद ही होती है