सच यही है अगर

नज़्म

-शकूर अनवर-

*
ऐसा कोई नहीं
कोई ऐसा नहीं
जिसके हाथों में कोई भी रेखा नहीं
जिसके माथे पे क़िस्मत का लिक्खा नहीं
ऐसा कोई नहीं कोई ऐसा नहीं
सोचता हूॅं मगर
सच यही है अगर
फिर ज़माना उसे क्या कहेगा बता
जो यहाॅं तेरी दुनिया में पैदा हुआ
भूख में प्यास में मुफ़लिसी में पला
ऑंसुओं में ढला
ज़िंदगी से हमेशा ही लड़ता रहा
जंग करता रहा
जो मुक़द्दर के रहमो करम से नहीं
अपने दम से
सिकंदर बना
क्या कहेगा उसे ये ज़माना बता
क्या कहेगा उसे ये ज़माना बता

मुफ़लिसी* दरिद्रता गरीबी

शकूर अनवर

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शून्य आकांक्षी
शून्य आकांक्षी
1 year ago

शानदार नज़्म