
-संजीव कुमार-
देश आजादी की 75 वीं वर्षगांठ आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। यह सभी देशवासियों के लिए एक विशेष अवसर है। देश 15 अगस्त 1947 को गुलामी की बेडियों से मुक्त हुआ, तब से उसने राजनीतिक-आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, विज्ञान तकनीक, खेल आदि क्षेत्रों में एक अलग पहचान बनाई। भारत ने 75 साल से अपनी अंदरूनी समस्याओं से जूझते हुए ऐसा कुछ हासिल किया है, जिसकी ओर दुनिया आकर्षित हो रही है। इन सालों में भारत ने भले ही नए कीर्तिमान बनाए हैं, लेकिन कई चुनौतियां भी मुंह बाये खड़ी हैं। देश के पास गर्व करने के लिए उपलब्धियां हैं तो अफसोस जताने की वजहें भी हैं। देश में व्याप्त बेरोजगारी, गरीबी, बढ़ती महंगाई, आतंकवाद, कश्मीर अलगाववाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, निरक्षरता, क्षेत्रवाद, भाषावाद, महिलाओं की स्थिति, पर्यावरण, गांव और शहरों के बीच असंतुलन स्तर, बढ़ते स्लम, कृषि का पिछड़ापन आदि समस्याएं लंबे समय से भारत के लिए चुनौतियां बनी हुई हैं।

आसान नहीं था आजादी का सफर
संघर्षों से जूझने की क्षमता तो भारत को अपनी स्वतंत्रता के उदयकाल से ही प्राप्त है। आजाद भारत के निर्माताओं ने जिस सूझबूझ, कर्मठता और साहस के साथ पारिस्थितियों से लोहा लिया, वह इतिहास का एक क्रांतिकारी पृष्ठ है। इन 75 सालों में विज्ञान, कृषि, साहित्य, खेल आदि क्षेत्रों में भारत ने अपना परचम लहराया है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का हटना इन 75 वर्षाे में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। आजादी का यह सफर जरा भी आसान नहीं था। अगस्त 1947 में हम आजाद तो हो गए, लेकिन यह आजादी एक दर्दनाक विभाजन के साथ आई। भारत की जमीन से बना देश पाकिस्तान अस्तित्व में आया। भारत को एक बड़ा भूभाग खोना पड़ा। इससे बाद कश्मीर-अक्साई चिन में हमने भूभाग खोए। कई राज्यों में अलगाववादी ताकतें, नक्सलवाद, आतंकवाद की चुनौतियांे से निपटने, चीन-पाकिस्तान से लड़ते भारत ने कभी सम्प्रभूता पर आंच नहीं आने दी।
जनकल्याणकारी योजनाओं को पूरे तरीके से लागू नहीं करवाया जा सका
आजादी के बाद सरकारों ने आम आदमी को सशक्त बनाने के अनेक प्रयास किए। बीते दशकों में कई जनकल्याणकारी नीतियां और योजनाएं लाई गईं। जिनका लाभ गरीबों और कमजोर तबके को मिला। शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना जैसे कार्यक्रम और योजनाआंे ने आम आदमी को ताकत दी और उन्हें मजबूत बनाया। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं से देश में विकास की गति तेज हुई और लोगों का जीवन बेहतर हुआ, लेकिन यहां यह भी सही है कि लालफीताशाही और अन्य कई कारणों से इन योजनाओं को पूरे तरीके से लागू नहीं करवाया जा सका। जिस कारण इसका लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहंुचाने में रूकावटें आईं।
उदारीकरण से विकास, लेकिन समस्याएं कायम
वर्ष 1991 में आए उदारीकरण के दौर में भारत तेजी से आगे बढ़ा। आर्थिक, सैन्य और अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसने सफलता की एक लंबी छलांग लगाई। आज भारत न केवल दुनिया का बड़ा बाजार बना हुआ है, बल्कि सैन्य क्षेत्र में भी एक महाशक्ति बना हुआ है। परमाणु हथियारों से सुसज्जित भारतीय सेना आज दुनिया की चौथी शक्तिशाली सेना है। मिसाइल तकनीकी में दुनिया भारत का लोहा मान चुकी है। अंतरिक्ष में तो हम एक महाशक्ति बन रहे है। मंगल मिशन की सफलता और रॉकेट प्रक्षेपण की अपनी क्षमता की बदौलत भारत अंतरिक्ष में महत्वपूर्ण दखल रखने वाले देशों में शामिल है। सूचना तकनीक के क्षेत्र में तो हमने दुनिया में अग्रणी स्थान बना लिया है।
आजादी के बाद देश ने असंख्य उपलब्धियां हासिल की। इसके साथ कई ज्वलंत समस्याएं भी ऐसी रहीं, जिनसे पार न पाया जा सका। आज 21 वीं सदी में देश के सामने कई चुनौतियां सामने खड़ी है, जिनसे निपटना देश के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है। इससे पार पाए बिना सफलता का हर जश्न अधूरा सा है। आजादी के इतने साल बाद भी भारत समावेशी विकास से दूर है। देश के 10 प्रतिशत लोगों के पास 90 प्रतिशत सम्पत्ति है। जबकि जनता के हिस्से में मात्र 10 प्रतिशत सम्पत्ति आई है। अमीरी और गरीबी की खाई लगातार बढ़ रही है। भले ही हमारा लक्ष्य वर्ष 2027 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, लेकिन महती प्रश्न यही है कि इसमें से कितना प्रतिशत भाग निम्न वर्ग के हिस्से में आएगा, सिर्फ आंकड़ों से कुछ नहीं होगा। इसीलिए कहा गया है-
‘ तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकडे़ झूठे हैं ये दावा किताबी है’
बेरोजगारी ने पहुंचाई चोट
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची है। क्रिसिल, मूडीज जैसी रेटिंग एजेंसियों ने विकास दर गिरने का अनुमान जताया है। एक प्रमुख चुनौती इस समय बेरोजगारी की है। 135 करोड़ की आबादी वाले देश में लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी के रूप में अनुत्पादक कार्यों में लगकर अपनी बहुमूल्य क्षमता नष्ट कर रही है। देश के डिग्री और उपाधिधारक चतुर्थ क्लास की नौकरियों के लिए भटक रहे हैं, क्योंकि उनकी योग्यतानुसार कार्य उपलब्ध नहीं है। भारत में वर्ष 1991 के बाद संगठित क्षेत्र में रोजगार लगातार कम हो रहा है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने रोजगार की स्थिति और बिगाड़ी है। अतः सभी को रोजगार देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके अभाव में कोई भी विकास बेमानी है। भारत की आम जनता के लिए महंगाई का मुद्दा सबसे अहम है। खाद्य वस्तुएं और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें आसमान पर हैं। केन्द्र सरकार के सामने बड़ी चुनौती यह है कि कैसे वह आम उपभोक्ताओं वस्तुओं की कीमतें नियंत्रण में रखकर जनता को महंगाई से निजात दिलाती है।
रिश्वतखोरी रोकना बड़ी चुनौती
एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में अपना कोई न कोई जरूरी काम करवाने के लिए 54 फीसदी लोग रिश्वत देते हैं। यानि देश का हर दूसरा शख्स रिश्वत देने की यकीन रखता है। ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल की वर्ष 2021 की ताजा रिपोर्ट भी कहती है कि पिछले दो सालों में भारत में रिश्वतखोरी बढ़ी है। दुनिया के 180 देशों की इस रिपोर्ट में भारत का 86वां स्थान है। भ्रष्टाचार लंबे समय से चुनौती बना हुआ है। 1947 में बंटवारे के बाद से देश आतंकवाद की तपिश झेल रहा है। 1992 में मुंबई धमाके, 2001 में संसद, 2006 में मुंबई लोकल ट्रेन बम ब्लास्ट, 2008 में मुंबई आतंकी हमला और 2019 में पुलवामा देश के सीने पर लगे वो जख्म हैं, जिनके घाव अभी ताजा हैं। हालांकि सरकार की सख्ती के कारण हालिया दौर में आतंकी घटनाओं में काफी कमी आई है। कश्मीर को देश का ताज कहा जाता है, लेकिन देश के लिए यह कांटों भरा ही साबित हुआ है। पाक प्रायोजित आतंकवाद और अलगाववाद से जूझ रहे देश के इस हिस्से को अनुच्छेद 370 हटाकर देश की मुख्य धारा में लाने प्रयास किए गए हैं, लेकिन सियासी दांव-पेंचों के कारण मामला अभी तक अनसुलझा बना हुआ है। देश की आधी आबादी अर्थात महिलाओं को देश के विकास में सहयोगी बनाना भी एक चुनौती कार्य है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जिसने अपनी महिलाओं को सम्मान व बराबरी का दर्जा दिए बिना केवल पुरूषों के बल पर तरक्की की बुलंदियों को छुआ हो। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है-
‘ जैसे किसी पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना आसान नहीं है, उसी प्रकार बिना महिलाओं की स्थिति में सुधार किए इस समाज का कल्याण संभव नहीं है।’
1000 मरीजों के लिए केवल 0.7 डॉक्टर
हमारे लिए देश की बिगड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था भी एक चुनौती है। यहां पर 1050 मरीजों के लिए सिर्फ एक बेड उपलब्ध है। इसी तरह 1000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है। 135 करोड़ की आबादी वाले देश में कोराना महामारी के कारण अचानक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्याधिक बोझ पड़ा। ऐसे में कोरोना महामारी ने हमें स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में आईना दिखा दिया। स्वास्थ्य सेवाओें की गुणवत्ता और पहुंच की दृष्टि से दुनिया के 195 देशों में भारत को 145 वीं रैकिंग हासिल है। स्वास्थ्य में बजट आवंटन भी गत वर्षों में कम रहा है। यह जीडीपी का केवल 0.6 प्रतिशत रहा है। हालांकि बजट 2021-22 में केन्द्र की मोदी सरकार ने स्वास्थ्य बजट में 137 फीसदी का इजाफा किया है, जो एक अच्छा संकेत है।
पर्यावरण के क्षेत्र में नई चुनौती
एक नई चुनौती हालिया वर्षों में पर्यावरण के क्षेत्र में नजर आई है। कार्बन उत्सर्जन के मामले में दुनिया में भारत का स्थान चीन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के बाद चौथा है। हाल ही में नीति आयोग ने अपने न्यू इंडिया विजन में प्रत्येक व्यक्ति के पास दोपहिया, चार पहिया वाहन की बात कही है, जो कि पर्यावरण प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण है, ऐसे में जहां पूरा विश्व सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बढ़ावा दे रहा है, वहीं हमें इस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)