
ग़ज़ल

शकूर अनवर
झिलमिलाता जहान ख़ाली था।
कल की शब आसमान ख़ाली था।।
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किस तकल्लुफ़ से तुम नहीं आये ।
वर्ना दिल का मकान ख़ाली था।।
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खेत में उग रही थी मायूसी।
ज़िंदगी में किसान ख़ाली था।।
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ज़ुल्म से उसके लब पे तौबा: थी।
रंग से आसमान ख़ाली था।।
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क्यूॅं जलाया है सरफिरों ने उसे।
जब कि मेरा मकान ख़ाली था।।
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रब्त उससे बना नहीं “अनवर”।
फ़ासला दरमियान ख़ाली था।।
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शकूर अनवर
तकल्लुफ़* औपचारिकता
रब्त* राब्ता संबंध
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