ummedganj talab
उम्मेदगंज तालाब के किनारे बना महल। फोटो ए एच जैदी

-ए एच जैदी-
नेचर प्रमोटर
कोटा। पहले ही उपेक्षा के कारण सारस जैसे पक्षी को गंवा चुके उम्मेदगंज पक्षी विहार में अब मानवीय दखल और बढ जाएगा। शहर के विकास के लिए उत्तरदायी नगर विकास न्यास ने इस क्षेत्र में नई कॉलोनी बसाने की तैयारी की है। इस कॉलोनी के प्लाटों के लिए एक दिन पहले ही लॉटरी निकाली गई है। पहले ही रायपुरा में आबादी बढने के कारण इस क्षेत्र में मानवीय चहल पहल बहुत बढ चुकी है। अब यूआईटी की नई कॉलोनी से आबादी का घनत्व और बढ जाएगा। दूसरी ओर राज्य सरकार ने शहर से 13 किलोमीटर दूर दाढ देवी मार्ग पर स्थित हाडोती के एक मात्र उम्मेदगंज पक्षी विहार कंजर्वेशन रिजर्व

ए एच जैदी

का मैनेजमेंट प्लान इस वर्ष जनवरी में ही स्वीकृत किया था। दस वर्ष के इस प्लान के लिए केन्द्र सरकार की प्रायोजित योजना सीएसएस के तहत इसके लिए बजट मिला है।

महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय ने बसाया

उल्लेखनीय है कि महाराव उम्मेदसिंह द्वितीय ने रियासतकाल में विशाल तलाब के किनारे उम्मेदगंज को बसाया था। इस तालाब के किनारे भव्य महल का निर्माण कराया था। इसके निकट ही दो शिकार माले बनाए जबकि चारों ओर घना जंगल था जिसमें असंख्य वन्य जीव रहते थे। वक्त के साथ यह तालाब दो भागों में बंट गया। जिसमें एक को रियासतकालीन तथा दूसरे को नहरी तालाब कहा जाने लगा। यह सही है कि जब मनुष्य विकास की ओर बढता है तो सबसे पहले प्रकति और पर्यावरण को ही नुकसान पहंुचता है।

सारस पक्षी फोटोः ए एच जैदी

धीरे धीरे हम जंगलों को नष्ट करते जारहे हैं। देखते ही देखते जंगल सिमट कर बहुंत कम रह गए हैं। दाढ देवी जंगल में जाने की आम आदमी की हिम्मत नही होती थी। रात में तो जाना बहुत बडे साहस का काम था। तीन चार दशक पूर्व तक उम्मेदगंज में सारस पक्षियों की कॉलोनी होती थी वहीं अब हालत यह है कि गत तीन साल में सारस ने यहां घोंसला तक नहीं बनाया है। इस तालाब पर विविध प्रकार के प्रवासी और अप्रवासी पक्षी अपना डेरा जमाते थे लेकिन धीरे धीरे यह संख्या भी कम होती जा रही है। शीत ऋतु में जरूर माइग्रेटरी बर्ड पर्याप्त संख्या में आ रही हैं। लेकिन साल में दो बार सारस के प्रजनन का यह क्षेत्र अब बर्बादी की ओर बढता जा रहा है।

सारस का प्रजनन सफल नहीं रहा

उल्लेखनीय है कि सारस की अच्छी तादाद के कारण ही इंटेक, हाडौती नेचुरलिस्ट सोसायटी और हॉबी नेचर क्लब के प्रयासों से उम्मेदगंज को पक्षी विहार का दर्जा मिला था। हालांकि भोजन की तलाश में पक्षियों का पलायन आम है लेकिन आवारा श्वान की बढ़ती आबादी और शहर के बाहरी इलाकों में कांक्रीट के जंगलों ने इस पक्षी को संकट में डाल दिया है। उम्मेदगंज में यह पक्षी दो सीजन में बच्चे देता देखा गया है। यदि जुलाई अक्टूबर के सीजन में पहले प्रयास में इसके अंडे या बच्चे किसी वजह से नहीं बचते थे तो यह फरवरी. अप्रैल के दूसरे सीजन में ब्रीडिंग करता था। लेकिन यह तभी संभव है जब माहौल अनुकूल हो। सारस 1992 से 1996 के दौरान उम्मेदगंज में छह तक घोसले बनाते थे जिससे प्रति वर्ष दस नए मेहमान आते थे। लेकिन कुत्तों और मॉनिटर लिजार्ड ने अंडे और चूजे नष्ट करना शुरू कर दिया। इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। उम्मेदगंज में वर्ष 2018 के बाद से सारस का प्रजनन सफल नहीं रहा और असुरक्षा के कारण उसने घोसले बनाना बंद कर दिया। श्वान के हमले में वर्ष 2020 में एक सारस का पंख घायल हो गया था। उसके बाद से सारस यहां से पलायन कर गए।

उम्मेदगंज पक्षी विहार में शीत ऋतु में मौजूद पक्षी। फोटो ए एच जैदी

एक समय मैंने आलनिया तथा मानसगांव में 80 से 90 सारस देखे हैं। वर्ष 2012 में तो उम्मेदगंज में केवल तीन घोसले ही देखने को मिले। 90 के दशक के बाद से विकास कार्यों के कारण शहर के विस्तार के साथ ही इसकी संख्या में तेजी से गिरावट आती गई। अब हालत यह है कि इसे ढूंढना पड रहा है।

सारस समेत पक्षियों के पलायन के प्रमुख कारण
-मानव दखल
-पक्षियों पर हमले
-श्वानों का तालाब के पक्षियों का शिकार
-वन विभाग में स्टॉफ की कमी
-निगरानी के लिए वॉच टॉवर का नहीं होना
-सारस के अण्डो और बच्चों को ले जाना

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Neelam
Neelam
3 years ago

पक्षी हम सबके लिए ईश्वर का अनुपम उपहार हैं। शहरी जीवन में आधुनिक रहन सहन व बंद घरों की संस्कृति के चलते अब ये हमारे आसपास नहीं दिखते। हर घर के आंगन में फुदकती चहचहाती गौरैया अब देखने को तरस जाते हैं। कम से कम आसपास के प्राकृतिक वातावरण को तो सहेज कर रखा जाए ।