मिल ही जायेगा हमको किनारा कहीं। उसकी कश्ती हूंँ मैं, मेरी पतवार वो।।

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

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शकूर अनवर

वो उफनती नदी, उठती मॅंझधार वो।
मैं इधर इस तरफ़ और उस पार वो।।
*
उसका ऑंखों ही ऑंखों में इक़रार वो।
अब मयस्सर* कहाँ ऐसा दीदार वो।।
*
पारसाई* मेरी काट कर रख गया।
ऐसी लाया मुहब्बत की तलवार वो।।
*
फिर सितमगर बहाना बना ही गया।
कैसा निकला ज़माने का हुशियार वो।।
*
सर्द-मोहरी* तेरी याद आई बहुत।
दिल की हर बात पर तेरा इन्कार वो।।
*
मिल ही जायेगा हमको किनारा कहीं।
उसकी कश्ती हूंँ मैं, मेरी पतवार वो।।
*
जिसकी “अनवर” किसी को ज़रूरत नहीं।
नफ़रतों की गिरे अब तो दीवार वो।।
*
शब्दार्थ:-
मयस्सर*प्राप्त होना मिलना
पारसाई*पवित्रता
सर्द मोहरी*बेवफाई
शकूर अनवर
9460851271

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श्रीराम पाण्डेय, कोटा
श्रीराम पाण्डेय, कोटा
6 days ago

ओ उफनती नदी, उठती मंझधार
मैं इधर इस तरफ और उस पार वो
शायर जनाब शकूर साहब की श्रृंगार रस से सराबोर रचना काबिले तारीफ है