
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

*
खूबसूरत सा इक जहाँ मेरा।
मेरी आँखों में है मकाॅं मेरा।।
*
एक छोटी सी है ज़मीं मेरी।
एक छोटा सा आसमाॅं मेरा।।
*
घर के दीवारो-दर मुहाफ़िज़* हैं।
है यहीं मस्कने-अमाॅं* मेरा।।
*
सब के सब रास्ते मेरे घर से।
बस यहीं से है कारवाॅं मेरा।।
*
यूँ मेरा नाम सब कहीं पहुॅंचा।
फिर भी घर से मिला निशाॅं मेरा।।
*
जानता है मेरे गुनाहो सवाब*।
ये मेरा घर है राज़दाँ* मेरा।।
*
सिर्फ़ सरमाया है यही “अनवर”।
कुछ किताबें कि ये मकाॅं मेरा।।
*
मुहाफ़िज़*रक्षक
मसकने-अमाॅं*शांति का निवास
गुनाहो सवाब*पाप पुण्य
राज़दाँ*भेद जानने वाला
शकूर अनवर
9460851271