
-डॉ.रामावतार सागर

मुक्तछंद और छंदयुक्त कविता आजकल विमर्श के केंद्र में है। ए. एफ नजर की पुस्तक “कविता के नए प्रतिमान एक पुनर्विचार” में एक लेख है ’मुक्तछंदों की अराजकता बनाम अनुकूल छंद की तलाश’ से एक बार फिर इस विमर्श ने विद्वान समीक्षको और सोशल मीडिया के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज की है। इसी बीच वरिष्ठ कवि और समीक्षक डॉ. विवेक कुमार मिश्रा की दो पुस्तक आती है ”चाय जीवन और बातें” तथा “फुर्तगंज वाली सुकून भरी चाय” और दोनों ही पुस्तकें इस विमर्श को और आगे बढ़ाती है। निश्चित रूप से डॉ. विवेक मुक्तछंद कविता के सिद्धहस्त और समृद्ध कवि है। उनका पहला कविता संग्रह “कुछ हो जाते पेड़ सा” ने उन्हें विद्वान समीक्षकों के बीच पर्याप्त ख्याति दिलवाई है। “कुछ हो जाते पेड़ सा” में पेड़ प्रकृति और जीवन को लेकर 100 से अधिक कविताएँ लिखी गई है। बोधि प्रकाशन से आया यह कविता संग्रह साहित्य जगत में कौतूहल का विषय था कि एक ही विषय पर शताधिक कविताएँ और उसी कड़ी में डॉ. विवेक दोहरा कौतूहल लेकर उपस्थित होते हैं और इस बार का विषय है ‘चाय’, केवल चाय पर इस बार दो संग्रहों में 200 से अधिक कविताएँ ।मुक्तछंद कविता में जिस छंदात्मक लयात्मकता की बात विद्वान करते हैं वो डॉ. विवेक के दोनों संग्रह में वह पूरी तरह से नजर आती है। इससे दृष्टि से मुक्तछंद के कवि होने के बावजूद भी डॉ. विवेक एक समृद्ध और सक्षम कवि के रूप में सामने आते हैं।
“चाय जीवन और बातें” संग्रह का प्रकाशन 2023 में होता है, उसके ठीक बाद इसी वर्ष के अंतिम महीनों में “फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय” कविता संग्रह भी सहृदयों के बीच में आता है। ठीक उसी तरह जैसे किसी फिल्म का पहला भाग आने पर दूसरा भाग भी शीघ्र ही प्रसारित होता है। यहां सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि 200 से अधिक कविताएं लिखने के बावजूद वो हर कविता में नई विषय वस्तु और नए प्रतीक एवं बिंबो के साथ उपस्थित होते हैं। ‘फीकी चाय’, ‘कड़क चाय’, ‘घर की चाय’, ‘मन की चाय ऑफिस की चाय सुबह की चाय शाम की चाय’, ‘मेज़ पर चाय’, ‘गरम चाय’, ‘गांव की चाय, ‘चौपाल की चाय’ ‘चूल्हे की चाय, ‘कुल्हड़ की चाय’ जैसे अनूठे बिंब रचते हुए डॉ. विवेक चाय के संसार में रंग भरते हैं, तो दूसरे संग्रह में भी वे चाय की समानांतर दुनियां को रचते हैं। ‘सुबह का संगीत और चाय’, ‘चाय से बड़ा जादू नहीं’, चाय की सभ्यता समकाल और सांसारिकता को नापते हुए ऐसे संसार में पहुंच जाते हैं जहां चाय एक दर्शन का रूप ग्रहण कर लेती है।अपने दूसरे संग्रह की शीर्षक कविता में वे लिखते हैं-
“चाय पर यह दुनिया बांधती है
और इतना मुक्त रखती है कि
हम अपनी बातें और अपने मन को
खुल कर रख सके
चाय पर संसार की सारी सत्ताएं
अपने रंग में अपने मन मे
अपनी यथार्थ दुनिया के साथ आती है।”1
डॉ. जगदीश गुप्त कविता को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि “कविता सहज आंतरिक अनुशासन से मुक्त अनुभूतिजन्य सघन लयात्मक शब्दार्थ है, जिसमें सह अनुभूति करने की यथेष्ट क्षमता निहित रहती है।”2 स्पष्ट है कि डॉ जगदीश गुप्त अनुभूति की सघनता पर बल देते हैं। साथ ही वह यह भी कह देते हैं जिसमें सह अनुभूति करने की यथेष्ट क्षमता निहित हो वही कविता है। इस मायने में डॉ. विवेक मिश्रा एक सफल कवि है,जिन्होंने न केवल चाय के दृश्यमान जगत को रचा वरन् पाठकों को भी उस अनुभूति में शामिल किया। दोनों संग्रहों की कविताओं को पढ़ते हुए पाठक उन बिंबो में खो जाता है जो डॉ. विवेक ने रचे हैं। “चाय की सभ्यता” शीर्षक एक कविता में एक बिंब को अनुभव कीजिए-
” हाड़ कँपाती ठंड में
बर्फीली हवाओं के बीच
चाय जीवन की गर्माहट से
छाप देती हुई
अपने आप में जीवन का एक
सिरा खोल देती है
ऐसे बर्फीले मौसम में
चाय में रिश्तो की
मानवीय संवेदना की
और जीवन के बीच
पकते संबंधों की
कथा गूँथी होती है”3
“चाय पर संसार यात्रा” का एक और बिंब द्रष्टव्य है
“एक सुबह
चाय
नींद से निकल कर
सुबह की हवा में छोड़ देती है
सुबह, ताजगी, नई हवा,
और स्वाद भारी चाय
और जीवन की न जाने
कितनी उमंगे
उल्लास सी चाय पर
चढ़ी भाप के साथ आ जाती है”4
” कविता के नए प्रतिमान” पुस्तक में डॉ. नामवर सिंह ने उल्लेख करते हुए लिखा है कि “तीसरा सप्तक के अंतर्गत केदारनाथ सिंह की घोषणा के स्वर में कहना पड़ा कि ‘कविता में मैं सबसे अधिक ध्यान देता हूँ बिंब विधान पर।बिंब विधान का संबंध जितना काव्य की विषय वस्तु से होता है उतना ही उसके रूप से भी। विषय को वह मूर्त और ग्राह्य बनाता हैं, रूप को संक्षिप्त और दीप्त। बिंब विधान की इस घोषणा और संक्षिप्त परिभाषा के साथ ही उन्होंने काव्य बिंब को कविता के मूल्यांकन के प्रतिमान के रूप में भी स्थापित किया। एक आधुनिक कवि की श्रेष्ठ की परीक्षा उसके द्वारा आविष्कृत बिंबो के आधार पर ही की जा सकती है। उसकी विशिष्टता और उसकी आधुनिकता सबसे अधिक उसके बिंबों से ही व्यक्त होती है।”5
केदारनाथ सिंह की यह स्वीकारोक्ति डॉ. विवेक की कविताओं का सटीक विश्लेषण करती है। जैसा कि केदारनाथ सिंह लिखते हैं कि बिंब विधान का संबंध जितना काव्य की विषय वस्तु से होता है,उतना ही उसके रूप से भी,तो डॉ. विवेक के संग्रह में उनके बिंब विधान का सीधा संबंध उनकी कविताओं की विषय वस्तु से है और रूप से भी। उनके बिंब कविता की विषय वस्तु को काव्य कथा की तरह आगे बढ़़ाते हैं जिसमें लयात्मकता के साथ-साथ गति भी और भावनाओं का अलौकिक संसार भी रचता हुआ चलता है। चाय के साथ-साथ वे दुनियां को साधते चलते हैं। ‘चाय संसार से मिला देती है’, ‘चाय पर दुनिया का जुड़ाव’, ‘चाय के साथ सांसारिकता’, ‘चाय कथा पर जीवन संवाद’, ‘चाय पर जिंदगी का बयान’, ‘चाय के आसपास की दुनियां’, ‘चाय चर्चा और जीवन की पाठशाला’ ‘चाय पर पृथ्वी घूमती है रहती है’, न जाने कितने ऐसे शीर्षक हैं जहां वे चाय के आसपास जीवन को बुना करते हैं। “सिर्फ चाय की पत्ती भर नहीं” कविता में वह लिखते हैं-
“जब चाय सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे लिए ही बनाई जाए
जानते हो, जब चाहे तुम्हारे लिए बनाई जाती है तो
उसमें सिर्फ चाय की पटत्ती भर नहीं होती उसमें इतना ही कुछ और हो जाता है
जो उसे सिर्फ चाय के रंग में
नहीं रहने देता।”6
“समकाल चाय का संसार” कविता में एक और बिंब द्रष्टव्य है-
“चाय पर बातों के बीच
खत्म न होने वाली बहसें चलती है अखबार की कतरनें, कहानियाँ
और जिंदगी के किस्से चल पड़ते हैं।7
निष्कर्षतः हम देखते हैं कि डॉ. विवेक कुमार मिश्रा मुक्तछंद कविता के सिद्धहस्त कवि तो है ही साथ ही उनका अनूठा बिंब विधान उन्हें और भी प्रासंगिक बनता है। चाय जैसे विषय को लेकर उनका 200 कविताएं रचना दो-तीन साल की कठिन साधना का सुफल है। इन सालों में जितने बिंब उनकी आंखों से गुजरे उनको कविता का आकार देना,उनके भीतर उपस्थित कवि का चमत्कार है।मुक्त छंद कविता में डॉ. विवेक कुमार मिश्रा का बड़ा नाम है,आगे भी इस लेखनी से ऐसी ही कविताओं का सृजन होता रहेगा यही कामना है।
संदर्भः-
1पृष्ठ संख्या,143 फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय, डॉ.विवेक कुमार मिश्र
2.पृष्ठ संख्या,5-6,नई कविता,डॉ.जगदीश गुप्त
3.पृष्ठ संख्या,23, चाय,जीवन और बातें,डॉ.विवेक कुमार मिश्र
4.पृष्ठ संख्या,102, चाय,जीवन और बातें,डॉ.विवेक कुमार मिश्र
5.पृष्ठ संख्या,117, कविता के नए प्रतिमान,डॉ.नामवर सिंह
6.पृष्ठ संख्या,152 फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय, डॉ.विवेक कुमार मिश्र
7.पृष्ठ संख्या,41 फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय, डॉ.विवेक कुमार मिश्र
डॉ..रामावतार सागर
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा
बहुत सुन्दर और सटीक समीक्षा