
– विवेक कुमार मिश्र

सड़क पर चलते हुए बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। यदि एक क्षण के लिए भी ध्यान हटा तो कुछ भी हो सकता है। पर आजकल कोई कुछ सोचता ही नहीं बस भाग रहा है। ऐसी बड़ी बड़ी गाडियां आ गई हैं कि हवा से बातें करते चलती हैं । रफ़्तार ऐसी की कुछ भी दावा कर दें। पलक झपकते ही यहां से वहां पहुंचा दें । पर कहां जाना है और इतनी भी क्या जल्दी ? इस विषय पर कोई कुछ सोचता ही नहीं है । यह भी पता नहीं है कि कहां जा रहा है और क्यों जा रहा है। बस सरपट भागा जा रहा है। हद तो तब हो जाती है जब वह अपने में ही गुम होकर भाग रहा है। आजकल स्क्रीन टाइम जिंदगी को रौंदते हुए जा रही है। किसी को कुछ दिखाई नहीं देता। जब आदमी मोबाइल में डूब जाता है तो वह न तो इस संसार में रहना है न ही भविष्य के किसी समाज व संसार में रहता है। वह तो बस समय को जैसे-तैसे काट रहा होता है। उसके लिए मोबाइल ही दुनिया है और दुनिया ही मोबाइल है। मोबाइल के नशे में बस गुमसुम सा वह जा रहा है। हर किसी की दुनिया इत्ती सी ही है जो स्क्रीन टाइम और स्क्रीन लाइट में खो सी गई है। गांव कस्बे से लेकर शहर तक हर मोबाइल पर गर्दन टेढ़ी कर बात करते लोग बस जा रहे हैं। ऐसे में कोई भी फुर्सत वाला आदमी दिखता ही नहीं । जिसे देखो वही मोबाइल की धुन पर गुम होते भाग रहा है वह न तो वर्तमान में है न ही भविष्य में है वह बस भ्रम में जी रहा है। उसे बस यहीं लगता है कि जो दुनिया उसके पास है वह बस इसी समय है फिर जाने क्या होगा ? मोबाइल तकनीक ने लोगों को इस तरह से भ्रम में डाल दिया है कि एक क्षण के लिए भी आदमी इससे दूर नहीं होना चाहता, पढ़ा लिखा हो या अनपढ़, वह तो इसी में गुम सा हो गया है उसे पता ही नहीं है कि वह ड्राइविंग सीट पर है या बगल की सीट पर बैठा है उसका यह व्यवहार मोबाइल और ड्राइविंग दोनों के हिसाब से खतरनाक है पर आजकल की जो पीढ़ी है वह इस तरह से व्यस्त है कि वह इससे निकलना ही नहीं चाहती। यह बात अलग है कि इस चक्कर में कोई फंस जायें, किसी का एक्सिडेंट हो जाएं तो किसी को कोई लेना-देना भी नहीं है सब एक दो दिन बाद या उसी समय फिर उसी रफ़्तार से उसी तरह से चलते दिख जायेंगे । इस समय जो दुनिया है वह तात्कालिकता में जीने को ही सबकुछ मान रही है उसके लिए यह नहीं है कि बाद में आराम से बात करते हैं । यदि आप किसी से कहते भी हैं कि बाद में आराम से बात करते हैं तो वह आपको न जाने किस जमाने का आदमी समझकर मुंह बिगाड़ेगा । आपको मिसफिट भी कह सकता है । यह भी कह दे कि इस जमाने का आदमी है ही नहीं कहां इसके साथ चल रहे हैं यह तो पिछले ही जमाने में खोया रहता है अभी भी बैलगाड़ी और तांगे पर बैठ जाने की बात करता है पर अब भला कौन रफ़्तार से मुंह मोड़कर रह सकता है।
पर हां यह भी सच है कि दुनिया कहीं भी चली जाएं आप जब सड़क पर चल रहे हैं तो आपको ही ध्यान रखना होगा कोई और आपका ध्यान रखने के लिए वहां नहीं है । यहां तो आंख नाक कान खोलकर चलना पड़ता है। कितनी जल्दी है हर कोई बस भाग रहा है। पता नहीं किस फेर में भाग रहा है । समझ में ही नहीं आता कि आदमी इतनी जल्दी में क्यों है ? कहां जाना है और इस तरह भला वह कहां पहुंचने की कोशिश कर रहा है। देखता हूं कि एकदम से बगल से ही बाइक लहराते हुए निकल गई, इतनी तेज गति में कि आंखों से ओझल होने में देर ही नहीं लगती । पर वह पहुंचा कहां अगले ही चौराहे पर रुका हुआ है, यहां रफ़्तार की कोई ऐसी जरूरत नहीं थी पर वह रफ़्तार में भाग रहा है। आजकल बाइक चलाने वाले बाइक चलाते नहीं है उड़ाते हैं। हवा में बात करते चलते हैं । दुनिया की गति में कौन किस तेजी से भाग रहा है इसे भला कोई और कैसे चेक करेगा। इसे तो हमें ही चेक करना है । गति पर सवार होकर दुनिया बस भाग रही है । दुनिया को भागने से फुर्सत नहीं है । जिसे जहां अवसर मिलता वहीं से भाग जाता है । आप यदि एक जगह पर रुके हैं तो आपके पास कुछ नहीं है। जब आप चलते हैं तो इस बहाने से दुनिया को भी एक नज़र देखते चलते हैं। आज की स्थिति, आज की सड़कों की व्यस्तता को देखना है तो शाम के समय से लेकर दूसरे पहर तक जो सड़कों पर दृश्य है उसे देखिए । यह चौराहा भी नहीं है बस एक सीधी सी सड़क है पर रफ़्तार से भरी हुई है, यहां जो जा रहा है उसे किसी की परवाह भी नहीं है वह बस भागा जा रहा है । एक मिनट में यहां से दस बाइक निकल जाती हैं और देख रहा हूं कि लगभग हर बाइक सवार मोबाइल पर बात करते करते जा रहा है । हद तो तब हो जाती है जब वह बाइक चलाते चलाते वाट्सएप मैसेज करने लगता है । बाइक सवार ही नहीं जो कार पर जा रहे हैं वो भी कम नहीं हैं सब बात करते करते ही ड्राइव कर रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि ये राह चलते चलते ऐसा कौन सा महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं जो अभी बात करना जरूरी ही हो , और यदि बात करना इतना जरूरी ही हो तो आराम से किनारे गाड़ी लगा कर बात कर लें किसी को दिक्कत नहीं होगी । आपके लिए हो सकता है कि बात करना जरूरी हो और आपके पास यह स्किल भी हो की चलते चलते बात कर लेते हों पर सड़क पर दूसरे भी तो चल रहे हैं जो आपके इस हुनर के आगे बोल्ड हो जाएं और एक्सिडेंट हो जाएं। बहुत सारे एक्सिडेंट केवल इसीलिए होते हैं कि गाड़ी चलाने वाला गाड़ी चलाने के साथ साथ कई सारे दूसरे कार्य भी करने लगता है । गाड़ी चलाना अपने आप में बहुत बड़ा कार्य है, इसे मल्टी टास्क के रूप में न करें, आप और अन्य की जान एक साथ खतरे में आ जाती है। कितना बड़ा संकट इस तरह से सामने रोज ही दिखता है , किससे कहा जाएं । सभी तो अपने को स्पेशल समझकर चल रहे हैं। जो गाड़ी पर बैठ गया है उससे भला कोई भी कैसे कुछ कहे, वह तो बड़ा आदमी है और बड़े आदमी को भला कोई कैसे टोंक सकता । आप कैसे कह सकते कि मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी कैसे चला रहे हैं । वह तो इसी तरह जायेगा और जायेगा, बचना आपको है तो आप बचें।
सही कहा। आजकल स्क्रीन टाइमिंग वास्तविक जीवन को खत्म करती जा रही है। आभासीय दुनियां ने व्यक्ति को अकेले ही जीना सिखा दिया है।
हां, आदमी इस कदर स्क्रीन में खो गया है कि कुछ और वह सोच ही नहीं पाता। हवा पानी आकाश सब जगह वह इसी स्क्रीन लाइट को जी रहा है।