
पुस्तक का नाम – गिलुभाई एवं अन्य कहानियाँ
लेखक का नाम – विवेक कुमार मिश्र
प्रकाशक – वेरा प्रकाशन
विद्या – कहानी संग्रह
पृष्ठ- 155

विवेक कुमार मिश्र का प्रथम कहानी संग्रह “गिलुभाई एवं अन्य कहानियाँ” केवल एक कहानी संग्रह नहीं, बल्कि जीवनानुभवों, सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदनाओं और सांस्कृतिक चेतना का साहित्यिक प्रतिबिंब है। इसमें संकलित दस कहानियाँ ग्रामीण जीवन की सहजता, प्रकृति के प्रति आत्मीयता, सामाजिक बदलाव और मानवीय संबंधों की गहराई को दर्शाती हैं। लेखक का दृष्टिकोण विशुद्ध भारतीय है, जिसमें परंपरा और आधुनिकता का सामंजस्य विद्यमान है। इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी वास्तविकता और संवेदनशीलता है, जो पाठक को सीधे उनके परिवेश से जोड़ती हैं। 1. चक्की पर चाक होता मन- यह कहानी ध्रुपद कुमार और लाली के माध्यम से प्रकृति और मनुष्य के गहरे संबंध को रूपायित करती है। चक्की के दो पाटों की भांति पुरुष और प्रकृति के बीच आकर्षण और संघर्ष का संतुलन यहाँ प्रतीकात्मक शैली में उकेरा गया है। ग्रामीण प्रेम की निश्छलता और जीवन की जटिलता इस कथा का भावनात्मक आधार है। प्रतीकों के माध्यम से लेखक ने जीवन-दर्शन की गहराइयों को स्पर्श किया है। 2. अथ संकटा प्रसाद- यह कथा महुआ प्रसाद और महुआ के वृक्ष के बीच अटूट संबंध को चित्रित करती है। यहाँ महुआ केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि लोक संस्कृति और सामाजिक चेतना का प्रतीक है। पेड़ों के संरक्षण की अवधारणा के साथ यह कहानी पर्यावरणीय विमर्श को भी जन्म देती है। संकटा प्रसाद जैसे हास्यबोध से भरपूर चरित्र कहानी को मनोरंजक बनाते हैं, जिससे यह पाठक के भीतर गहरी संवेदनशीलता जागृत करती है। 3. कटहल का पेड़- लेवा मिसिर जैसे ठेठ ग्रामीण पात्र के माध्यम से लेखक ने हास्य और ग्रामीण जीवन की सहजता को सजीव किया है। यह कहानी गाँव के यांत्रिक बदलाव और परंपरागत जीवनशैली के द्वंद्व को उजागर करती है। कटहल के पेड़ के प्रतीकात्मक उपयोग से यह कथा सामाजिक परिवर्तनों की बारीक पड़ताल करती है, जिससे यह मात्र हास्य-कथा न रहकर गहरे सामाजिक यथार्थ का चित्रण बन जाती है। 4. बेंगु चाचा और किस्तों में क़िस्से- बेंगु चाचा केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि लोककथाओं की जीवंत परंपरा का प्रतीक हैं। उनकी किस्सागोई समाज को आनंदित करती है और जीवन के संघर्षों से परे ले जाती है। यह कहानी दिखाती है कि ऐसे पात्र समाज में कितने आवश्यक हैं, जो दुनिया की जटिलताओं से मुक्त कर, जीवन को हास्य और आनंद से भर देते हैं। मौखिक परंपरा की सजीवता को यह कहानी विशेष रूप से स्थापित करती है। 5. गिलुभाई- संग्रह की शीर्षक कथा गिलुभाई समसामयिक यथार्थ और डिजिटल दुनिया के प्रभावों को बारीकी से विश्लेषित करती है। यह कहानी आभासी दुनिया और सामाजिक अस्तित्व के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है। लेखक ने यह दर्शाने में सफलता पाई है कि तकनीकी युग में मानवीय सरोकार किस प्रकार प्रभावित हो रहे हैं और कैसे व्यक्ति अपनी पहचान बनाए रखने के लिए संघर्षरत है। 6. सूप के ऊपर मलाई- इस कथा में सूप केवल एक पेय नहीं, बल्कि जीवन का प्रतीक बन जाता है। यह कहानी छोटी-छोटी खुशियों और मूल्यों को ‘रससिक्त’ करने की प्रक्रिया को दर्शाती है। भौतिकता के परे जीवन के गूढ़ अर्थों को समझने के लिए यह कथा प्रेरित करती है, जिससे इसकी प्रभावशीलता और भी बढ़ जाती है। 7. लाल गाड़ी, लाल साहब- इस कथा में ‘लाल’ रंग के माध्यम से सत्ता, मानवीय स्वभाव और व्यक्तित्व की परतों को खोला गया है। यह केवल एक गाड़ी और साहब की कहानी नहीं, बल्कि लाल रंग के प्रतीक के माध्यम से सामाजिक विडंबनाओं पर तीखी दृष्टि डालती है। लेखक ने मानवीय व्यवहार और उसके परिवर्तनशील स्वभाव का जो सूक्ष्म अवलोकन किया है, वह इस कहानी को विशिष्ट बनाता है। 8. स्कूटी और दीवार और खुदा नाम- यह कहानी जयपुर की ऐतिहासिकता और आधुनिकता के द्वंद्व को दर्शाती है। रिया और देवेश के माध्यम से केवल एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि वास्तुकला, शहर की आत्मा और समय के बदलावों को भी अभिव्यक्त किया गया है। लोकबोध और आधुनिक बोध का जो समन्वय इसमें देखने को मिलता है, वह पाठक को गहरे स्तर पर प्रभावित करता है। 9. जटेश्वर बनाम जामबहु- इस कथा में शराब के जाम के प्रतीक द्वारा सामाजिक चिंतन और कटु यथार्थ को बुना गया है। यह कहानी केवल नशे की समस्या तक सीमित नहीं, बल्कि उसके सामाजिक और मानसिक प्रभावों को भी गहराई से उजागर करती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण यह कहानी समाज में व्याप्त एक गंभीर मुद्दे पर विचार प्रस्तुत करती है। 10. खिड़की- यह कहानी दस खिड़कियों के माध्यम से जीवन-दर्शन को समझने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है। जीवन के विभिन्न पहलुओं को देखने और समझने का एक विस्तृत कैनवास यह कथा पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है। दार्शनिकता और सांकेतिकता से परिपूर्ण इस कहानी की विशेषता यह है कि यह पाठक को हर परिस्थिति में नए दृष्टिकोण से सोचने की प्रेरणा देती है।
इस संग्रह की कहानियाँ केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक, दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श प्रस्तुत करती हैं। ग्रामीण संवेदनशीलता व प्रकृति और मनुष्य के संबंध को इन कहानियों में अत्यंत आत्मीयता और सूक्ष्मता से उकेरा गया है। लेखक ने महुआ, कटहल, चक्की, लाल रंग, खिड़की जैसे प्रतीकों का प्रभावी प्रयोग किया है, जो कहानियों को गहरी अर्थवत्ता प्रदान करते हैं। भाषा सहज, प्रवाहमयी और भावनात्मक गहराई से युक्त है। संवादों में स्थानीयता और यथार्थ का रंग स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। कहानियों में ललित निबंध की सी संवेदनशीलता और सौंदर्यबोध झलकता है, जिससे वे केवल किस्सागोई न होकर, साहित्यिक दृष्टि से भी उत्कृष्ट बन जाती हैं। समस्त संग्रह देश, काल व वातावरण से सिक्त हैं।
प्रस्तुत कहानियाँ लेखक के जीवन से जुड़ी हैं, जिससे वे अत्यंत प्रामाणिक लगती हैं। सजीव चित्रण – पात्र, घटनाएँ और स्थान इतने जीवंत हैं कि पाठक स्वयं को कहानी के भीतर महसूस करता है। कहानियों में ग्रामीण जीवन, समाज की बदलती परिस्थितियाँ और मानवीय मूल्यों का गहरा विश्लेषण हैं। ये कहानियाँ केवल किस्सागोई नहीं, बल्कि जीवन की विविध परतों को खोलने वाली साहित्यिक कृतियाँ हैं, जो सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक पहलुओं को अपने ढंग से परिभाषित करती हैं। इनका शिल्प ललित निबंधों की तरह सजग, भावनात्मक और गूढ़ है।
निष्कर्षतः “गिलुभाई एवं अन्य कहानियाँ” केवल कहानियों का संग्रह नहीं, बल्कि जीवन की विविध परतों को खोलने वाला साहित्यिक दर्पण है। इसमें लोकबोध, पर्यावरण चिंतन, आधुनिकता के प्रभाव और सामाजिक बदलावों की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विवेक कुमार मिश्र की लेखनी सहज, संवेदनशील और प्रभावशाली है, जो पाठक को न केवल भावनात्मक रूप से जोड़ती है, बल्कि उसे सोचने पर भी मजबूर करती है। यह संग्रह निश्चित रूप से हिंदी कथा-साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है और साहित्य प्रेमियों तथा शोधार्थियों के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय कृति सिद्ध होगी।
समीक्षक व सौन्दर्यविद
डॉ. रमेश चन्द मीणा
सहायक आचार्य- चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा
मो. न. 9816083135