
कोटा केयर्स : बिहार शेखपुरा के मजदूर परिवार के सुजीत की कोटा ने बदली जिंदगी
मजबूरी : फीस के पैसे नहीं थे, कोचिंग ने दी रियायत, पीजी ने नहीं मांगा किराया
बदकिस्मती : जेईई-मेन-2 में कुछ सैकेंड की देरी से परीक्षा देने से चूका
मजबूरी हो या बदकिस्मती यदि मजबूत हौसला है तो हर जंग जीती जा सकती है। कॅरियर सिटी कोटा की केयरिंग और मजबूत हौसले का एक और बड़ा उदाहरण सामने आया है। कहानी बिहार के शेखपुरा निवासी छात्र सुजीत माधव की है। सुजीत माधव ने जेईई-मेन 2025 क्रेक की है और जेईई-एडवांस्ड की तैयारी कर रहा है। सुजीत जेईई-मेन-2 में परीक्षा देने से चूक गया, क्योंकि परीक्षा केन्द्र तक साइकिल से गया था, साइकिल लॉक कर जा रहा था कि सामने ही गेट बंद हो गए और सुजीत बाहर ही रह गया। अब जेईई-मेन-1 के रिजल्ट 98.555 पर्सेन्टाइल स्कोर के आधार पर जेईई एडवांस्ड के लिए क्वालीफाई किया है। यही नहीं सुजीत अपनी मां की बीमारी को लेकर भी पिछले दो साल से परेशान है, लेकिन हार नहीं मानी। सुजीत को एलन कोटा ने दोनों वर्ष शुल्क में विशेष रियायत भी दी और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। सुजीत ने जेईई-मेन 2025 में एआईआर-22268 और ओबीसी कैटेगरी रैंक 5625 प्राप्त की है।
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मां को पहले ब्रेन हेमेरेज फिर कैंसर
बिहार के शेखपुरा निवासी सुजीत ने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है। परिवार को रोज खाने के लिए रोज कमाना पड़ता है। पिता चुनचुन कुमार खेती करते हैं और मां किरण देवी गृहिणी है। खेती से घर का अनाज जितना हो पाता है, बाकि समय मजदूरी या छोटे-मोटे काम कर परिवार का खर्च चलाना पड़ता है। घर भी आधा कच्चा आधा पक्का बना हुआ है। सुजीत पढ़ाई में होशियार था, इसलिए वर्ष 2023 में कोटा आया और एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया। पिता ने गांव में साहूकारों से ब्याज पर पैसा उधार लेकर सुजीत को पढ़ने भेजा। सुजीत यहां अच्छा प्रदर्शन कर रहा था लेकिन 8 नवंबर 2023 को मां को ब्रेन हेमरेज हो गया। मां से लगाव होने के कारण सुजीत काफी परेशान हुआ। कुछ दिनों के लिए घर गया लेकिन 12वीं की परीक्षा देनी थी इसलिए भाई के समझाने पर वापिस कोटा आ गया। यहां फैकल्टीज ने मोटिवेट किया और उसने 12वीं कक्षा 81 प्रतिशत अंकों से पास की। सुजीत ने 10वीं कक्षा 85 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। पिछले साल मां को कैंसर ने घेर लिया, मां का इंलाज एम्स पटना में चल रहा है।
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कोटा केयर्स : पीजी संचालिका ने दो साल से किराया नहीं लिया
सुजीत ने बताया कि हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और कोटा में पढ़ाई करना सपने के जैसा था लेकिन हिम्मत कर के जैसे-तैसे कोटा आ गया। कोटा के लोग काफी अच्छे और सपोर्टिव है। मैं पिछले दो साल से तलवंडी में जिस पीजी में रह रहा हूं, उसका मुश्किल से दो या तीन बार किराया दिया है। पीजी की संचालिका ने बोला हुआ है कि आप पढ़ाई करो, किराए की टेंंशन मत लो, जिस दिन इंजीनियर बन जाओ तो मुझे बता देना। मेरे लिए वही किराया है। इसी तरह फीस भरने के पैसे नहीं थे तो एलन ने 70 पर्सेर्न्ट तक फीस में रियायत दे दी। दो तीन साल से इसी तरह फीस दे रहा हूं।
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कोटा ने ऐसे बदली जिंदगी, घर से भागकर आया था सबसे बड़ा भाई
मजदूर परिवार के तीन बेटों के इंजीनियर बनने की कहानी वर्ष 2016 में शुरु हुई थी। जब सबसे बड़ा बेटा रजनीश इंजीनियर बनने का सपना लेकर बिना बताए कोटा आया था। रजनीश ने बताया कि परिवार की स्थिति कोटा भेजने की नहीं थी इसलिए पापा ने साफ मना कर दिया था। मुझे कोटा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन ये पता था कि कोटा-पटना ट्रेन कोटा जाती है। इसलिए जेब में पांच सौ रूपए लेकर घर से भागकर कोटा आ गया। मुझे याद नहीं लेकिन, मैंने शायद ट्रेन का टिकट भी नहीं खरीदा था। बस रिस्क लेकर ट्रेन में बैठ गया। यहां आने के बाद लोगों से पूछा और एलन की समन्वय बिल्डिंग आ गया। यहां मुझे संतोष सर और आरके खंगार सर मिले। मैंने इनको स्थिति समझाई। उन्होनें एक हॉस्टल में रखवा दिया। हॉस्टल संचालक ने भी किराया नहीं मांगा। कोचिंग में भी दो महीने तक ऐसे ही पढ़ाई की इसके बाद दादाजी ने पैसों की व्यवस्था की। इसके बाद वर्ष 2019 में रजनीश अपने सबसे छोटे भाई सुजीत को लेकर भी कोटा आ गया। उस समय सुजीत 9वीं कक्षा में था। कोटा में रहने के दौरान रजनीश ने बीच वाले भाई मृत्युंजय को गाइड किया और उसे स्टडी मैटेरियल भी भेजा, जिससे मृत्युंजय ने पढ़ाई की। वर्ष 2020 में रजनीश ने जेईई मेन दिया और एडवांस के लिए क्वालीफाई किया लेकिन रैंक पीछे आने की वजह से कॉलेज नहीं मिला। ऐसे में जेईई मेन के आधार पर नालंदा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की मैकेनिकल ब्रांच में एडमिशन ले लिया। इसके बाद वर्ष 2022 में मृत्युंजय ने भी नालंदा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की इलेक्ट्रिकल ब्रांच में एडमिशन लिया।
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मां की बीमारी के कारण बीच में छोड़ी बीटेक
सुजीत के बड़े भाई रजनीश कुमार ने बताया कि हम तीन भाई और एक बहिन हैं। सबसे बड़ा मैं हूं और मैं पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक कर रहा था। मां की बीमारी की वजह से मुझे बीटेक बीच में छोड़नी पड़ी लेकिन सुजीत और बीच वाले भाई को पढ़ा रहा हूं। सुजीत घर पर रहता था तो घास काटने जाता था, गाएं चराने जाता था और घर के अन्य कामों में व्यस्त रहता था लेकिन पढ़ाई में होशियार था। जब ये 8वीं में था तो 10वीं क्लास की ट्रिग्नोमेट्री सॉल्व कर देता था। इसको देखते हुए ही मैंने पापा से बात की और बड़ी मुश्किल से सुजीत को कोटा भेजने के लिए तैयार किया।