अकलंक शोध संस्थान का पाण्डुलिपि संरक्षण कार्यशाला का आयोजन

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-पाण्डुलिपी एवं धर्म ग्रंथों के संरक्षण की प्रक्रिया की दी जानकारी

कोटा। अकलंक शोध संस्थान कोटा की ओर से शनिवार को श्रुत पंचमी एवं स्थापना दिवस के अवसर पर धरोहर को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से एक दिवसीय पाण्डुलिपि संरक्षण कार्यशाला का आयोजन तलवण्डी जैन मन्दिर के स्वध्याय भवन में किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत द्वीप प्रवज्जलन से की गई।

संस्थान के अध्यक्ष पीयूष जैन ने बताया कि अकलंक शोध संस्थान संस्थान की स्थापना श्रुत पंचमी के दिन सन 2009 में अकलंक विद्यालय परिसर में की गई थी। संस्था ने इतिहास, दर्शन, धर्म, भूगोल, ज्योतिष और आयुर्वेद से संबंधित पाँच हजार से अधिक पांडुलिपियों को संरक्षित एवं संग्रहित किया है। यह प्रक्रिया अनवरत जारी है।

संस्थान के सचिव ऐश्वर्य जैन ने बताया कि पांडुलिपियों को पारंपरिक तरीके से संग्रहित करने की पूरी प्रकिया होती है। पधारे सभी महानुभावों ने संस्थान के प्रयासों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की आर कहा कि इसी तरह के कार्य से हमारी प्रचीन धरोहर को सुरक्षित रख पायेगें।

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संस्थान की समन्वयक डॉ संस्कृति जैन ने पाण्डुलिपि संरक्षण की कार्यप्रणाली के बारे में समझाया। उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों को संरक्षित करके पारंपरिक लाल कपडे में लपेटा जाता है। पांडुलिपियों के नये भंडारण तरीकों की आवश्यकता है क्योंकि पांडुलिपियों को पारंपरिक तरीके से संग्रहित किया जाता है। ध्यान नहीं देने पर उनके क्षतिग्रस्त होने का खतरा रहता है। कई पुराने मंदिरों एवं स्थानों पर हजारों पांडुलिपियां रखी है। उन्हें बेहतर संरक्षण की आवश्यकता है। बेहतर संरक्षण के लिये उचित सफाई, दस्तावेजीकरण और भंडारण विधि की आवश्यकता है। पांडुलिपियों के खराब होने का मुख्य कारण भंडारण प्रणाली है।

पांडुलिपीयों से सम्बन्धित किसी भी समस्या के लिए एवं भिति चित्रों, कलम के चित्रों, व अन्य अमूल्य कला कृतियां समाप्त न हो पायें अतः सभी अमूल्य धरोहरों के संरक्षण हेतु अकलंक शोध संस्थान कोटा में प्रारम्भ होने जा रही रसायन शाला से सम्पर्क किया जा सकता है।

सकल समाज के अध्यक्ष प्रकश बज, भाग चन्दजी टोंग्या, जे. के. जैन, सुरेश जी हरसोरा, जैन मन्दिर, तलवण्डी के अध्यक्ष अशोक पहाडिया, संस्थान के उमेश अजमेरा अनिमेष जैन, पंडित कल्याण चन्दजी, महिला मण्डल की अध्यक्ष निशा वेद, अजय जैन सी ए. धर्म चन्द सी.ए. महावीर जी बाकलीवाल, संजय निर्माण आदि ने कार्यक्रम का शुभारम्भद्वीप प्रवज्जलन द्वारा किय। संस्थान के कोषाध्यक्ष ललित गंगवाल ने सभी को धन्यवाद दिया ।

दिल्ली से आए सीनियर संरक्षण सलाहकार अमित राणा ने कार्यशाला में सभी ग्रंथों (हस्तलिखित व छपे) व अन्य अमूल्य निधियों की सार-सम्भाल की प्रक्रिया बताई और सुझाव दिये। उन्होंने कहा कि ग्रंथों व पांडुलिपीयों को सीधी धूप से बचावें, रोजाना कुछ समय के लिए अलमारियों को खुला रखे, जिससे वायु का संचरण हो सकें, हर माह विशेष सफाई की जाये, जिससे धूल व कीडों से बचाव हो सके। ग्रंथों को लाल या पीले रंग के खादी/सूती कपडें के वेश्टन में लपेट कर फीते से बांध कर रखें। सूर्य के प्रकाश के लिए भंडार के कमरे में पर्याप्त खिडकियां हों। भंडारण ऐसे स्थान पर हो जहाँ जलवायु का प्रभाव न पडे। फफूंद, कीड़े-मकोडे, धूप, अंधेरा, सीलन आदि से बचाव का उचित प्रबन्ध होना आवश्यक है। खुले दस्तावेज, कागज पर बने चित्रों को टिश्यू पेपर में लपेट कर हाथ के बने कागजों / पुट्टों के बीच में रखा जाना सुरक्षित रहेगा। ग्रंथों को यधा सम्भव स्टील की अलमारीयों में रखें।

शास्त्रों के रख-रखाव हेतु पारम्परिक औषधियां:-कीड़े-मकोडे दीमक आदि से बचाव हेतु छाया में सुखाई हुई नोग की पत्तियां / नीग की खली आदि समय-समय पर अलगारियों में डालना चाहिए। अजवाइन की पोटलियों बना कर अलमारीयों के खानों में रखी जायें, जिन्हें कुछ माह में बदला जाना चाहिए। सभी प्रकार के कीडों के लिए निम्न औषधियों का मिश्रण पोटलियों में बांध कर रखा जायें। यह छः माह तक काम में लाया जा सकता है। औषधियाः- 1. कलोंजी 200 ग्राम, 2 घुडबच 100 ग्राम, 3. दाल चीनी 100 ग्राम, 4. लोंग 25 ग्राम, 5. पीपर 25 ग्राम, 6. कपूर 7 ग्राम। नेथलीन की गोली कीडों से बचाव के लिए रखें।

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