
-देशबन्धु में संपादकीय
कर्नाटक के बेलगावी में आयोजित अधिवेशन के पहले दिन कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ़ लड़ाई तेज करने का निश्चय किया है। अधिवेशन के पहले ही दिन कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐलान किया है कि हम नेहरू-गांधी की विचारधारा, बाबा साहेब अंबेडकर के सम्मान के लिए आखिरी सांस तक लड़ेंगे। इसके साथ ही कुछ महत्वपूर्ण निर्णय कांग्रेस ने लिये हैं। जिसमें संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया में सुधार लाने, किसानों के हितों की रक्षा करने, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को तेज करने की रणनीति बनाई जायेगी। श्री खड़गे ने कहा है कि 2025 संगठन को मजबूत करने का साल होगा, पार्टी में खाली पदों को भरा जायेगा। उदयपुर घोषणापत्र को पूरी तरह लागू किया जायेगा। पार्टी को चुनाव जीतने के लिए आवश्यक कौशल से लैस किया जायेगा। साथ ही वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध लोगों को ढूंढा जाएगा जो संविधान और भारत के विचार की रक्षा करेंगे।
खड़गे ने कहा कि केवल कड़ी मेहनत पर्याप्त नहीं, समय पर ठोस रणनीति, सही दिशा, नई शक्ति, नेतृत्व को मौका देने की जरूरत है। हमारे पास गांधी-नेहरू की विरासत है। बेलगाव से नए संकल्प के साथ लौटेंगे, यह भरोसा श्री खड़गे ने जताया। वहीं कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी इस अधिवेशन में शामिल नहीं हो पाईं, लेकिन अपने संदेश में उन्होंने कहा कि दिल्ली में सत्ता में बैठे लोगों से महात्मा गांधी की विरासत ख़तरे में है। जिन संगठनों ने कभी स्वतंत्रता के लिए लड़ाई नहीं लड़ी, उन्होंने महात्मा गांधी का कटु विरोध किया, विषाक्त वातावरण बनाया जिसके कारण उनकी हत्या कर दी गई। आइये, हम व्यक्तिगत रूप से, सामूहिक रूप से, पार्टी के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्परता की नई भावना के साथ संकल्प के साथ आगे बढ़ें।
गौरतलब है कि ठीक सौ वर्ष पूर्व इसी स्थल पर कांग्रेस का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अधिवेशन हुआ था जो महात्मा गांधी द्वारा की गयी सदारत का पार्टी का एकमेव अधिवेशन है। जिस प्रकार से उस अधिवेशन में गांधीजी ने आपसी भेदभाव भुलाकर फिरंगियों के खिलाफ़ लड़ाई तेज करने और आजादी हासिल करने तक शांत न बैठने का आह्वान किया था, इस अधिवेशन में भी कांग्रेस ने संकल्प लिया कि जनविरोधी और निरंकुश हो चुकी भाजपा सरकार के खिलाफ़ देशव्यापी आंदोलन चलाया जायेगा। इस अधिवेशन के लिये कांग्रेस ने अपना घोष वाक्य ‘जय बापू-जय भीम-जय संविधान’ निर्धारित किया है, जो अपने आप में यह बतलाने के लिये काफ़ी है कि पार्टी गांधीवादी मूल्यों के साथ संविधान को बचाने के लिये देश में बड़ी लड़ाई छेड़ेगी।
लोकसभा के लगातार तीन चुनाव जीतते हुए पिछले 11 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने जिस तरह से सारी शक्तियों का केन्द्रीकरण किया है और निरंकुश कार्य पद्धति अपना रखी है, उसके विरूद्ध कांग्रेस संसद के भीतर व बाहर संघर्ष तो छेड़े हुए ही है, उसने इस अधिवेशन में जो संकल्प लिये हैं वह उसी लड़ाई को तेज व धारदार करेगी। उम्मीद की जानी चाहिये कि संगठन को नया रूप देते हुए नवसंकल्पों के साथ पार्टी बेलगावी से निकलेगी और पूरे देश में अपने निश्चयों को पूरा करने हेतु जी-जान से जुट जायेगी।
‘नव सत्याग्रह’ के नाम से आयोजित बेलगावी अधिवेशन ऐसे समय में हो रहा है जब देश अनेक तरह के अच्छे-बुरे घटनाक्रमों के बीच से होकर गुजर रहा है। जो सामने दिख रहा है, वह यह कि 11 वर्षों में मोदी एंड कम्पनी ने लोकतांत्रिक व संसदीय मर्यादाओं तथा परम्पराओं को तार-तार कर दिया है, तमाम संवैधानिक संस्थाओं को शक्तिहीन कर देश पर एकछत्र राज कायम किया है और लोकहितों को पूरी तरह से उपेक्षित करते हुए एक बदहाल देश खड़ा कर दिया है। इतना ही नहीं, विरोध की आवाज को बन्द करने के लिये उसने न केवल विपक्षी दलों में अनैतिक तरीकों से तोड़-फोड़ की है, बल्कि प्रेस की आज़ादी को भी कुचलकर रख दिया है। मोदी एवं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा देश में लोकतंत्र को नेस्तनाबूद करने के लिये घृणित अभियान चलाये गये। उन्होंने पहले ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ और फिर ‘विपक्ष मुक्त भारत’ के न केवल नारे दिये बल्कि उन्हें जमीनी स्तर पर उतारने के लिये ‘ऑपरेशन लोटस’ चलाया। विपक्षी नेताओं को लालच देकर या केन्द्रीय जांच एजेंसियों के जरिये डरा-धमकाकर अपनी पार्टी में शामिल किया और विरोधी दलों की निर्वाचित कई सरकारें गिराई गयीं। अपनी नापाक करतूतों को ‘डबल इंजन सरकार’ का नाम देकर देश के संघीय ढांचे को ध्वस्त किया गया है।
फ़िलहाल जो मुद्दा सर्वाधिक गरमाया हुआ है, वह है 17 दिसम्बर को राज्यसभा में अमित शाह द्वारा संविधान निर्माता डॉ. बाबा साहेब भीमराव का अपमान करना। इसे कांग्रेस ने संसद के भीतर व बाहर जोरदार ढंग से उठाया है। सम्पूर्ण विपक्ष सहित उसने शाह की माफ़ी व इस्तीफे की मांग की है, जिसे मानना तो दूर मोदी समेत सारा सत्ता पक्ष शाह के बचाव में उतर आया है। इसे लेकर राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन भी कांग्रेस ने आयोजित किया। इस विमर्श को उसका आगे बढ़ाना इसलिये स्वाभाविक है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता पर आधारित समतामूलक व न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिये बनाया गया संविधान एक तरह से कांग्रेस की ही देश को सौगात है। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में जो अंतरिम सरकार बनी थी, उसने ही अंबेडकर को कानून मंत्री बनाया था तथा उनकी अध्यक्षता में बने इस संविधान को लागू किया था।
इसलिये कांग्रेस के लिये अंबेडकर का अपमान स्वाभाविकत: संविधान का अपमान है, संविधान की अवमानना निश्चित ही लोकतंत्र की अवमानना है तथा लोकतंत्र की हिकारत अंतत: देश की हिकारत है, हमारी पूरी संसदीय प्रणाली का अपमान है। अधिवेशन में कांग्रेस ने तय किया कि जब तक शाह क्षमा नहीं मांगते और पीएम उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त नहीं करते, कांग्रेस अपनी मांग पर अटल रहेगी। वैसे इस शाह विरोधी आंदोलन को व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि मुद्दे के स्तर पर देखा जाना चाहिये क्योंकि पिछले कुछ समय से कांग्रेस ने सामाजिक न्याय का जो परचम लहराया है, अंबेडकर का सम्मान उसी से जुड़ा हुआ है। आरक्षण तथा दलित-पिछड़े-आदिवासियों आदि के खिलाफ़ भाजपा की मानसिकता शाह के बयान से उजागर हुई है।
उपरोक्त सारे तथ्यों व पार्श्वभूमि को ख़्याल में रखते हुए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में संगठन को मजबूत करने का भी तय किया गया। निश्चित रूप से यह भी समय की मांग है। कांग्रेस को इस निर्णायक दौर में ऐसे कार्यकर्ता व नेता चाहिये जो निडर होकर मोदी, शाह और भाजपा का सामना कर सकें तथा उनकी संगठन में अडिग निष्ठा हो।