
जब बुरे वक्त में लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस और श्रीमती सोनिया गांधी का साथ दिया था तो फिर लालू प्रसाद यादव के बुरे वक्त में कांग्रेस और गांधी परिवार को भी लालू प्रसाद यादव का साथ देना चाहिए। शायद इसीलिए दिल्ली में बिहार को लेकर कांग्रेस की बैठक को टाला गया और बिहार का निर्णय सोनिया गांधी के हाथ में सौंप दिया गया। सोनिया गांधी जो कहेंगी वही बिहार में कांग्रेस करेगी।
-देवेंद्र यादव-

बिहार: 20 साल बाद फिर एक बार, बुरे वक्त में साथ देने का समय आया है लेकिन इस बार यह समय कांग्रेस का आरजेडी को साथ देने का है। इसी साल के अंत में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं। लगातार राज्यों के विधानसभा चुनाव हार रही कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रयोग बिहार विधानसभा चुनाव में भी करना चाहती है। कांग्रेस बिहार में भी दिल्ली की तरह अपने दम पर चुनाव लड़ने की संभावनाएं तलाश रही है। मगर कांग्रेस के सामने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव कि राजनीतिक जोड़ी और उनकी एक दूसरे के प्रति वफादारी शायद आड़े आ रही है। यही वजह है कि बिहार को लेकर 12 मार्च को दिल्ली में कांग्रेस की बड़ी बैठक थी जिसमें बिहार के तमाम कांग्रेसी नेताओं को बुलाया था। इस बैठक में तय होता कि बिहार में कांग्रेस को क्या करना है। अपने दम पर चुनाव लड़ना है या फिर लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी से गठबंधन यथावत रखना है। मगर इस महत्वपूर्ण बैठक को कांग्रेस ने टाल दिया। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगे कि कांग्रेस ने बिहार को लेकर होने वाली महत्वपूर्ण बैठक को क्यों टाला। क्या यह सोनिया गांधी का दबाव था क्योंकि सोनिया गांधी चाहती हैं कि बिहार में कांग्रेस और राजद का गठबंधन नहीं टूटे। दोनों पार्टिया मिलकर चुनाव लड़े। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के बुरे वक्त 2004 और 2009 में लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी ने कांग्रेस का साथ दिया था और कांग्रेस ने एक दशक तक केंद्र की सत्ता पर राज किया। यही नहीं कई अवसरों पर लालू प्रसाद यादव ने श्रीमती सोनिया गांधी और गांधी परिवार को भाजपा नेताओं के राजनीतिक हमलों का जवाब देकर डिफेंड भी किया। 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद लालू प्रसाद यादव ने अन्य राजनीतिक दल और नेताओं की तरह, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से समझौता नहीं किया। लालू प्रसाद यादव भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ निरंतर बोलते रहे और लड़ते रहे। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मगर लालू प्रसाद यादव ने भाजपा और नरेंद्र मोदी से समझौता नहीं किया और अपनी बात पर कायम रहे। शायद इसीलिए कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी नहीं चाहती कि एक ऐसे समय पर जब लालू प्रसाद यादव का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है और भाजपा उनके और उनके परिवार के ऊपर लगातार राजनीतिक हमले कर रही है। लालू प्रसाद यादव परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है। जब बुरे वक्त में लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस और श्रीमती सोनिया गांधी का साथ दिया था तो फिर लालू प्रसाद यादव के बुरे वक्त में कांग्रेस और गांधी परिवार को भी लालू प्रसाद यादव का साथ देना चाहिए। शायद इसीलिए दिल्ली में बिहार को लेकर कांग्रेस की बैठक को टाला गया और बिहार का निर्णय सोनिया गांधी के हाथ में सौंप दिया गया। सोनिया गांधी जो कहेंगी वही बिहार में कांग्रेस करेगी। लेकिन आरजेडी इस मुगालते में नहीं रहे कि पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम 2025 में दोहरा देगी या उससे बेहतर परिणाम दे देगी क्योंकि 2025 में भाजपा ओड़ीशा, महाराष्ट्, हरियाणा और दिल्ली की तरह चुनाव जीतने का भरसक प्रयास करेगी। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं और कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं की भावनाओं को समझते हुए कांग्रेस को अपने दम पर चुनाव लड़ने की योजना बनाते नजर आ रहे हैं। राहुल गांधी ने हाल ही में दो बार बिहार का दौरा किया जहां उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मंत्रणा कर बिहार कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी मोहन प्रकाश को बदलकर अपने खास सिपाहसालार कृष्णा अल्लावरू को बिहार का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया।
राहुल गांधी और श्रीमती प्रियंका गांधी दोनों पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव को बिहार में बड़ी जिम्मेदारी देना चाहते हैं मगर तेजस्वी यादव नहीं चाहते। लेकिन इससे नुकसान कांग्रेस को कम तेजस्वी यादव को ज्यादा होगा क्योंकि पप्पू यादव ने तेजस्वी यादव को 2024 के लोकसभा चुनाव में बता दिया जब उन्हें कांग्रेस पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाना चाहती थी मगर तेजस्वी यादव कांग्रेस को पूर्णिया सीट नहीं देना चाहते थे और कांग्रेस को सीट नहीं दी और तेजस्वी ने पप्पू यादव के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया। पूर्णिया लोकसभा सीट को पप्पू यादव ने निर्दलीय के रूप में जीत लिया। पूर्णिया की जीत से पप्पू यादव को तेजस्वी यादव से और अधिक मजबूत नेता बन कर उभरे। पप्पू यादव लगातार संसद से लेकर सड़क पर कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि कांग्रेस बिहार में पप्पू यादव का साथ कैसे छोड़ दे। पप्पू यादव भी कांग्रेस के बुरे वक्त में कांग्रेस और गांधी परिवार के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। पप्पू यादव बुरे वक्त में कांग्रेस के साथ खड़े हुए हैं और लालू प्रसाद यादव ने भी बुरे वक्त में कांग्रेस का साथ दिया था। फैसला सोनिया गांधी के हाथ में हैं उन्हें क्या करना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)