
-देवेंद्र यादव-

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, यह तो स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस पर गांधी परिवार का कोई नियंत्रण नहीं है। जिन लोगों का यह भ्रम है और गांधी परिवार पर आरोप लगाते है कि कांग्रेस गांधी परिवार की जेब में है और कांग्रेस पर गांधी परिवार का पूरा नियंत्रण है तो वह हरियाणा विधानसभा के चुनाव नतीजो को देखकर अपने भ्रम को दूर कर सकते हैं। एक जमाने में गांधी परिवार का कांग्रेस पर नियंत्रण रहता था। जिन लोगों ने श्रीमती इंदिरा गांधी और 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी का दौर देखा है वे इस बात को जानते हैं। इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के उस दोर पर नजर डालें तो उस दौर में कांग्रेस आज से अधिक मजबूत थी, क्योंकि उस दौर में कांग्रेस के किसी भी नेता की हिम्मत नहीं होती थी कि वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सके। जरा भी भनक लगने पर उस नेता को उसकी राजनीतिक हैसियत बताने में गांधी परिवार देर नहीं लगाता था। इसकी वजह एक यह भी थी कि इंदिरा और सोनिया के दौर में उनके सलाहकार वह लोग थे जो इंदिरा और सोनिया गांधी को राजनीतिक सलाह तो देते थे मगर राजनीति में दखल नहीं देते थे। वे सलाहकार ना ही चुनावी राजनीति करते थे। आरके धवन और बी जॉर्ज दोनों इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के ऐसे सलाहकार थे जिनका दबदबा हुआ करता था मगर दोनों नेता कभी भी चुनाव नहीं लड़े और ना ही कांग्रेस की सरकार में किसी राजनीतिक पद पर रहे।
इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के उस दौर में कांग्रेस ने अनेक राजनीतिक झटके सहे, मगर पार्टी पर दोनों नेताओं का नियंत्रण था और कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर भरोसा था इसलिए कांग्रेस कमजोर होने के बाद, मजबूत हुई और सत्ता में वापसी की।
मगर मौजूदा दौर में कांग्रेस मजबूत होने का नाम तक नहीं ले रही है इसकी वजह कांग्रेस पर गांधी परिवार का नियंत्रण या तो खत्म हो गया या फिर ढीला पड़ गया।
मौजूदा दौर में कांग्रेस को कुछ चुनिंदा नेता ही चला रहे हैं। यही चुनिंदा नेता चुनावी रणनीति बनाते हैं और चुनाव लड़ते हैं और लडाते हैं। प्रत्याशियों का चयन भी यही नेता करते हैं। यही चुनिंदा नेता कांग्रेस के भीतर राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाई देते हैं और समय आने पर राज्य स्तर पर भी नजर आते हैं। इन चुनिंदा नेताओं का पार्टी पर नियंत्रण होने के कारण कांग्रेस एक दशक बीत जाने के बाद भी संभल नहीं पा रही है। इन नेताओं के दखल के कारण कांग्रेस को राज्यों में हार का सामना करना पड़ रहा है। लगता है राहुल गांधी के साथ कांग्रेस का आम कार्यकर्ता तो है मगर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के साथ अभी भी नहीं है। कांग्रेस के आम कार्यकर्ता और जनता इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के दौर को इसलिए याद करती है क्योंकि उस दौर में, यदि कांग्रेस का नेता जरा भी कांग्रेस को कमजोर करते हुए देखा जाता था उसे तुरंत बाहर कर दिया जाता था और उस नेता को तुरंत उसकी राजनीतिक हैसियत बता दी जाती थी। मगर अब वह दोर चला गया है। अब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का इस्तेमाल केवल प्रचार में करते हैं। रणनीति तो वही बनाते हैं और चुनाव भी वही लड़ते और लडाते हैं।
हरियाणा चुनाव में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया इसका उदाहरण है। राहुल गांधी के अमेरिका जाते ही जिस तरह से प्रत्याशियों की घोषणा की उससे समझा जा सकता है कि राहुल गांधी का कांग्रेस पर कितना नियंत्रण है और कितना दकल है। कांग्रेस पर पूरा नियंत्रण चुनिंदा नेताओं के हाथ में ही दिखाई दिया। हरियाणा चुनाव समिति के अध्यक्ष अजय माकन और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मिलकर टिकटो में जो मनमानी की और मतदान से कुछ घंटे पहले अपने भाई के दामाद अशोक तंवर को अजय माकन ने कांग्रेस में शामिल कराया यह भी स्पष्ट करता है कि कांग्रेस पर गांधी परिवार का नियंत्रण नहीं है बल्कि कांग्रेस पर नियंत्रण है चुनिंदा नेताओं का। यदि कांग्रेस को ईमानदारी से मजबूत करना है तो गांधी परिवार को पार्टी को ऐसे तिकडबाज चुनिंदा नेताओं से मुक्त करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)