हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चौंकाने वाले नतीजे

kheda

-देशबन्धु में संपादकीय 

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर दोनों राज्यों में क्या भाजपा सत्ता हासिल कर पाएगी या कांग्रेस उसे मात दे देगी, ये सवाल लंबे वक्त से सत्ता के गलियारों में तैर रहा था। दोनों ही राज्यों में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी, क्योंकि हरियाणा में पिछले 10 बरसों से भाजपा का शासन रहा और वहीं जम्मू-कश्मीर में पूरे दस साल बाद चुनाव करवाए गए। इस बीच 5 अगस्त 2019 को जब भाजपा ने अचानक यह ऐलान किया कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए वापस लिया जा रहा है और इसके साथ ही उसे दो हिस्सों में बांटकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेशों में तब्दील किया जा रहा है, तब पूरा देश स्तब्ध रह गया था। इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ आज़ादी के बाद किए गए वादे को तोड़ने की तरह देखा गया। लेकिन भाजपा ने राष्ट्रवाद की आड़ में यह वादाखिलाफ़ी की और दावा किया कि उसके इस फ़ैसले में जनता की भी मर्जी है। हालांकि अब जो नतीजे सामने आए हैं, उनसे पता चलता है कि न जम्मू, न कश्मीर की जनता को भाजपा का फ़ैसला मंजूर था।

आठ अक्टूबर, मंगलवार को आए नतीजों के विश्लेषण अब लंबे वक़्त तक चलेंगे और जानकार तरह-तरह से इनके अर्थ तलाशने की कोशिश करेंगे। लेकिन नतीजों को देखकर यह कहा जा सकता है कि इस बार कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ गई। हालांकि दो राज्यों में एक में जीत और एक में हार का विश्लेषण तो यही होता है कि मुकाबला बराबरी पर छूटा है। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन को जीत मिली तो भाजपा को हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में आने का मौका मिला है। हरियाणा में भी शुरुआती रुझान कांग्रेस के पक्ष में ही थे और कांग्रेस अब भी यही मान रही है कि ईवीएम के जरिये कोई खेल हुआ है, जिस वजह से जीती हुई बाजी हाथ से निकल गई है। मतगणना होने के दौरान ही कल एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में कांग्रेस ने यह आरोप लगाया है कि यह तंत्र की जीत है, यानी मशीनरी के कारण भाजपा जीती है। कांग्रेस का कहना है कि जिन ईवीएम में 99 प्रतिशत चार्जिंग थी, उनमें बीजेपी को जीत मिली, और जिनमें 70 प्रतिशत चार्जिंग थी यानी जो मशीनें सामान्य तरीके से चल रही थीं, उनमें कांग्रेस जीती। कांग्रेस ने हरियाणा में हुई इस संभावित गड़बड़ी की शिकायत बाकायदा चुनाव आयोग से भी की है। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग आगे इस पर कोई संज्ञान लेकर कार्रवाई करता है या सब कुछ ठीक है, का रटा रटाया जवाब देता है।

वैसे दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कुछ दिन पहले कहा था कि सब इंतज़ाम हो गया है और भाजपा जीत रही है। इसी से गड़बड़ी के इशारे मिल रहे थे कि नायब सिंह सैनी को कौन से इंतज़ाम करने का जिम्मा दिया गया था, क्योंकि चुनाव करवाना तो चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। बहरहाल, अब जो नतीजे हैं, उन्हें स्वीकार करना ही होगा। भाजपा ने हरियाणा की सत्ता फिर से हासिल कर ली, तो कहीं न कहीं इसका श्रेय उसकी चुनावी और सांगठनिक क्षमता को भी दिया जाना चाहिए। छह महीने पहले मुख्यमंत्री बदलने का फैसला हो या कांग्रेस के खिलाफ बी, सी, डी टीमों को खड़ा करना सबका असर सामने है। हालांकि जिस तरह चुनाव प्रचार ख़त्म होने के दो-तीन दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हरियाणा से रुख़सत हो चले थे, उसके बाद कयास लगने शुरु हो गए थे कि क्या इन दोनों को जान बूझकर प्रचार से दूर रखा जा रहा है ताकि हारे तो ठीकरा दूसरों के सिर फूटे या इसमें भी भाजपा की कोई रणनीति है। बहरहाल, कारण जो भी हो, अब जब हरियाणा में भाजपा जीत गई है तो प्रधानमंत्री मोदी फिर जनता के सामने श्रेय लेने के लिए हाजिर हो चुके हैं।

अब कांग्रेस को आत्ममंथन की जरूरत है कि क्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, उत्तराखंड की तरह हरियाणा की जीती बाज़ी भी उसने गंवा दी। कार्यकर्ता तो उत्साहित थे कि राहुल-प्रियंका ने यहां पूरा ज़ोर लगा दिया, लेकिन कार्यकर्ताओं के ऊपर जो अलग-अलग क्षत्रप कांग्रेस में बैठे हैं, अब उनकी ज़िम्मेदारी तय करते हुए अगर कांग्रेस आलाकमान ने कड़े कदम नहीं उठाए तो अभी कार्यकर्ताओं में जितना उत्साह बचा है, वो भी ख़त्म हो जाएगा। वैसे हरियाणा में भाजपा सत्ता में आने के बाद भी पूरी तरह जीती हुई इसलिए नहीं कही जा सकती कि यहां विनेश फोगाट को जीत मिली है। विनेश की जीत में हरियाणा के संघर्ष और नाइंसाफी का जवाब देने की जीत की झलक दिखाई दे रही है। सैनी केबिनेट के आधे से अधिक मंत्रियों की हार भी यह बता रही है कि जनता ने भाजपा के काम पर तो मुहर नहीं लगाई है, कोई और वजह है जो भाजपा की जीत का कारण बनी।

उधर जम्मू-कश्मीर में जो नतीजे आए हैं, उसे भाजपा की केवल राज्य स्तर पर नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी हार कही जानी चाहिए। क्योंकि 370 और 35 ए खत्म करने का ढिंढोरा भाजपा ने पूरे देश में पीटा, दस साल लगा दिए चुनाव करवाने में और यहां भी पूरी कोशिश की कि किसी तरह निर्दलियों या बी, सी टीमों के जरिए जीत हासिल की जाए। घाटी में कम प्रत्याशियों को उतारने का दांव भाजपा ने चला था, अमित शाह ने यहां ईद और मुहर्रम पर मुफ़्त सिलेंडर देने की बात कही, कांग्रेस और एनसी गठबंधन पर सवाल उठाए। उन्हें पाक परस्त, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला बताया लेकिन जम्मू-कश्मीर की जनता ने अपना जवाब भाजपा को देकर बता दिया कि 2019 में उसने जो खेल करने की कोशिश की, उसके नियम जनता ने खारिज कर दिए हैं।

इन चुनावों से एक और बात सामने आई है कि भाजपा का साथ देने वाली पार्टियों को अब अपने भविष्य की चिंता करनी चाहिए। क्योंकि हरियाणा में जेजेपी और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी साफ़ हो गई है। एक वक़्त में इन दोनों के साथ मिलकर भाजपा ने सरकारों का गठन किया था। महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड में भी बीजेपी का साथ जदयू, लोजपा, शिवसेना शिंदे, अजित पवार एनसीपी दे रहे हैं, अब इन दलों को सोचना है कि वो अपने भविष्य और अस्तित्व को बीजेपी से कैसे बचाएं।

इन चुनावी नतीजों ने बता दिया है कि न भाजपा हमेशा जीतेगी, न कांग्रेस हमेशा हारेगी, अभी दोनों मैदान में हैं और बहुत सा खेल होना बाकी है।

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