
-देशबन्धु में संपादकीय
जम्मू-कश्मीर की नवगठित विधानसभा के पहले दिन से जारी हंगामा तथा शोर-शराबा गुरुवार को अपने चरम पर पहुंच गया जब सत्तारुढ़ नेशनल कांफ्रेंस और भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के बीच जमकर हाथापाई हुई जिसमें कई भाजपा विधायकों को मार्शलों की मदद से सदन के बाहर निकाल दिया गया। सोमवार से प्रारम्भ हुए सत्र में हर रोज जम्मू-कश्मीर को पूर्ण व विशेष राज्य का दर्जा बहाल करने तथा 5 अगस्त, 2019 को ख़त्म किये गये अनुच्छेद 370 को रद्द करने के लिये लाये प्रस्ताव पर दोनों पक्षों के बीच विवाद हो रहा है। लगातार चौथे दिन भी कोई काम-काज नहीं हो पाया। गुरुवार को विवाद उस वक़्त बढ़ गया जब सदन में इंजीनियर रशीद के भाई व विधायक खुर्शीद अहमद शेख ने अनुच्छेद 370 तथा कैदियों को रिहा करने से सम्बन्धित बैनर लहराये। विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई जिसके कारण हुए हंगामे को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम ने पहले तो कुछ देर के लिये बैठक स्थगित की लेकिन सदन बहाल होने पर भी शोर-शराबा नहीं थमा। इसके कारण विधायकों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई। इसमें दो भाजपा सदस्य ज़ख्मी हो गये।
बुधवार को भी इसी मामले को लेकर सदन में दोनों पक्षों के बाच हंगामा बरपा था। वैसे इस मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष को बेहतर समन्वय करने तथा भाजपा के मक़सद को समझने की ज़रूरत है। वह चाहती है कि इसके जरिये एनसी, कांग्रेस तथा पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की छवि को नकारात्मक ढंग से पेश किया जाये। इस बहस में पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी का भी बयान लेकर उतर आना दर्शाता है कि सत्ताधारी दल द्वारा की गई मांगों (अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य को पूर्ण व विशेष राज्य का दर्जा देना) को देशविरोधी साबित करने और उसका फायदा झारखंड एवं महाराष्ट्र के चुनावों में उठाने की कोशिश भाजपा द्वारा की जायेगी।
एक दशक के बाद बनी सरकार के पहले सत्र के पहले दिन (सोमवार को) से ही बहस और शोर-शराबे की शुरुआत हो गई थी जब पीडीपी के सदस्य और पुलवामा विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि वहीद पारा ने पूर्ण व विशेष राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 को बहाल करने सम्बन्धी प्रस्ताव पेश किया था। यह न केवल उनकी पार्टी की नीति के बल्कि एनसी-कांग्रेस गठबन्धन की घोषणा के भी अनुकूल था। चुनाव प्रचार के दौरान इन तीनों ही दलों ने इस आशय का वादा तो किया ही था, वे इसकी मांग भी करते रहे हैं। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस प्रस्ताव के प्रति सैद्धांतिक सहमति तो जताई पर यह कहकर उसे नामंजूर किया कि ‘यह वास्तविक इरादे से नहीं बल्कि केवल ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रस्तुत किया गया है।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘यदि पीडीपी इसे लेकर गम्भीर थी तो उसे एनसी के साथ पहले विचार-विमर्श करना चाहिये था।’ उल्लेखनीय है कि पीडीपी राष्ट्रीय स्तर पर बने इंडिया गठबन्धन का हिस्सा तो है लेकिन उसने विधानसभा का चुनाव अलग लड़ा था। साफ़ है कि प्रादेशिक राजनीति की प्रतिद्वंद्विता इस मसले में भी दिखलाई दी जो इस राज्य के लिये सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। वैसे बुधवार को भी यही नौबत आ गई थी जब उप मुख्यमंत्री सुरिंदर कुमार चौधरी ने भी इसी आशय का प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया था। उसके बाद भी हुए हंगामे के कारण ऐसे ही सदन को स्थगित करना पड़ा था।
90 सीटों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एनसी-कांग्रेस-वामपंथी दलों के गठबन्धन को 49 सीटें मिली हैं जबकि भाजपा को 29 प्राप्त हुईं। पीडीपी के हिस्से में 3 ही सीटें आई हैं। 7 निर्दलीय एवं 1 आप का सदस्य है जो प्रकारान्तर से इंडिया का ही हिस्सा है। वैसे तो दलगत स्थिति ऐसी है कि गठबन्धन की सरकार को तत्काल कोई ख़तरा नहीं है और भाजपा द्वारा राज्य की निर्वाचित सरकारों को गिराने का जो खेल होता है वह फ़िलहाल इस राज्य में होने से रहा। तो भी गठबन्धन सरकार को राज्य के लिये इस सबसे अहम मुद्दे को बहुत संभलकर, पूरे समन्वय एवं तैयारियों के साथ सिरे तक पहुंचाना होगा। जिस तरह से गठबन्धन सरकार के ही उप मुख्यमंत्री तथा इसे लेकर समान विचार व दृष्टिकोण रखने वाली पीडीपी द्वारा बगैर विचार-विमर्श के इस पर प्रस्ताव लाया गया, उसका लाभ भाजपा ले सकती है।
स्मृति ईरानी का बयान भी कुछ इसी तरह के इशारे कर रहा है। हंगामे के बाद एक प्रेस काॅन्फ्रेंस लेकर उन्होंने कहा कि ‘इंडिया एलायंस वाले संविधान की कसमें खाते हैं परन्तु वे उसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं।’ बुधवार को 370 बहाली को लेकर हुए हंगामे को लेकर उन्होंने इंडिया, खासकर कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां के आदिवासियों को आरक्षण का जो लाभ मिल रहा है वह ख़त्म हो जायेगा। झारखंड तथा महाराष्ट्र में जो चुनाव होने जा रहे हैं उनमें इसके कारण कांग्रेस को नुकसान होने की उन्होंने बात कही। यह बात तो साफ है कि स्मृति इस मामले को इस तरह से पेश कर रही हैं कि अनुच्छेद 370 की बहाली मानो देश की एकता व अखंडता के खिलाफ़ है, जैसी कि उनकी पार्टी करती आई है, तो सम्भवतः भाजपा इसी विमर्श को आगे बढ़ा सकती है। हालांकि पहले भी वह इस अनुच्छेद को संविधान विरोधी व देश की एकता के खिलाफ बतलाती रही है। यह भी सच है कि मामला केन्द्र के हाथ में है तथा जम्मू-कश्मीर के पास प्रस्ताव पारित करने के अलावा कोई अधिकार नहीं है, फिर भी इस पर समन्वय ज़रूरी है। राज्य सरकार कोई ऐसी ग़लती न करे जिससे भाजपा या केन्द्र को कोई बड़ा कदम उठाने का मौका मिल जाये।