बुरा किए का बुरा नतीजा, अमरीका में दिख रहा है…

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-सुनील कुमार Sunil Kumar

जो लोग ईश्वर पर भरोसा नहीं भी करते हैं, वे लोग भी इस बात को मानते हैं कि अच्छा करने का नतीजा अच्छा होता है, और बुरा करने का नतीजा बुरा। इस बात को लोग अलग-अलग कई तरह के शब्दों में कहते हैं, कुछ कहते हैं बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय। अंग्रेजी में कहा जाता है, कर्मा (कर्म) रिटन्र्स। मतलब यह कि अपने किए हुए का फल मिलता है। ये तमाम बातें कुछ एक किस्म की ही हैं जो कि लोगों को जिंदगी में एक सकारात्मक नजरिया रखने का सुझाव देती हैं, कुछ लोग इसे मानते हैं, और कुछ लोग कोई ऐसी एक मिसाल ढूंढ लेते हैं, कि फलां ने तो बुरा ही बुरा किया लेकिन उसका अच्छा ही अच्छा हुआ। ऐसी ही मिसालों के लिए भाषा में एक शब्द, अपवाद बनाया गया है। लोगों को आमतौर पर यह मानकर चलना चाहिए कि अच्छे का नतीजा अच्छा होता है, और बुरे कामों का भुगतान कभी न कभी करना पड़ता है।

अब आज यह कॉलम लिखते हुए दर्शनशास्त्र की इस जुबान में इसलिए बात करनी पड़ रही है कि बुरे का बुरा नतीजा सिर चढक़र बोल रहा है। पिछले दो-तीन बरस में लोगों ने देखा है कि किस तरह फिलीस्तीनी हथियारबंद संगठन हमास ने इजराइल पर आतंकी हमला किया, और हजार-बारह सौ लोगों को मार डाला। और किस तरह उसके बाद इजराइल के हमलों में अब तक करीब 45-50 हजार फिलीस्तीनी गाजा में मारे गए हैं। लेकिन आज की हमारी मिसाल कुछ और है, ऊपर के आंकड़ों पर हम पहले कई बार लिख चुके हैं। अमरीका ने लगातार इजराइल का खुलकर साथ दिया, और जब संयुक्त राष्ट्र संघ भी इजराइल को बार-बार मुजरिम करार दे रहा है, तब भी अमरीका अपने पिछले राष्ट्रपति, डेमोक्रेटिक पार्टी के जो बाइडन की अगुवाई में इजराइल को बम भेजते रहा जिसे गिरा-गिराकर इजराइल ने बेकसूर फिलीस्तीनियों को दसियों हजार की संख्या में मारा। और अब तो बददिमाग, तानाशाह, मवाली राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प और अधिक आक्रामकता के साथ इजराइल के साथ है, और पूरे गाजा को खाली करा देने की मुनादी कर चुका है। हम इन दोनों अमरीकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में मारे जाने वाले 40-50 हजार बेकसूर फिलीस्तीनियों की मौतों को देखें, तो अमरीका आज उसके दाम चुका रहा है। ऐसा नहीं है कि किसी ने अमरीका पर फौजी हमला कर दिया है, लेकिन खुद अमरीकी जनता के चुनावी फैसले से आज उसे जो राष्ट्रपति नसीब है, उस राष्ट्रपति ने अपने ही देश को जिस तरह तबाह कर दिया है, हमारा मानना है कि वहां पर 50 हजार से अधिक ही बेकसूर लोग मारे जाएंगे, और इजराइल को बम देने का कर्म लौटकर अमरीका को जख्मी कर रहा है।

इसे बमों से होने वाली मौतों की तरह आसानी से नहीं गिना जा सकेगा, लेकिन अमरीका में ट्रम्प ने जिसे स्वास्थ्य मंत्री बनाया है, वह केनेडी पूरे कोरोनाकाल के दौरान टीकों के खिलाफ रहा, और उसने अभी स्वास्थ्य मंत्री बनते ही संक्रामक रोगों पर निगरानी रखने वाली एजेंसी का काम बंद करवा दिया, स्वास्थ्य विभाग के ढेर सारे विशेषज्ञ और जानकार लोगों को नौकरी से निकाल दिया। इनकी वजह से रातों-रात तो मौतें नहीं हो रहीं, लेकिन अमरीका के अनगिनत जानकार लोग यह कह रहे हैं कि यह देश अब पहले के मुकाबले किसी भी संक्रामक रोग का सामना करने के लिए बहुत कम तैयार है। एक घमंडी राष्ट्रपति अमरीका को एक बार फिर से ग्रेट बनाने के नारे के साथ काम शुरू कर रहा है, उसे पूरी दुनिया का डॉन बनाने पर आमादा है, और उसके फैसलों ने अमरीकी जनता की सेहत को ही ऐसे खतरे में डाला है जिसे कि रातों-रात दूर भी नहीं किया जा सकेगा।

इस सनकी अमरीकी स्वास्थ्य मंत्री, रॉबर्ट एफ.केनेडी जूनियर ने अमरीका की दवा और चिकित्सा उपकरण जैसी चीजों की जांच-पड़ताल, उनकी क्वालिटी परखकर उन्हें इजाजत देने या रोकने वाली एजेंसी एफडीए को आते ही कमजोर कर दिया है। उसने बड़े पैमाने पर एफडीए के हजारों कर्मचारियों को निकाल दिया है, जो कि जांच करने वाले भी थे। अमरीका की महत्वपूर्ण स्वास्थ्य से जुड़ी एजेंसियों से 60 हजार से 80 हजार लोगों को निकालने की कार्रवाई चल रही है। केनेडी को वहां की संसदीय समिति ने भी मंत्री बनने के पहले घेरा था, और बीते बरसों के उनके अवैज्ञानिक बयानों पर जवाब-तलब किया था।

जब केनेडी की सनक और उनके अंधविश्वासों को एलन मस्क के कुल्हाड़े के साथ जोडक़र देखें, जिससे कि वे सरकारी नौकरियों का गला काट रहे हैं, तो समझ पड़ता है कि अमरीकी जिंदगियों से जुड़ी दसियों हजार नौकरियों को जिन-जिन सरकारी विभागों और एजेंसियों में खत्म किया जा रहा है, उससे गाजा में हुई मौतों के मुकाबले अधिक मौतों के होने की पूरी गारंटी अमरीका में खड़ी हो रही है, और शायद इसी को कर्मा रिटन्र्स कहा जाता है। हमारा तो यह भी मानना है कि अमरीका आज पूरी दुनिया में जिस तरह अलग-थलग पड़ चुका है, और अभी कुछ महीने पहले तक के दुनिया की एकध्रुवीय ताकत बने हुए अमरीका से अब उसके पुराने साथी भी छिटक गए हैं, और विश्व अमरीकारहित विकल्प की ओर बढ़ रहा है। यह विकल्प चीन केन्द्रित भी हो सकता है, योरप केन्द्रित भी हो सकता है, और कुल मिलाकर आज दुनिया अमरीका के बिना जिंदा रहना सीख रही है। यह नौबत अमरीका को बहुत बुरी तरह खोखला करने जा रही है, और यह जाहिर है कि इसकी सबसे बुरी मार सबसे कमजोर अमरीकियों पर सबसे पहले पड़ेगी, और उससे कई जिंदगियां खत्म होगी। हम किसी की मौत की कामना नहीं कर रहे हैं, लेकिन अमरीका पूरी दुनिया में, अब तक दर्जनों देशों में जिस तरह की फौजी गुंडागर्दी और तानाशाही दिखाते आया है, दसियों लाख लोगों को मारते आया है, उसका भुगतान अब शायद अमरीका ट्रम्प के हाथों करने जा रहा है।

दुनिया में जो नास्तिक हैं उनका भी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर भरोसा रहता है कि कुदरत और वक्त बहुत सी चीजों का हिसाब चुकता करते हैं। ऐसा लगता है कि अभी तक गाजा में रोजाना जो दर्जनों लोग मारे जा रहे हैं, उनकी बद्दुआ इजराइल और अमरीका को लग रही है, और उसी के चलते अमरीका ने एक ऐसा राष्ट्रपति चुना है जो स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा ढांचा खत्म कर दे रहा है, जाहिर है कि इससे क्या होगा।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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