
– विवेक कुमार मिश्र

चाय की पुकार एक समय के बाद लग जाती है
चाय पीने का समय हो गया
ऐसा कहते कहते
खोया खोया आदमी जाग सा जाता है
इस तरह से एक समय के बाद
चाय की पुकार लग ही जाती है
आप कहीं हों, कोई भी कार्य हों
जब तक चाय नहीं पी लेते कदम मानों आगे ही नहीं बढ़ता
चाय आपके भीतर बसे हुए आलस को तोड़ती है
अनमने हो रहे मन को सही ढ़ंग से लगाने का काम करती है
इतना ही नहीं चाय पीकर आदमी तृप्त हो जाता है
आदमी के आदमी बने होने में… चाय का अपना ही अंदाज है
हर चाय पर आदमी थोड़ा और विचार कर लेता है
जिंदगी को जिंदगी की तरह जी लेता है
चाय पीते पीते आदमी न जाने कितनी ही दुनियाओं में घूम जाता है
वह विचार कर लेता है, आसपास क्या हो रहा है
दुनिया कहां है और दुनिया कहां जा रही है
इन सबके लिए चाय एक उम्मीद बन आ जाती है
इसीलिए बराबर से चलते चलते
सुबह जो होती है वह चाय पर
एक नई दुनिया एक नई उम्मीद लेकर आ जाती है ।