राजस्थान में राजनीतिक नियुक्तियों के मामले में गहलोत की राह पर हैं सीएम भजनलाल!

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-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बने एक साल से भी अधिक का समय हो गया है। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और नेता राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल के पुनर्गठन का अभी भी इंतजार कर रहे हैं। मंत्रिमंडल के गठन की चर्चा तो होती है मगर राजनीतिक नियुक्तियों की चर्चा सुनाई नहीं देती है। क्या मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पद चिन्ह पर चल रहे हैं। राजनीतिक नियुक्तियों को लटका कर रखो और जब विधानसभा के चुनाव नजदीक आए तब नियुक्तियां करना शुरू करो। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो यहां तक सुनाई देती है की राजस्थान सरकार को भजनलाल शर्मा नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चला रहे हैं। राजस्थान सरकार के बड़े पदों पर अधिकांश अधिकारी आज भी अशोक गहलोत सरकार वाले ही हैं। क्या भजन लाल शर्मा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के जाल में फंसे हुए हैं। ओम बिरला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दुलारे हैं तो वहीं वसुंधरा प्रेशर पॉलिटिक्स कर रही है। बिरला और वसु मैडम दोनों 2023 में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे जो आज भी हैं और दोनों ही नेता राजस्थान के हाडोती संभाग से आते हैं। हाडोती संभाग जनसंघ के जमाने से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है। हाडोती संभाग में संघ परिवार भी मजबूत है और संघ की मजबूती का ही परिणाम है कि हाडोती संभाग भाजपा का गढ़ है। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीधी नजर है। वसुंधरा ने हाडोती संभाग की झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीतकर धमाकेदार राजनीति की शुरुआत की थी और बाद में वह 2008 में झालरापाटन सीट से जीतकर राज्य की मुख्यमंत्री बनी।वह दो बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। वसुंधरा राजे का तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब अधूरा रह गया क्योंकि हाडोती संभाग से ही भाजपा के भीतर 2019 में लोकसभा का अध्यक्ष बनते ही ओम बिरला राजनीतिक रूप से वसुंधरा के सामने आकर खड़े हो गए। यह दोनों नेता 2023 में मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार थे मगर वसुंधरा की प्रेशर पॉलिटिक्स के चलते हाई कमान ओम बिरला को मुख्यमंत्री नहीं बना सका। मगर ओम बिरला को 2024 में लगातार दूसरी बार लोकसभा का अध्यक्ष बना दिया। ओम बिरला अभी भी वसुंधरा से अधिक पावरफुल नेता हैं। भले ही वह राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बने मगर राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा आए दिन कोटा के दौरे पर रहते हैं जो ओम बिरला का संसदीय क्षेत्र है। ओम बिरला कोटा से ही आते हैं। विगत दिनों वसुंधरा राजे ने पानी की समस्या को लेकर राजस्थान की राजनीति में तहलका मचा दिया था। वसुंधरा राजे के बयान के चंद दिनों पहले ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उनकी सरकार के जल संसाधन मंत्री ओम बिरला के संसदीय क्षेत्र के दौरे पर थे जहां उन्होंने कई योजनाओं की घोषणा और समीक्षा की थी। मगर दोनों ही नेता वसुंधरा के विधानसभा क्षेत्र और वसुंधरा के पुत्र दुष्यंत सिंह के संसदीय क्षेत्र झालावाड़ नहीं गए जहां की समस्या वसुंधरा ने उठाई थी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का बार-बार कोटा आना और झालावाड़ नहीं जाना शायद वसुंधरा राजे को रास नहीं आ रहा है। इसीलिए वसुंधरा ने पेयजल को लेकर अपनी ही पार्टी की सरकार को घेरा था। राजनीतिक परिपेक्ष में देखे तो वसुंधरा राजे को लगने लगा है कि ओम बिरला के चलते अब वह कभी राजस्थान की मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगी। ओम बिरला हाडोती संभाग में संगठनात्मक रूप से और जनता के बीच भी वसुंधरा से कहीं ज्यादा मजबूत नेता हो गए हैं। अब तो ओम बिरला अधिकांश समय अपने संसदीय क्षेत्र में ही बिताते हुए नजर आते हैं। यहां तक कि उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों के घरों पर भी सुख-दुख में जनता के साथ देखा जाता है। यदि झालावाड़ को छोड़ दें तो कोटा बारां और बूंदी जिलो में जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच ओम बिरला ने वसुंधरा से अधिक मजबूत पकड़ कर ली है। सवाल यह है कि क्या राजस्थान में राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल का पुनर्गठन बिरला और वसु मैडम की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते फंसा हुआ है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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