ज़िंदगी बहुत छोटी है- प्यार करने के लिए, दोस्त बनाने के लिए

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photo courtesy India Post, Government of India

ऋषि दा

-प्रतिभा नैथानी-

प्रतिभा नैथानी

” मैं अपनी फिल्मों में जीवन के स्वस्थ पक्ष को दिखाना चाहता था। ज़िंदगी बहुत छोटी है- प्यार करने के लिए, दोस्त बनाने के लिए। मुझे लगता है ऐसी फिल्म बनाने का कोई मतलब नहीं,जिसमें आप सिर्फ़ यह दिखाएं कि प्यार ख़त्म हो रहा है, या दोस्ती टूट रही है”।

फिल्म निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की इस बात की पुष्टि आनंद, मिली, बावर्ची, नमक हराम, अनुपमा, चैताली सत्यकाम, चुपके-चुपके , गोलमाल, आशीर्वाद, नरम-गरम,गुड्डी, ख़ूबसूरत, अनाड़ी, मुसाफ़िर, किसी से न कहना, रंग- बिरंगी, बुड्ढा मिल गया, अनुराधा जैसी उनकी अनेक फिल्में करती हैं।
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्में कला और व्यावसायिक फिल्मों के बीच की कड़ी हैं। यदि हम विमल राय की फिल्में देखें तो कहीं ना कहीं उनमें ऋषिकेश मुखर्जी का भी नाम आता है। सहायक निर्देशक के तौर पर उन्होंने विमल राय से बहुत कुछ सीखा। प्रसिद्ध अभिनेता अमोल पालेकर कहते हैं कि वह समय धर्मेंद्र, जितेंद्र, शशि कपूर और अमिताभ जैसे नायकों का था, जब ऋषिकेश मुखर्जी ने एक दिन मुझसे कहा कि मैं तुम्हारे साथ पांच फिल्में बनाना चाहता हूं।

मैं बहुत जोर से हंसा, सोचकर कि वह मुझसे मजाक कर रहे हैं।
मगर उन्होंने कहा कि मैं अपनी फिल्म उसके साथ बनाना चाहता हूं जो स्क्रिप्ट को सुने और समझे भी। बाकी लोगों के पास समझने का समय नहीं है। तुम हर दृश्य को बहुत ध्यान से समझते हो और अभिनय करते हो, इसलिए मैं अपनी फिल्में तुम्हारे साथ बनाना चाहता हूं। यही कारण था शायद कि साधारण चेहरे-मोहरे वाली उम्दा अभिनेत्री जया बच्चन के साथ भी ऋषिकेश मुखर्जी ने खूब फिल्में बनाईं। आशीर्वाद फिल्म के लिए वह अशोक कुमार के पास गए और कहा कि इस फिल्म में मैं आपको नायक बनना चाहता हूं। अशोक कुमार को भी ख़ूब हंसी आई। बोले, साठ बरस की उम्र में तुम मुझे हीरो बनाओगे? मेरी उम्र अब चरित्र भूमिकाएं निभाने की है। यह ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशकीय क्षमता का ही कमाल था कि नवोदित संजीव कुमार के होने के बावजूद दर्शकों को महसूस हुआ कि ‘आशीर्वाद’ के नायक सचमुच अशोक कुमार ही हैं।

ऋषिकेश मुखर्जी ने लगभग 43 फिल्में बनाईं। उनमें से अधिकतर फिल्में सफल रहीं। नायक-नायिकाएं कोई भी रहे हों, ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में हमने उनका बेहतरीन अभिनय देखा। 1998 में आई ‘झूठ बोले कौवा काटे’ उनकी आख़िरी फिल्म थी। 1999 में उन्हें दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया गया। 2001 में पद्म विभूषण भी। अपनी बेहतरीन फिल्मों के लिए आठ फिल्म फेयर पुरस्कार वह पहले ही जीत चुके थे।

वह कहते हैं कि यह सच है कि भारत एक गरीब देश है। लेकिन गरीबों में भी चेतना और प्यार बहुत होता है । यही जीवन की सुंदरता है । 27 अगस्त इस महान फिल्मकार की पुण्यतिथि है।

 

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