
-निराला की समूची साहित्य साधना जीवन के अंधेरे और यथार्थ से घिरे होने पर भी मशाल और ज्योति की कविता है
-भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र व भाषा क्लब के तत्वावधान में आयोजन
कोटा। राजकीय कला महाविद्यालय कोटा में आज भाषा क्लब और हिंदी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में बसंत पंचमी पर्व पर मां सरस्वती की पूजा के साथ निराला की भास्वर साधना पर डॉ. मनोरंजन सिंह का व्याख्यान हुआ। इस अवसर पर डॉ मनोरंजन सिंह ने कहा कि निराला की समूची साहित्य साधना जीवन के अंधेरे और यथार्थ से घिरे होने पर भी मशाल और ज्योति की कविता है। निराला गहन अन्धकार के बीच ज्योति का आत्मसाक्षात्कार करते हैं। इस अवसर पर हिंदी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विवेक शंकर ने निराला के जीवन से जुड़े हुए संस्मरण से परिचित कराया तथा यह बताया कि किस तरह से निराला सबसे अलग हैं।
भाषा क्लब की प्रभारी दीपा चतुर्वेदी ने कहा मात्र क्लब साहित्य और विचार को भाषा के अलग-अलग संदर्भों से भाषायी शक्ति के मूल को खोजने का काम करता है। भाषा क्लब के साथ ही भारतीय परंपरा ज्ञान केन्द्र के अन्तर्गत प्रोफेसर रोशन भारती ने भारतीय संगीत साधना के शास्त्रीय व प्रायोगिक पक्ष का उद्घाटन करते हुए कहा कि संगीत में सुर, ताल और काल या समय ही मूल है। संगीत का सुर हमारी आत्मा की ध्वनि से उठता है और यह आंतरिक आनंद की दशा को रेखांकित करता है । संगीत के लिए समगीत का प्रयोग किया जाता है। संगीत नहीं समगीत है मैं इसे सामवेद से उठाता हूं। ऋग्वेद में जो मंत्रों की ध्वनियां हैं वहीं से संगीत का संदर्भ शुरु हो जाता है । मनुष्य के विचार चिंतन , सबमें जीवन के संगीत की धारा ही बहती है। मनुष्य ने जब सोचना शुरु किया तो वह कहता है कि कोई एक है। वह कहता है कि आरंभ में ही अंत है। सामवेद में सबसे पहले सुर का जिक्र करते हैं । उद्दात्त, अनुद्दात्त , स्वरित। सुर ताल और समय में हमारा समूचा जीवन बंधा हुआ है । काल और नाद सृष्टि की दो मूल इकाइयां हैं । समय पर संगीत का होना भारतीय मनीषी ने बहुत पहले कह दिया था। संगीत की सुमधुर प्रस्तुति के क्रम में तबले पर विकास राव ने साथ दिया तथा हारमोनियम पर सुबह, शाम और रात के विभिन्न रागों का परिचय देते हुए अपनी अद्भुत गायकी से प्राचार्य प्रोफेसर रोशन भारती ने समां बांध दिया ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर गीताराम शर्मा सहायक निदेशक कालेज शिक्षा ने कहा कि भारतीय संगीत हमारे जीवन को सम पर लाने की ध्वनि को साधने की साधना है । संगीत साधना का विषय है पूरा जीवन समर्पित कर देने के बाद ही संगीत के सुर ताल सध पाते हैं । जिसने संगीत को साध लिया समझ लिजिए कि वह सब कुछ साध लिया है । संगीत हमारी आत्मा की खुराक है । संगीत से आत्मा को तृप्ति मिलती है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ समय सिंह एवं प्रो. नुसरत फातिमा ने किया तथा धन्यवाद डॉ चंचल गर्ग ने दिया।
कार्यक्रम में प्रोफेसर शालिनी भारती, प्रोफेसर दीपा चतुर्वेदी, जया शर्मा, गुंजिका दुबे , मंजू जैन, मंजू गुप्ता, संतोष मीना, अनीता टांक, हिमा गुप्ता, अकिला आजाद, रामावतार सागर, हारुन खान मनोज सिंघल, एच एन कोली, विवेक मिश्र , जतींदर कोहली, सुमन गुप्ता, विधि शर्मा , गुलाम रसूल खान,आर.के.गर्ग , प्रीति नागौरा, एल सी अग्रवाल, निधी शर्मा , महावीर साहू, कल्पना श्रृंगी, रसिला, हरकेश बैरवा अनिल पारीक, गोविंद शर्मा, गोविंद सिंह मीना, संजय लकी , संदीप सिंह चौहान वंदना शर्मा, संध्या गुप्ता व विद्यार्थियों की उपस्थिति रही ।