फ्लोरेंस नाइटिंगेल और नर्सिंग की अनमोल विरासत

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-अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस 12 मई 2025 पर विशेष

-डॉ. विदुषी शर्मा

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डॉ. विदुषी शर्मा

नेत्र चिकित्सक, लेखिका, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

हर वर्ष 12 मई को जब अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है, तो यह सिर्फ एक तारीख नहीं होती, बल्कि यह दिन उन लाखों–करोड़ों नर्सों के त्याग, सेवा, करुणा और ममता की याद दिलाता है, जो चुपचाप, बिना किसी अपेक्षा के, दूसरों की पीड़ा को अपना बना लेती हैं। यह दिन हमें फ्लोरेंस नाइटिंगेल की याद दिलाता है, जिन्होंने नर्सिंग को सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक पवित्र मिशन बनाया — ऐसा मिशन जिसमें पीड़ित को दवा से पहले दिलासा, और इलाज से पहले इंसानियत मिलती है।

किसी भी अस्पताल में जब कोई मरीज दर्द में कराहता है, उसकी आंखों में डर और बेचैनी होती है, तब सबसे पहले उसके पास जो जाती है, वह एक नर्स होती है। डॉक्टर द्वारा दिए गए उपचार के निर्देश का पालन करते हुए नर्स रोगी के साथ होती है — दवा देने से लेकर पट्टी बदलने तक, नींद में चौंक उठने पर माथा सहलाने से लेकर भावनात्मक ढाढ़स बंधाने तक। मरीज के जीवन के हर उतार-चढ़ाव की वह मूक साक्षी होती है। उसका हर दिन पीड़ा से शुरू होता है और हर रात सेवा से समाप्त। उसके लिए मरीज सिर्फ एक बिस्तर नंबर नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी, एक भरोसा होता है।

सेवा भाव को हृदय में समेटे नर्सें सिर्फ इंजेक्शन लगाने या थर्मामीटर देखने वाली नहीं होतीं। वे घर से दूर आए एक बच्चे के लिए मां बन जाती हैं, एक बुजुर्ग के लिए बेटी, और एक भयभीत मरीज के लिए दोस्त। जब कोरोना महामारी आई और पूरी दुनिया अपने-अपने घरों में बंद हो गई, तब यही नर्सें बिना डरे, चिकित्सकों के निर्देशानुसार अपने प्राणों की परवाह किए बिना, पीपीई किट पहनकर अस्पतालों में सेवा करती रहीं। कितनी ही नर्सों ने महीनों अपने बच्चों को गोद में नहीं लिया, घर नहीं गईं, सिर्फ इसलिए कि किसी अजनबी की सांसें चलती रहें। उनके चेहरे पर मास्क था, पर उनकी आंखों में ममता और समर्पण की चमक थी।

कभी गौर किया है, अस्पताल के सबसे शांत चेहरे अक्सर नर्सों के होते हैं। दिन-रात का फर्क उनके लिए मायने नहीं रखता। रात के दो बजे भी कोई अलार्म बजे, तो सबसे पहले वही दौड़ती हैं। किसी मरीज की हालत बिगड़ जाए, तो उनकी आवाज में कंपन नहीं आता, बस हाथ तेज़ी से चलते हैं और मन प्रार्थना करता है — “हे भगवान, इन्हें बचा लेना।” ये वे लोग हैं, जो जीवन और मृत्यु के बीच पुल बनाते हैं — चुपचाप, बिना किसी तमगे के।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल का वह दृश्य आज भी हमारी आंखों के सामने आता है, जब युद्ध के मैदान में घायल सैनिकों के बीच वह एक जलता हुआ लैम्प लेकर चल रही थीं। वह रोशनी सिर्फ अंधेरे को दूर नहीं कर रही थी, वह उम्मीद जगा रही थी — कि कोई है जो हमारे दर्द को देख रहा है, समझ रहा है, और हमारी सेवा के लिए तत्पर है। आज, 200 साल बाद भी, वह लैम्प बुझा नहीं है। हर नर्स के दिल में वह रोशनी जल रही है।

हर नर्स की अपनी एक अनसुनी कहानी होती है। कोई गांव से पढ़कर आया होता है, जिसने अपने माता-पिता से वादा किया होता है कि वह दूसरों की सेवा करेगी। कोई उस पीड़ा से गुज़रा होता है, जिसे देख कर उसने तय किया होता है कि वह कभी किसी और को अकेला नहीं छोड़ेगा। अस्पताल की चुप दीवारों के बीच, हर नर्स के कदमों की आहट में समर्पण होता है, हर मुस्कान में विश्वास और हर स्पर्श में जादू।

आज अत्याधुनिक तकनीक ने चिकित्सा क्षेत्र को बहुत उन्नत कर दिया है, लेकिन नर्स की जगह कोई रोबोट या मशीन नहीं ले सकता। क्योंकि जो दिल से सेवा करता है, जो आंखों में देखकर किसी के दर्द को समझता है, उसे कोई कंप्यूटर नहीं बदल सकता। नर्स की आंखें बहुत कुछ कहती हैं — जब वह किसी को बताती है कि सब ठीक हो जाएगा, तो मरीज सचमुच विश्वास करता है।

दुख की बात यह है कि इस महान सेवा क्षेत्र से जुड़ी इन नायिकाओं को समाज आज भी वह सम्मान नहीं देता जिसकी वे हकदार हैं। लंबे समय तक खड़े रहना, छुट्टियों की कमी, कम वेतन, और सामाजिक अपेक्षाएं — इन सबके बीच वे बिना शिकायत के काम करती हैं। वे थकती भी हैं, टूटती भी हैं, पर मरीज के सामने हमेशा मुस्कराती रहती हैं। क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ नौकरी नहीं, सेवा है।

कई बार जब किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है, तो सबसे पहले उसकी आंखें नम होती हैं नर्स की। वह जिसने उसे उठाया, संभाला, खाना खिलाया, दवाइयां दीं — उसे खो देना, किसी अपने को खोने जैसा होता है। और जब वही मरीज ठीक होकर धन्यवाद कहता है, तो नर्स की आंखों में जो खुशी झलकती है, वह किसी पुरस्कार से कम नहीं होती।

आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस 12 मई 2025 के अवसर पर हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि क्या हम इन नायिकाओं को वह प्यार, सम्मान और सहयोग दे पा रहे हैं, जिसके वे योग्य हैं? क्या हमने कभी अस्पताल से निकलते समय किसी नर्स को दिल से धन्यवाद कहा है? क्या हमने कभी उनके काम की प्रशंसा की है, जो वे दिन-रात बिना रुके करती हैं?

आज का दिन नर्सों के संघर्ष, बलिदान और महानता को समझने का दिन है। हमें उनके लिए बेहतर प्रशिक्षण, सुरक्षित कार्यस्थल और मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्हें यह एहसास होना चाहिए कि वे अकेली नहीं हैं — समाज उनके साथ है, और उनका हर त्याग हमारे लिए अनमोल है।

इस लेख को पढ़ते समय यदि आपके जीवन में कभी किसी नर्स ने आपकी या आपके प्रियजन की सेवा की हो, तो एक बार आंखें बंद कर उन्हें स्मरण कीजिए। उनकी वह मुस्कान, वह करुणा, वह आवाज — सब कुछ आज भी आपके जीवन का हिस्सा है। नर्सें न केवल शरीर को स्वस्थ करती हैं, बल्कि आत्मा को भी छूती हैं। वे इस पृथ्वी की मूक देवदूत हैं — जो न आकाश से उतरती हैं, न चमत्कार करती हैं, लेकिन उनके स्पर्श में चमत्कार से कम कुछ भी नहीं होता।

आज जब आप स्वस्थ हैं, अपने परिवार के साथ हैं, तो उन नर्सों के बारे में सोचिए जो अभी भी किसी अस्पताल में किसी मरीज की सेवा कर रही हैं। उनके लिए यह दिन भी एक सामान्य दिन जैसा ही होगा — सेवा, समर्पण और संवेदना से भरा हुआ। आइए हम सब मिलकर उन्हें सच्चे मन से धन्यवाद कहें, उनका सम्मान करें और यह प्रण लें कि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करेंगे जहां हर नर्स को उसकी निःस्वार्थ सेवा के लिए सराहा जाएगा।

डॉ. विदुषी शर्मा
नेत्र चिकित्सक, लेखिका, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा

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