जशपुर से दिल्ली, और वेटिकन तक भी एक बात बिल्कुल एक सरीखी है…

-सुनील कुमार Sunil Kumar

एक खबर छत्तीसगढ़ के जशपुर की है, और दूसरी दिल्ली की। जाहिर तौर पर तो इन दोनों में कोई रिश्ता नहीं दिखना चाहिए, लेकिन कुछ रिश्ता जोडऩे की कोशिश करते हैं। आदिवासी इलाके जशपुर में एक महिला की लाश मिली। पता लगा कि चार दिन पहले उसके पति ने ही उसे मारकर फेंक दिया था। और यह पति भी गजब का था, इस महिला से पहले भी उसने 9 और शादियां की थी, और हर बीवी उसको कुछ समय में छोडक़र चली जाती थी। इस बीवी के बारे में भी उसे ऐसा लगा कि वह छोडक़र जा सकती है, और बीवी पर किसी शादी में राशन का जरा सा सामान चुराने का आरोप भी था, तो पति ने जंगल में उसे पत्थर से मार डाला। वह नशे में था, इसलिए लाश के पास ही सो गया था, सुबह उठने पर उसने लाश को एक गड्ढे में पत्तों से छुपा दिया, और भाग गया।

एक दूसरी घटना दिल्ली की एक अदालत की है जिसमें महिला मजिस्ट्रेट ने जब चेक बाऊंस के एक केस में आरोपी को सजा सुनाई, तो वह भडक़ गया, और उसने अदालत में ही महिला को खूब गालियां दीं, धमकियां दीं, और बदसलूकी की। इस जज ने अपने फैसले में लिखा- जब अभियुक्त ने सुना कि फैसला उनके खिलाफ आया है, तो वे गुस्से से भडक़ गए, और अदालत में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके परेशान करने लगे। उन्होंने आगे लिखा कि उनकी मां पर टिप्पणी की गई, और उन पर कोई चीज फेंकने की कोशिश भी हुई। आरोपी ने सजा पाते ही धमकाया, और कहा- तू है क्या चीज, तू बाहर मिल, देखते हैं, कैसे जिंदा घर जाती है। जज ने लिखा- कि आरोपी और उसके वकील दोनों ने कहा कि उसे बेकसूर ठहराएं, वरना वो उनके खिलाफ शिकायत कर देंगे, और उन्हें जबर्दस्ती इस्तीफा देने पर मजबूर कर देंगे। दोनों ने महिला जज को मानसिक और शारीरिक तरीके से परेशान किया कि वे इस्तीफा दे दें। फैसले में उन्होंने लिखा है कि वे राष्ट्रीय महिला आयोग के सामने धमकी और उत्पीडऩ का मामला दर्ज कराएंगी, और साथ ही वकील अतुल कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि क्यों न उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाया जाए, जिसमें छह महीने तक की सजा हो सकती है, और वकालत का लाइसेंस भी रद्द हो सकता है। इसके साथ-साथ किसी जनसेवक को धमकी देने पर दो साल की कैद, जान से मारने की धमकी देने पर सात साल तक की कैद, और महिला की गरिमा का अपमान करने पर तीन साल की कैद हो सकती है।

अब हम देखें कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके में गांव के एक आदमी ने जिस तरह 9 बीवियों को छोड़ा, या वे उसे छोडक़र चली गईं, और 10वीं को उसने मार डाला, तो इससे यह समझ आता है कि उसने इन बीवियों के साथ किस तरह की बदसलूकी की होगी। इससे यह भी समझ पड़ता है कि समाज में शादी करने के लिए महिलाओं पर सामाजिक और मानसिक दबाव इतना रहता है कि 9 बीवियों से अलग हो जाने वाले को भी 10वीं बीवी नसीब हो गई, और उसे इसे संभालकर रखने के बजाय इसका कत्ल करने की सूझी। आमतौर पर किसी भी एक शादी के बाद पति-पत्नी दोनों ही साथ रहने की कुछ हद तक तो कोशिश करते ही हैं, लेकिन ढुलूराम नाम के इस आदमी ने शादियां तोडऩे का जो रिकॉर्ड कायम किया है, वह बहुत ही अनोखा है, और बताता है कि समाज मर्द को किसी भी बात के लिए माफ कर सकता है, और उसे इतनी शादियां टूटने के बाद भी अगली दुल्हनें मिलती रहीं। 10वीं बीवी के साथ ठीक से रहने के बजाय उसने उसे मार डालना बेहतर समझा, और यह मर्दाना सोच कुछ उसी किस्म की है जिस सोच से दिल्ली में एक मुजरिम और उसका वकील महिला जज को खुली अदालत में जान से मारने की धमकी देते हैं।

भारतीय समाज में महिला के प्रति हिकारत इतनी आम है कि वह कदम-कदम पर दिखती है। अब पल भर के लिए कल्पना करें कि जशपुर में ऐसी कोई महिला रहती, जो 9 पतियों को छोडक़र 10वीं बार शादी करती, तो उसे बदचलन ठहराने में आसपास का पूरा समाज उतारू हो जाता। महिला के लिए आम सामाजिक हिकारत यह रहती है कि किसी भी नाकामयाब शादी में उसी पर तोहमत लगती है, बच्चे न होने पर उसी को बांझ कहा जाता है, ऐसा कहीं सुनाई नहीं पड़ेगा कि पुरूष में ही शुक्राणु की कमी है, और इसीलिए उसकी पत्नी गर्भवती नहीं हो पा रही है। हर बात के लिए महिला को जिम्मेदार ठहराना, इसे बच्चे अपने बचपन से ही परिवार में देखते आते हैं, और बड़े होकर उन्हें यही रास्ता सही लगता है कि महिला को प्रताडि़त किया जाए। देश की राजधानी में जहां पर जिला अदालत के ठीक ऊपर हाईकोर्ट भी है, और उसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट भी है, उस राजधानी में एक अभियुक्त और उसका वकील शायद किसी पुरूष जज को इतनी आसानी से इतना नहीं धमका पाते जितना कि उन्होंने इस महिला जज को धमकाया है। इससे अभियुक्त और वकील, दो मर्दों के मर्दाना अहंकार को भी चोट लगी है कि एक महिला उन्हें सजा सुना सकती है।

वेटिकन में पोप के गुजरने पर गमी चल रही है। कुछ दिनों में अगले पोप को तय करने की कवायद शुरू होगी। लेकिन उसमें किसी महिला को पोप बनाने पर विचार शायद ही हो। महिला दुनिया को जन्म देने के लिए ठीक है, पूरी मानव प्रजाति को पालने के लिए खुद भूखों मरने के लिए ठीक है, लेकिन वह शंकराचार्य, पोप, या किसी धर्म की प्रमुख बनाने के लायक नहीं है। हम जशपुर से लेकर दिल्ली तक, और अब साथ-साथ वेटिकन तक भी महिलाओं की हालत कमोबेश एक जैसा पाते हैं, दोयम दर्जे के नागरिक की तरह। धर्मों को भी सोचना चाहिए कि दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की है, और धर्म को मानने वाले, पूजने वाले लोगों में महिलाएं अधिक रहती हैं, और अधिक सक्रिय भी रहती हैं। लेकिन महिला की जगह धर्म में नहीं रहती। अभी दो-चार दिन पहले ही फेसबुक पर एक ऐसी फोटो आई थी जिसमें एक पहाड़ी चट्टान पर देवी मंदिर का रास्ता बताया गया है, और साथ-साथ यह लिखा हुआ है कि वहां महिलाओं का जाना मना है। हमारे देखे हुए सौ फीसदी देवी मंदिर ऐसे रहते हैं जहां देवी के श्रंृगार से लेकर, उनकी पूजा-आरती तक, सभी काम पुरूष करते हैं, और कई देवी मंदिरों में महिलाओं के जाने पर रोक रहती है। पूरे के पूरे समाज में महिलाओं की स्थिति को बदलने की जरूरत है, और बच्चों के सामने तो किसी भी बात को मिसाल की तरह सामने रखकर ही उन्हें महिलाओं का सम्मान सिखाया जा सकता है। परिवार के पुरूष घर की महिलाओं से बदसलूकी करते रहें, तो वहां के बच्चे आगे जाकर शायद ही महिलाओं का सम्मान करना सीख पाएंगे। इसलिए कुछ अलग-अलग घटनाओं का आपस में यही एक रिश्ता बन रहा है कि वे समाज में महिलाओं की कमजोर स्थिति बता रही हैं, और समाज के मर्दों के बीच औरतों के लिए हिकारत भी। जशपुर के ईसाईयों में पोप के जाने पर अभी गमी चल रही होगी, लेकिन वहां का समाज न तो किसी महिला पोप की उम्मीद करेगा, और न ही अपने बीच के किसी मर्द की बारी-बारी से दस-दस महिलाओं से शादी के बारे में फिक्र करेगा। हर किसी को पहला मौका मिलते ही महिलाओं के बारे में सोचना चाहिए, और सार्वजनिक रूप से इसकी चर्चा छेडऩा चाहिए, क्योंकि समाज महिलाओं को अधिक चर्चा के लायक भी नहीं समझता है।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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