
-बृजेश विजयवर्गीय

(स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद्)
वसुंधरा यानी पृथ्वी दिवस पर जब बात होती है तो जल, जंगल, नदी, पहाड़ खेत, खलिहान, रेगिस्तान, बर्फीले चोटियों की तस्वीर सामने आती हैं। खूबसूरत धरती हमारा ग्रह जहां हम रहते हैं। पृथ्वी दिवस मनाने की जरूरत धरती को मां के रूप में पूजने वाले समाज को भी पड़ रही है । धरती पर पर चहुं ओर से संकट को समझते हुए ही पृथ्वी दिवस पर सार्थक संवाद हो जाए। धरती पर वो सब रहते हैं जो इसको मां मान कर सम्मान देते हैं और वे भी है जो इसका भोग ही नहीं दोहन के साथ ही शोषण भी कर रहे हैं। कुछ लोगों को लगता है कि धरती का दोहन नहीं होगा तो विकास कैसे होगा। विकास कार्य ही ठप्प हो जाएंगे तो अर्थ व्यवस्था का क्या होगा आदि आदि तर्कों के साथ अपनी बात को जायज ठहराने का प्रयास करते हैं। ऐसे विकास पर लोगों को एक तरफ सोच से ऊपर उठने की आवश्यकता है क्योंकि अपन हिंदू परंपरागत चिंतन की बात करें यदि हम संविधान की बात करते हैं तो स्पष्ट है कि प्रकृति के शोषण को वर्जित ठहराया गया सभी प्रकार के जीव जंतुओं और वनस्पति जगह जगत सहित भूमि जलवायु को संरक्षित करने और सुरक्षित करने का विचार भारतीय संविधान एवं हिंदुत्व के आधारभूत तत्वों में शामिल है संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि यही विचार मौलिक अधिकार नीति निर्देशक तत्व तथा मौलिक कर्तव्यों में समाहित किया गया है।

हम भगवान राम और कृष्ण की बात करें तो उनकी लीलाओं से जाहिर है कि भगवान राम ने और उनके पुत्रों लव और उसने अपने जीवन का बहुत बड़ा भाग वनों एवं वन्य प्राणियों के बीच में ही गुजरा । भगवान राम का वन वास्तु सर्व विधि थे कि उन्होंने सीता हरण की अपनी व्यथा को पेड़ पौधों वन्यजीवों पत्तों आकाश पशु पक्षियों के बीच ही बांटा ता पशु पक्षी एवं वन्य जीव जटायु,वानर ही सीता माता की खोज में सहायक सिद्ध हुए।इसी प्रकार श्री कृष्ण की बाल लीलाओं में यमुना नदी गौ माता गोवर्धन पर्वत आदि के सभी प्रसंग में प्रकृति का बहुत ही सुंदर चित्रण हमारे धर्म ग्रंथो में मिलता है। प्रकृति के प्रमुख पांच तत्व धरती,वायु सूर्य, अग्नि और पानी से ही संपूर्ण प्रकृति है जिसमें “भगवान” का दर्शन विद्यमान है। पीपल बरगद अमला कम तुलसी शमी आंकड़ा आदि तक पवित्र पक्ष माने जाते हैं जो धरती का सिंगर कहलाते हैं इनको काटना तो बहुत दूर की बात है रात्रि के समय छेड़ना भी हमारे शास्त्रों में वर्जित है। वेदों और पुराणों में भी प्रकृति को पूजनीय माना है। फिर क्या कारण है कि हमें धरती दिवस मनाने के लिए एकत्र होना पड़ता है प्रकृति के शोषण को ही जब अर्थ प्राप्ति का जरिया माना जाता है तो जंगली पशु पक्षी वन और वन्य जीव पानी का अस्तित्व संकटग्रस्त हो जाता है। अभी हाल ही में हमने देखा है कि किस प्रकार उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए प्रख्यात हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास के जंगल को सरकार ने रात के अंधेरे में बेदर्दी से काट दिया इसके खिलाफ वहां के छात्रों ने आवाज उठाई और सुप्रीम कोर्ट ने प्रसंज्ञान लिया। छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी जंगलों की कटाई के परिणाम स्वरुप जलवायु परिवर्तन की विभीषिका सामने खड़ी है। उत्तराखंड में तो कहीं बड़ी-बड़ी विद्युत परियोजनाओं को भी बाढ़ के पानी में बहते हुए देखा है पर्यावरण चेतावनियों क्यों नजर अंदाज करने का परिणाम भी हम विकास के साथ-साथ ही देखे चले जा रहे हैं। प्रकृति के नियोजित दोहन जो कि अब शोषण में बदल चुका है हमारे शिक्षण संस्थान भी इसी तरह की शिक्षा विद्यार्थियों को दे रहे हैं जो आने वाले समय के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। हम देख रहे हैं कि हमारे देश में शायद ही कोई नदी स्वच्छ बची हो। सभी पर्वतमालाएं चाहे वह हिमालय हो या अरावली विंध्याचल सतपुड़ा , सह्याद्रि अनियंत्रित खनन की मार से कांप रहे हैं। भूगर्भ जल उलेचने के लिए धरती के सीने में करोड़ों छेद कर दिए गए हैं जिनमें से अधिकांश जगह पानी नहीं हवा निकल रही है। बढ़ता तापमान हर साल अपना ही रिकॉर्ड तोड़ता जा रहा है भारत के लगभग सभी प्रमुख शहर ताप घात के कारण अस्त व्यस्त हो गए हैं। दो दिन और रात का तापमान पास आता जा रहा है। एकता तमाम दावों के बावजूद आईटी हब के रूप में विख्यात बेंगलुरु पानी के संकट से त्राहि त्राहि कर रहा है और देश की राजधानी दिल्ली में पानी के टैंकर चलाने पड़ रहे हैं। जहां पर यमुना नदी बहती है। अनियोजित शहरीकरण के चलते गांव के गांव समाप्त हो रहे तो धरती कैसे नहीं कराहेगी।
यही हाल चंबल के किनारे के गांव और शहरों का राजस्थान में तो चंबल के जल पर संपूर्ण राजस्थान की निगाह है।
राजस्थान में अरावली पर्वतमाला के लिए प्राकृतिक दीवार बनने को सोचा है यह राहयभरा संकेत है। पर्यावरण विनाश तमाम संविधान कानून सरकारी विभागों तकनीकी विशेषज्ञों की लंबी चौड़ी फौज होने के बावजूद हो रहा है। पृथ्वी दिवस हमें बहुत कुछ समझा रहा है।
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