
# महेन्द्र नेह

हाल ही में अमेरिका द्वारा खनिज समझौता करने के लिए बुलाये गए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की और अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हुए संवाद का वीडियो पूरी दुनिया में प्रचारितहुआ. इस वीडियो को देख कर सभी लोग अचंभित रह गए . यूक्रेन का राष्ट्रपति इस वीडियो द्वारा रातोंरात विश्व राजनीति में एक हीरो के रूप में उभर कर आगया . अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जिस अन्दाज़ में जेलेंस्की को जलील करने और उसकी औकात बताने की अभद्र कोशिश की, उसका पलट जबाव , जिस तरह जेलेंस्की ने दिया ,उसकी उम्मीद शायद ट्रंप को भी नहीं रही होगी . ट्रम्प ने जेलेंस्की को ‘स्टूपिड’ कह कर गाली दी और कहा कि ‘आज से तुम्हारे बुरे दिन शुरू हो गए हैं .’
इस संवाद में जेलेंस्की ,इसलिए हीरो जैसे दिखाई दिए क्योंकि उन्होंने अमेरिका के सर्वोच्च पद पर बैठे उस शख्श के आगे समर्पण करने से इंकार कर दिया , जो अपने को मात्र अमेरिका का ही नहीं , सारी दुनिया का बेताज़ शहंशाह मानता है और अपने हथियारों और डॉलर की कीमत पर नए सिरे से विकासशील और अविकसित देशों पर औपनिवेशिक गुलामी लादने के मंसूबे बना रहा है.
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राष्ट्रपति पद पर बैठने के बाद अमेरिका में रोजगार के लिए अनाधिकृत तौर पर रह रहे भारतीयों को जिस तरह हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर जिस क्रूरता से उन्हें भारत भेजा गया , उसने उस गुलामी के पुराने दौर को ताज़ा कर दिया , जब पूरी दुनिया से जंजीरों में जकड़ कर बंधुआ मजदूरी के लिए अमेरिकनों और यूरोपीय देशों में लाया जाता था .
ट्रंप के साथ तीखी नोंकझोंक के तुरंत बाद जेलेंस्की सीधे लन्दन पहुँच गए .यूरोप के पंद्रह से अधिक देशों ने यूक्रेन के समर्थन में अपने हाथ बढ़ा दिए .जेलेंस्की की अगवानी में आयोजित सम्मलेन में एक शिखर वार्ता आयोजित की गयी . वार्ता मंअ यूरोप के दिग्गज देशों –फ़्रांस ,ब्रिटेन , जर्मनी के साथ डेनमार्क ,इटली ,नीदरलैंड ,स्पेन ,पोलैंड , स्वीडन ,नोर्वे, फ़िनलैंड ,चेक ,और रोमानिया के नेता तो शामिल थे ही तुर्की के विदेश मंत्री और नाटो के महा सचिव जनरल मार्क रूटे भी मौजूद थे .वार्ता से पहले ही ब्रिटेन ने यूक्रेन को 25 हज़ार करोड़ डॉलर की मदद की घोषणा कर दी ,जो उसे तीन समान किश्तों में दी जाएगी .वार्ता के दौरान नाटो के महासचिव ने जेलेंस्की को ट्रंप के साथ अपने रिश्ते सुधारने कि नसीहत देते हुए कहा कि ‘ अमरीका ने यूक्रेन के लिए जो किया , उन्हें उसके लिए राष्ट्रपति ट्रंप का सम्मान करना चाहिए .’
इस तरह हम देखते हैं कि जेलेंस्की अमेरिकी कुँए से निकल कर यूरोपीय देशों की खाई में गिरने के लिए ख़ुशी ख़ुशी पहुँच गए हैं और वहां आर्थिक सहायता के नाम पर यूक्रेन के खनिजों की लूट की नीलामी- बोली सरेआम लगाई जा रही है . रूस से युद्ध के नाम पर यूक्रेन पर अमेरिका और यूरोपीय देशों का क़र्ज़ इतना अधिक हो गया है कि यदि यूक्रेन अपने देश की समूची संपदा भी उन्हें परोस दे कर्जा तब भी नहीं चुक पायेगा . यूरोप और नाटो के देशों के बीच हुई शिखर वार्ता में जेलेंस्की का राष्ट्रीय स्वाभिमान चकनाचूर हो गया है . अब वे दो दिन पहले ट्रंप के सामने अकड़ने वाले हीरो नहीं रहे .
दर असल यूक्रेन को अमरीका और यूरोपीय देशों कि अर्द्ध –गुलामी की दयनीय स्थिति में ले जाने के लिए मिस्टर जेलेंस्की ही ज़िम्मेदार हैं . यह सर्वविदित सचाई है कि यदि जेलेंस्की ने यूक्रेन को नाटो के सदस्य देशों की सूची में शामिल किये जाने का उतावलापन न दिखाया होता तो शायद रूस हरगिज़ भी यूक्रेन पर हमला नहीं करता . यथार्थ यह भी है कि रूस के विरुद्ध यूक्रेन नहीं अमेरिका और यूरोपीय देश ही लड़ रहे थे . ट्रंप –जेलेस्की संवाद के बाद ट्रंप ने कहा भी है कि यदि युद्ध में अमरीकी सहायता न होती तो यूक्रेन अपने बल पर यह लड़ाई चार दिन भी नहीं चला सकता था .
हमें यह समझना चाहिए कि जिस तरह वियतनाम के किसानों ने चाचा होची मिन्ह के नेतृत्व में अमेरिका को अपने देश से खदेड़ दिया , जिस तरह क्यूबा , चिली , कोलंबिया और अनेक देशों ने अमेरिकी उपनिवेशवाद के सामने झुकने से इन्कार कर दिया और फिलिस्तीन के आज़ादी पसंद स्वाभिमानी लोग अमेरिका के कठपुतले नेतन्याहू द्वारा हत्याकांड की शर्मनाक मुहिम चलाये जाने के बावजूद अपनी धरती और स्वाभिमान को बेचने के लिए तैयार नहीं हैं .यदि दुनिया के असली हीरो कहलाने के योग्य हैं तो वही लोग हैं , जिन्होंने अमरीकी –यूरोपीय गुलामी का रास्ता चुनने के बजाय संघर्ष , स्वाभिमान और आज़ादी का रास्ता चुना . यूक्रेन के नागरिकों और जेलेंस्की के लिए भी यह रास्ता बंद नहीं हुआ .खुला हुआ है . बशर्ते वे अमरीकी –यूरोपीय –नाटो के खतरनाक चंगुल से बाहर निकलने का साहस जुटाएं. तब निश्चय ही जेलेंस्की एक असली हीरो कहला सकते हैं . फिलहाल तो उनके व उनके देश की गर्दन पर अरबों –खरबों डालरों का कर्जा लदा हुआ है , जिससे मुक्त होना कतई आसान नहीं है .