-संजय चावला-
आगामी रविवार 20 अगस्त को देश भर में छठा राष्ट्रीय वैज्ञानिक सोच दिवस मनाया जायेगा. इस दिन 2013 को विज्ञान और वैज्ञानिक सोच की बात करने वाले तर्कवादी चिन्तक डा. नरेंद्रदभोलकर की समाज के कुछ अविवेकी और विज्ञान विरोधी ताकतों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. इसी हत्या के बाद दभोलकर जैसे ही चिन्तक गोविन्द पानसरे, प्रोफ़ेसर एम एम कलबुर्गी तथा गौरी लंकेश की भी हत्या कर दी गयी थी क्योंकि ये लोग वैज्ञानिक सोच की बात करते थे, विवेक्शीलता की बात करते थे, प्रश्न करने की बात करते थे, समानता और न्याय जैसे मानवीय मूल्यों की बात करते थे.
वैज्ञानिक सोच आयडिया ऑफ़ इण्डिया का अभिन्न अंग है जो हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन के समय हम सबको आपस में जोड़ने वाले विचार के रूप में उपजा था. अब यह हमारे संविधान का हिस्सा है. हम सबकी इन संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति आस्था है किन्तु हमारे समाज की कुछ विज्ञान विरोधी और अविवेकी शक्तियों को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है ताकि वे हमारे तर्कपूर्ण ज्ञान और अखण्डनीय वैज्ञानिक तथ्यों को हमारी पाठ्यपुस्तकों से हटा सकें. ये लोग प्रामाणिक ज्ञान के विरोधी हैं. पिछले एक दशक से इस प्रकार के तर्कशीलता विरोधी हमले बड़े व्यवस्थित तरीके से पहले सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में और अब प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में किये जा रहे हैं. जिसका परिणाम यह है कि अब हमारे बच्चे केवल इतिहास के नाम पर यही पढेंगे कि हमारे प्राचीन भारत का गौरवमय इतिहास रहा है जिसे विदेशी आक्रमणकारियों ने ध्वस्त कर दिया. ऐसे झूठे नरेटीव के साथ ही भारतीय इतिहास के मुग़लकाल में जो विकास हुआ उसकी जानकारी से बच्चों को बिलकुल ही वंचित किया जा रहा है. इसी प्रकार आधुनिक विज्ञान की बात करें तो डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत और पीरियोडिक टेबल जैसे आधारभूत सिद्धांतों को दसवीं तक के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है. सांस्कृतिक स्तर पर बात करें तो प्रश्न करने का अधिकार, असहमति व्यक्त करना, बहस करना जोकि विज्ञान और वैज्ञानिक सोच की रीढ़ माने जाते हैं उन्हें राष्ट्रविरोधी करार देते हुए उनकी आलोचना की जाती है.
ऐसे माहौल में समाज के विज्ञान पसंद और तर्कशील लोगों ने 2018 में निर्णय लिया कि प्रति वर्ष 20 अगस्त को नेशनल साइंटिफिक टेम्पर डे (राष्ट्रीय वैज्ञानिक सोच दिवस) मनाया जायेगा. तब से समाज के विभिन्न वर्गों ने इस दिवस को देश केकई राज्यों में बड़े उत्साह से मनाया जाता रहा है. इसके अंतर्गत रैली, मानव श्रंखला, व्याख्यान, वाद विवाद प्रतियोगिता, नाटक, गीत संगीत, पोस्टर प्रदर्शनी, फिल्म शो आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जिनमे वैज्ञानिक सोच पर जोर दिया जाता है. इसे मुख्यतः ‘पूछो क्यों’ अभियान कहा जाता है.
आज के समय में स्थिति और विकट हो गयी है क्योंकि हमारे शासक वर्ग वैज्ञानिक सोच के प्रति दिखावटी प्रेम (जिसे अंग्रेजी में लिप सर्विस कहा जाता है) तो ज़ाहिर करते हैं पर तर्कशील लोगों पर होने वाले हमलों के प्रति मूक दर्शक बने रहते है. आज आवश्यकता है कि विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के पक्ष में समाज में सक्रिय पब्लिक ओपिनियन बनाया जाये. ऐसा इसलिय भी बेहद ज़रूरी हो गया है क्यों हमारी अनेक देशी और वैश्विक समस्याएं जैसे ग्लोबल वार्मिंग, क्लाईमेट चेंज, लुप्त होती प्रजातियाँ,आर्थिक दरारें, महामारी, जातीय और सांप्रदायिक संघर्ष, सेक्युलर डेमोक्रेसी को बचाना मुहं बाये खड़ी हैं. चिंता की बात तो तब हो जाती है जब हमारे ही कुछ वैज्ञानिक, जिन्हें वैज्ञानिक सोच का अग्रदूत होना चाहिए, वेभी अंधविश्वासों से घिरे नज़र आते हैं.
आशा करते हैं वो सुबह कभी तो आएगी जब सभी संस्कृतियाँ अपने आप को अंधश्रद्धा के बंधनों से मुक्त करेंगी और इस प्रयास में विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. तब तक हम चलो हमारे संविधान में दिए गए वैज्ञानिक सोच के प्रावधान को ही सेलिब्रेट कर लें. प्रत्येक शिक्षण संस्था में पढ़ रही हमारी अगली पीढ़ी कम से कम जान तो ले कि वैज्ञानिक सोच क्या होती है और क्यों ज़रूरी है.
(लेखक शिक्षाविद एवं टिप्पणीकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)