
-धीरेन्द्र राहुल-

पिछली मई- जून में चेन्नई गया था, वहां जिस होटल में ठहरा था। उस होटल में दस कर्मचारियों में से आठ उड़ीसा के रहने वाले थे। सिर्फ दो ही तमिल थे। उन्हें भी न हिन्दी आती थी और न अंग्रेजी। उड़ीसा के नौजवानों ने तमिल भी सीख ली थी।
कहने का मतलब यह है कि वहां आवश्यक सेवाओं को चलाने के लिए भी दूसरे गरीब राज्यों से युवा शिफ्ट हो रहे थे।
दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु, केरल, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, पड्डुचेरी और उत्तर भारत के पंजाब ने प्रजनन दर को घटाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है।
मसलन देश की औसत प्रजनन दर ( प्रति महिला संतानोत्पत्ति ) 2.11 है , जबकि आंध्रप्रदेश में 1.5 है और केरल एवं तमिलनाडु में इतनी ही या इससे भी कम प्रजनन दर है।
जबकि उच्च प्रजनन दर वाले देश में सात राज्य हैं। जिसमें बिहार 3.6, मध्यप्रदेश 3.1, राजस्थान 3, झारखंड 2.9 हैं।
लोकसभा सदस्यों की संख्या सन् 1972 से स्थिर है। पिछले 55 सालों में इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। जबकि परिसीमन आयोग को हर जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का पुन: निर्धारण करना होता है। पिछली बार परिसीमन की बात आई तो दक्षिण भारतीय राज्यों ने उसके खिलाफ सशक्त आवाज उठाई कि परिवार नियोजन को अच्छी तरह लागू करने के लिए उन्हें दण्डित नहीं किया जाना चाहिए कि उनकी सीटें कम कर दी जाए और उन राज्यों को पुरस्कृत किया जाए जो अनाप शनाप आबादी बढ़ाते जा रहे हैं।
यह वाजिब तर्क था। केन्द्र सरकार ने 2002 में संविधान संशोधन करके परिसीमन पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। अब डेढ़ साल बाद यह पिटारा फिर खुलेगा?
सवाल यह है कि नरेन्द्र मोदी सरकार इस संवेदनशील सवाल पर क्या स्टैण्ड लेती है? अगर वह राजनीतिक दृष्टि से फैसला लेती है तो दक्षिण के राज्यों में लोकसभा की सीटें कम होने से सबसे ज्यादा फायदा उसी को होने वाला है क्योंकि तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और उत्तर भारत के पंजाब में उसकी उपस्थिति हाशिये पर है। लेकिन देश हित में फैसला लेती है तो लोकसभा सीटों की संख्या 2047 तक स्थिर रखी जानी चाहिए। इसमें सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। देश के कुछ राज्यों को यह नहीं लगना चाहिए कि उन्होंने अच्छा किया, बदले में बुरा मिला ? इस विषय पर देश के सभी प्रबुद्ध लोगों को सोचना चाहिए क्योंकि अब सिर्फ डेढ़ साल का ही समय बचा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)