तमिलनाडु में त्रिभाषा फार्मूला लागू करने को लेकर मतभेद

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उदयनिधि स्टालिन। फोटो सोशल मीडिया

-विष्णुदेव मंडल-

vishnu dev mandal
विष्णु देव मंडल

चेन्नई। तमिलनाडु त्रिभाषीय फार्मूला का हमेशा से विरोध करता रहा है। बहरहाल एनईपी के खिलाफ तमिलनाडु के सत्ताधारी दल डीएमके, एमडीएमके, वीसीके आदि द्रविड़ दल लामबंद होकर केंद्र सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रदर्शन को इंडिया ब्लॉक के हिंदी पट्टी के दल मसलन कांग्रेस भी समर्थन दे रही है।
तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री एवं राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन हर जगह और हर मंच पर एनईपी और हिंदी का जोरदार विरोध कर रहे हैं। उदयनिधि स्टालिन कहते हैं कि तमिलनाडु किसी भी सूरत में त्रिभाषा फार्मूले को राज्य में लागू नहीं होने देगा। यहां दो भाषा ही चलेगी, तीसरी किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे। केंद्र की भाजपा सरकार तमिलनाडु पर जबरन हिंदी थोपने की कोशिश में है।
वह हाल ही में केंद्रीय बजट में तमिलनाडु के साथ सौतेले व्यवहार को लेकर भारत सरकार एवं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार तमिलनाडु में त्रिभाषा फार्मूले के तहत हिंदी थोपना चाहती है जिसे हम नहीं स्वीकार करते हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार हमें शिक्षा एवं अन्य बजट पर खर्च होने वाले राज्य का हिस्सा प्रदान करने में देरी कर रही है। हमारे राज्य के विकास रोकने का प्रयास कर रही है, हम भाषा थोपने के खिलाफ दशकों से लंबी लड़ाई लड़ते रहे हैं और लड़ते रहेंगे।
वह यही नहीं रुके। उनका आरोप था, केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में एक ऐसे राज्यपाल को काम पर लगा दिया है जो तमिलनाडु सरकार के द्वारा की जा रहे जनकल्याणकारी बिल को भी अटकाने के प्रयास करते रहे हैं। इसके खिलाफ तमिलनाडु चट्टान के तरह खड़ा है। हम तमिलनाडु में कभी भी त्रिभाषा फार्मूला को लागू नहीं करेंगे।
बता दे कि तमिलनाडु सरकार के आव्हान पर तमिलनाडु के कई जिले में घर के सामने हिंदी विरोध को लेकर कोलम अभियान शुरू किया है। जिसे तमिलनाडु के कई जिलों में नहीं चाहिए हिंदी,नहीं चाहिए “तीसरी भाषा “जैसे स्लोगन घर की महिलाएं सुबह के वक्त अपने घर के सामने लिखती नजर आ रहे हैं।
हालांकि भारतीय जनता पार्टी के तमिलनाडु के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भी तमिलनाडु में त्रिभाषा फार्मूला लागू करने के लिए अपने पार्टी के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाने की घोषणा की है। भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई ने कहा की देश में त्रिभाषा फार्मूला तमिलनाडु ही नहीं हर राज्यों के हित में है। इससे तमिलनाडु को किसी तरह के नुकसान नहीं हो सकता। उनका कहना था कि यह जरूरी नहीं कि लोग त्रिभाषीय फार्मूला के तहत हिंदी को ही तरजीह दें। न भाजपा ऐसा चाहती है। भारत का हर राज्य एक दूसरे से जुडा है। यदि हम संघवाद का समर्थन करते हैं तो फिर त्रिभाषीय फार्मूला को अपनाने में गलत कुछ नहीं है। वैश्विक स्तर पर त्रिभाषीय फार्मूला बेहद कारगर है। केंद्रीय विद्यालयों में एवं प्राइवेट विद्यालयों में अभी भी त्रिभाषीय फार्मूला अपनाया जा रहा है लेकिन तमिलनाडु सरकार सरकारी विद्यालयों में ऐसा इसलिए नहीं करना चाहती क्योंकि वह दशकों से तमिलनाडु की जनता को भाषा को लेकर बरगलाते रही है। जबकि अपने परिवार के बच्चों को त्रिभाषीय शिक्षा देने से बाज नहीं आते।
हम एनईपी को लेकर आगामी मार्च में तमिलनाडु में हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे और लोगों को बताएंगे कि आखिर तमिलनाडु में त्रिभाषीय फार्मूला कितना जरूरी है। एनईपी को लेकर तमिलनाडु के शिक्षाविदों का भी अलग-अलग मत मिल रहे हैं। जहां कई शिक्षाविदों ने द्विभाषा पर जोर दिया है तो बहुत तेरे ऐसे हैं जो तमिलनाडु के शिक्षा नीति में त्रिभाषीय फार्मूला अपनाने की सलाह दी है। अन्ना विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर ई बाल गुरुस्वामी के अनुसार नेशनल एजुकेशन पॉलिसी लागू करना केंद्र सरकार का दायित्व है। इसमें राज्य पर हिंदी थोपने जैसा कुछ नहीं है। राज्य से बाहर और वैश्विक स्तर पर तीसरी लैंग्वेज बहुत ही काम आती है। इस पर राजनीति नहीं होना चाहिए। हां भाषा चुनने का अधिकार सिर्फ छात्रों के ऊपर निर्भर करता है। जरूरी नहीं कि वह हिंदी ही हो। वैसे भी हिंदुस्तान की भाषा है हिंदी और पूरे देश में बोली जाती है। ऐसे में हिंदी सीखने में बुराई क्या है। जब हम अंग्रेजी सीखने के लिए इतना प्रयास करते हैं तो फिर भारत की सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिंदी सीखने में गलत ही क्या है?
भारत में तमिलनाडु इकलौता राज्य है जहां की राजनीति तमिल से बाहर ही नहीं निकलती। राजनेता अपने बच्चों को त्रिभाषीय फार्मूला के तहत बड़े-बड़े विद्यालयों और विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं लेकिन गरीबों के बच्चे के लिए द्विभाषी फार्मूला अपनाते हैं। यह कदापि उचित नहीं है।
वही मद्रास यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर एसपी त्याग राजन का कहना है लोगों को अधिक से अधिक भाषा सीखना चाहिए। हमारे राज्य के लड़कों को भी यह अधिकार मिलना चाहिए कि वह देसी और विदेशी जितना भी भाषा हो सीखें। हां हिंदी को सीखना अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए। तमिलनाडु को दक्षिण भारतीय भाषा मसलन कन्नड़, तेलुगू, मलयालम आदि भाषाएं सीखने से भी लोगों को मुकम्मल सहयोग मिल सकता है।
अलगप्पा यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर राजेंद्र का कहना है कि अतिरिक्त भाषा सीखना अनिवार्य नहीं होना चाहिए। द्विभाषिया फॉर्मूला से छात्रों को अतिरिक्त भाषा सीखने की जरूरत नहीं पड़ती है। तमिलनाडु के लिए दो भाषा सफिशिएंट है। इसलिए उत्तर भारत के किसी भी भाषा को तमिलनाडु में तरजीह नहीं देनी चाहिए।

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