सचिन पायलट इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान में पार्टी की ही सरकार बनेगी और सभी को मिलकर ही चुनाव लड़ना है। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि सचिन पायलट के मसले का हल निकाल लिया गया है और अब सचिन और अशोक गहलोत के बीच कोई मसला बाकी नहीं रह गया है। आम सहमति बन गई है ।
-कृष्ण बलदेव हाडा-

यह श्लोक संस्कृत भाषा का है और इसका अकसर मुहावरे या उदाहरण के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। मतलब आसान है और सचिन पायलट के संदर्भ में तो समझना बहुत ही सहज-सरल। जब यहीं,इसी म़काम पर ही रहना था तो फिर इतना बवाल क्यों? क्यों कर पार्टी से बगावत कर ‘मानेसर का कलंक’ अपने माथे के लगाया? पार्टी में गद्दार होने का तमगा लिए पिछले साढे चार साल से भी अधिक समय से कांग्रेस पार्टी में ही येन-केन-प्रकारेण बने हुए हैं। आखिरकार पार्टी के आलाकमान के गहन मंथन और दोनों ही पक्षों से बातचीत के बाद पिछले करीब साढे चार साल से पार्टी नेतृत्व खासतौर से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए रहे सचिन पायलट ने आलाकमान के सामने मिलजुल कर अगला चुनाव लड़ना स्वीकार कर लिया।
विधानसभा चुनाव के पहले अगर इसे आखिरी समझा जाए तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश की कांग्रेस पार्टी में पिछले करीब साढे चार सालों से बगावत का झंडा बुलंद किए सचिन पायलट के मसले पर राहुल गांधी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे, पार्टी के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल और अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में गुरूवार को नई दिल्ली में चली चार घंटे लम्बी बैठक में अंततः यही फैसला किया गया कि राजस्थान में सभी आपस में मिलकर अगला विधानसभा चुनाव लायेंगें। सत्ता-पार्टी संगठन में सचिन पायलट की अगले विधानसभा चुनाव से पहले अौर बाद में क्या भूमिका होगी, इसके बारे में फैसला करने का अधिकार पार्टी आलाकमान को सौंप दिया गया। साथ ही इस बात पर भी सहमति बनी थी कि दोनों नेताओं के विवाद पर अब कोई बयानबाजी नहीं होगी। जो बयानबाजी करेंगे, उनके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाएगी, वगैरह.. वगैरह…. वगैरह।
पार्टी के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल के अनुसार सचिन पायलट इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान में पार्टी की ही सरकार बनेगी और सभी को मिलकर ही चुनाव लड़ना है। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि सचिन पायलट के मसले का हल निकाल लिया गया है और अब सचिन और अशोक गहलोत के बीच कोई मसला बाकी नहीं रह गया है। आम सहमति बन गई है ।
कुल मिलाकर कहा जाए तो सचिन पायलट ने पार्टी से बगावत कर हरियाणा के मानेसर में अपने चंद समर्थक विधायकों की बाड़ाबंदी कर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का जो संदेश पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को देने की कोशिश की थी, वह यथावत अपने स्थान पर रखा हुआ है। कुछ नहीं बदला है और अगर कुछ बदला है तो वह यह है कि अब वे राज्य सरकार ने न तो उप मुख्यमंत्री रह गए हैं और न ही प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष। साथ ही अपने पत्ते खोलकर उन्होंने यह भी दिखा दिया है कि राजस्थान कांग्रेस विधायक दल में उनकी मौजूदगी कितनी सी है?
यदि इन सब पर ही अंततः सहमत होना था तो सचिन पायलट पिछले साढे चार सालों से किस कवायद में लगे हुए थे? अब सचिन पायलट और उनके चन्द समर्थकों के पास अपनी वही बंद मुट्ठी है, जिसे उठा कर वे पिछले साढे चार साल से लगातार अशोक गहलोत के खिलाफ ताने खड़े थे। उसे भी खोल कर देख ले कि उनके हिस्से में क्या आया है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)