प्रवासी श्रमिक से मारपीट से उत्तर भारतीय हिंदी भाषियों में आक्रोश

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तमिलनाडु में हिंदी विरोध का फाइल फोटो

-विष्णुदेव मंडल-

विष्णु देव मंडल

(बिहार मूल के चेन्नई निवासी स्वतंत्र पत्रकार)

चेन्नई। बात बात पर संघीय ढांचे और सेकुलरिज्म के बात करने वाले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के राज में ही हिंदी के नाम पर प्रवासी श्रमिक विद्वेष के शिकार हो रहे हैं। ऐसा ही एक मामला हाल ही में सामने आयाा है जिसमें प्रवासी उत्तर भारतीय श्रमिकों पर चलती ट्रेन में कुछ लोग उनके हिंदी भाषी और उत्तर भारतीय होने के कारण मारपीट कर रहे हैं। इस प्रकरण का वीडियो सामने आने के बाद तमिलनाडु में प्रवासरत उत्तर भारतीय लोगों में बैचेनी और रौष है। वे मुख्यमंत्री से ऐसे मामलों में संज्ञान लेने की उम्मीद किए हैं।

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उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों प्रवासी मजदूरों को चलती ट्रेन की जनरल बोगी में एक बदमाश इसलिए पीट रहे थे क्योंकि वह अन्य राज्यों से आकर तमिलनाडु में मजदूरी कर रहे हैं। उक्त बदमाश प्रवासी मजदूरों से मारपीट के अलावा गाली गलौच कर रहा था। उसने प्रवासी मजदूरों से यह भी कहा कि आखिर तुम कहां से आए हो? हमारे राज्य में क्यों आते हो तुम? हमारी नौकरी छीन रहे हो। मोदी को बोलो वह तुझे काम देगा, जबकि प्रवासी मजदूर खुद को बचाने का प्रयास कर रहे थे वह विरोध में अपने मुंह से एक शब्द नहीं निकाल रहे थे।
हालांकि इस वीडियो को सोशल साइट पर वायरल होने के बाद रेल प्रशासन तुरंत हरकत में आया और बदमाश की तलाश की जा रही है लेकिन वह अभी पुलिस के पकड़ से बाहर है।

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यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि तमिलनाडु में दशकों से हिंदी विरोध होता रहा है। तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी थोपने को लेकर कुछ महीने पहले भी सत्ताधारी डीएमके एवं उनके सहयोगी दल गांव से लेकर शहर एवं राजधानी तक में भी हिंदी विरोध के लिए सड़क पर उतरे थे। इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि हिंदी थोपने के नाम पर राजनीतिक दलों द्वारा धरना प्रदर्शन एवं स्लोगन लिखे जाने से स्थानीय लोगों में हिंदी के प्रति विरोध पैदा होता है और हिंदी भाषी को टारगेट करते हैं। बार-बार संविधान के नाम पर राजनीति कर रहे तमिलनाडु के राजनीतिक दलों को यह सोचना चाहिए कि जब हमारा संविधान हमे यह अधिकार देता है कि हम अपने देश के किसी भी राज्य में जाकर नौकरी या व्यवसाय कर सकते हैं तो फिर राज्य सरकार उनके अधिकार की रक्षा क्यों नहीं करती।

गौर करने वाली बात यह है की चेन्नई समेत समेत अन्य जिलों में भी कामगारों और छोटे-मोटे बिजनेस करने वाले लोग मसलन पानीपुरी की दुकान चलाने वालों, चाट समोसा, बेचने वाले आदि लोगों पर स्थानीय लोग हमले करते रहते हैं। यह घटनाएं सरकार और शासन की नजर में पहुंच ही नहीं पाती। छोटे-छोटे बिजनेस कर परिवार चलाने लोगों को यह भय बना रहता है कि यदि वह पुलिस में शिकायत करेंगे तो यहाँ स्थानीय लोगों ने और परेशान करेंगे।
बहरहाल हिंदी और बाहरी राज्य से आने वालों श्रमिकों की रक्षा करना तमिलनाडु सरकार की जिम्मेदारी है। बीते कोरोना महामारी के समय लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों को गांव प्रवास करने के बाद जहां तमिलनाडु की कई फैक्ट्रियां श्रमिकों के अभाव में बंद होने के कगार पर थी वहीं ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन द्वारा चल रहे निर्माण का काम पिछले कई वर्षों से पूरा नहीं हो पाया क्योंकि प्रवासी मजदूरों की आना तमिलनाडु में बंद हो गया था।

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