
-देवेंद्र यादव-

विधानसभा चुनाव हरियाणा और जम्मू कश्मीर के हो रहे हैं, मगर राजनीतिक गलियारों में चर्चा बिहार और महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक को लेकर अधिक सुनाई दे रही है। इन राज्यों में राजनीतिक चर्चा इसलिए अधिक हो रही है क्योंकि दोनों ही राज्यों के क्षेत्रीय दलों की बैसाखियों पर केंद्र की भाजपा सरकार टिकी हुई है।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजीत पवार की पार्टीयों का समर्थन है तो वहीं बिहार में नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टियों ने भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार को अपना समर्थन दे रखा है।
सवाल बिहार को लेकर है, और सवाल कांग्रेस पर है, सवाल यह है कि कांग्रेस बिहार में चार दशक से ज्यादा समय से सत्ता से बाहर है। यदि बिहार कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस लोकसभा चुनाव में तो कुछ ना कुछ पाती रहती है मगर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ज्यादा सफलता नहीं मिल पाती है।
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 9 में से तीन लोकसभा सीट जीती, कांग्रेस का यह आंकड़ा अधिक भी हो सकता था मगर बिहार कांग्रेस के नेताओं ने अपने परिवार का मोह नहीं छोड़ा और कांग्रेस परिवारवाद के चलते चार लोकसभा सीट हार गई। सासाराम संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला तो कांग्रेस को सासाराम में सफलता मिल गई। इस लोकसभा क्षेत्र से लगातार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार चुनाव लड़ती आ रही थीं। लगातार दो बार से वह इस संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार रही थी मगर उन्होंने इस बार चुनाव लड़ने से मना कर दिया और किसी अन्य को प्रत्याशी बनाने को कहा। कांग्रेस ने सासाराम सीट पर प्रत्याशी बदला और कांग्रेस चुनाव जीत गई। मगर उनके पुत्र पटना साहिब से लोकसभा चुनाव हार गए।
सवाल यह है कि क्या कांग्रेस को बिहार में नेताओं की नहीं बल्कि चुनावी रणनीतिकारों की अधिक जरूरत है। यदि बिहार की राजनीति पर नजर डालें तो बिहार में नेता नहीं बल्कि चुनावी रणनीतिकार चुनाव जीतते हैं। बिहार के अधिकांश नेता अपनी चुनावी रणनीति के कारण ही हमेशा से सत्ता का सुख भोगते आए हैं। लंबे समय से नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर राज कर रहे हैं। यह नेता नहीं बल्कि रणनीतिकार का सबसे बड़ा उदाहरण है। स्वर्गीय रामविलास पासवान को तो राजनीति में मौसम वैज्ञानिक के रूप में जाना जाता था। अब उनका स्थान हम पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी लेते हुए नजर आ रहे हैं।
बिहार को नेता नहीं बल्कि चुनावी रणनीतिकार की जरूरत है इसे शायद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने समझा और वह बिहार में जन स्वराज यात्रा लेकर निकल पड़े, और बिहार के नेताओं को राजनीतिक चुनौती देने लगे।
इतना सब कुछ खोने के बाद भी कांग्रेस बिहार में अब किसका इंतजार कर रही है। राहुल गांधी का नारा है डरो मत, मगर कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार बिहार में राजद और उसके नेता लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से डरते हुए नजर आ रहे हैं। यदि यह डर नहीं होता तो 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पप्पू यादव को टिकट देकर कांग्रेस का सांसद बनवाती।
पूर्णिया लोकसभा सीट और पप्पू यादव का उदाहरण इसलिए दे रहा हूं क्योंकि सवाल यह उठता है कि कांग्रेस चाह कर भी राज्यसभा सांसद रंजीता रंजन को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नहीं बना पा रही है। क्या कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के दबाव में आकर, अपना मन मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना पा रही है। कांग्रेस ने बिहार को चार स्वर्ण जाति के अध्यक्ष दिए। क्या अब समय आ गया जब बिहार में कांग्रेस पिछड़ी जाति और महिला को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाए। रंजीता रंजन इसके लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं। रंजीता रंजन के प्रदेश अध्यक्ष बनने से बिहार में कांग्रेस को पिछड़ी जाति और महिलाओं का भी समर्थन मिलेगा, वही रंजीता रंजन को राजीव रंजन उर्फ पप्पू यादव का समर्थन मिलेगा। बिहार के एक बड़े राजनीतिक भूभाग में राजीव रंजन यादव का जबरदस्त राजनीतिक प्रभाव है जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। खासकर युवा अल्पसंख्यक और दलित वर्ग के लोगों में पप्पू यादव का जबरदस्त प्रभाव है। पप्पू यादव चुनावी रणनीतिकार भी हैं यही वजह है कि वह ज्यादातर लोकसभा चुनाव निर्दलीय के रूप में जीते हैं। यदि बिहार की मौजूदा राजनीति पर बात करें तो राहुल गांधी और कांग्रेस की पुर जोर से वकालत करते हैं तो वह है राजीव रंजन यादव उर्फ पप्पू यादव। बिहार में कांग्रेस के पिछड़ने का एक कारण दिल्ली से भेजे जा रहे पर्यवेक्षक भी हैं जो जमीनी कार्यकर्ताओं से बात नहीं करके स्थानीय नेताओं से बात करके चुनावी रणनीति बनाते हैं। वे दिल्ली जाकर हाई कमान को भ्रमित करते हैं कि बिहार में सब कुछ ठीक है जबकि बिहार का जमीनी कार्यकर्ता आज भी अपने आप को उपेक्षित और कुंठित महसूस कर रहा है। यदि कांग्रेस ने समय रहते हुए बिहार पर ध्यान नहीं दिया तो बिहार में प्रशांत किशोर, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की तरह बिहार में कांग्रेस के बचे हुए जमीनी कार्यकर्ताओं को भी, खत्म कर देंगे। इसे रोकने के लिए जरूरी है बिहार में पिछड़ी जाति के नेता को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)