-विष्णुदेव मंडल-

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले साल अगस्त में भारतीय जनता पार्टी से तलाक लेने के बाद आनन-फानन में दिल्ली पहुंचे थे और विपक्षी एकता की नींव डालने के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं आप नेता अरविंद केजरीवाल समेत सीपीआई, सीपीएम आदि दलों के नेताओं से मिले थे। उधर, केसीआर विपक्षी एकजुटता कीे मुहिम के तहत बिहार पहुंचे थे और नीतीश कुमार से मिलकर विपक्षी एकता की मुहिम में शामिल हुए। बाद में नीतीश कुमार अचानक पर्दे से गायब हो गए लगभग 9 महीने तक उन्होंने विपक्षी एकता के बारे में कहीं चर्चा तक नहीं की।
गौरतलब है कि 3 अप्रैल को विपक्षी एकता के नाम पर या फिर सामाजिक न्याय के नाम पर डीएमके नेता एवं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल मीटिंग की थी, और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता के बारे में चर्चा हुई थी लेकिन उस मीटिंग से जहां तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आमंत्रित नहीं थे, यहाँ तक की एनसीपी के नेता भी शामिल नहीं थे।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले दिनों अपने आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था उनके बाद उन्होंने लालू राबड़ी के आवास पर भी इफ्तार पार्टी में भाग लिया फिर बुधवार को नई दिल्ली में नितीश कुमार तेजस्वी को साथ लिए पहले लालू यादव से मिलने पहुंचे और फिर राहुल गांधी एवं अरविंद केजरीवाल से मिले और विपक्ष की एकता बात कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे ने कहा कि भाजपा के कुशासन एवं संविधान को बचाने के लिए सभी समान विचारधारा वाली पार्टियों को एकजुट होने की जरूरत है इस तरह की प्रयास कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने समय-समय पर करते रहे हैं। 2019 में भी सभी गैर भाजपा दल जिनमें नीतीश कुमार शामिल नहीं थे ने एकजुटता की बात कही थी लेकिन नतीजा सिफर निकला।

हालांकि वर्ष 2004 में तत्कालीन भाजपा एनडीए सरकार जो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चल रही थी उसे बिना चेहरा के ही कांग्रेस पार्टी ने सत्ता से बेदखल कर दिया था और मनमोहन सिंह लगातार दो समयावधि तक प्रधानमंत्री रहे। लेकिन उस वक्त कांग्रेस पार्टी बेहद मजबूत और आक्रमक थी। कई राज्यों में उनका सरकार सत्ता में थी। लेकिन 2024 के चुनाव में भाजपा बेहद मजबूत और आक्रमक मूड में है। पूर्वाेत्तर में या फिर हिंदी पट्टी में भाजपा का मजबूत आधार वोट है जहां भाजपा मजबूत है वहां कांग्रेस कमजोर हालात में है। ऐसे में महज 10 महीनों की अल्पावधि में भाजपा के खिलाफ मजबूत गठबंधन बनाना और उन्हें सत्ता से बेदखल करना आसान नहीं है।
यहां एक बात का उल्लेख करना जरूरी है कि विपक्षी पार्टियों में राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार जो महाराष्ट्र के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार किए जाते हैं उन्होंने पिछले दिनों कांग्रेस की अडानी मामले में जेपीसी की मांग को लेकर जो बयान दिए उससे यह स्पष्ट झलकता है की वह कांग्रेस के साथ नहीं है।
उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी प्रायः अपने राज्य तक ही सीमित रखते हैं। अखिलेश यादव और केसीआर कांग्रेस से और भाजपा से समान दूरी बनाए रखना चाहते हैं ऐसे में नितीश कुमार का विपक्षी एकता की मुहिम कितना कारगर होगा वह तो समय तय करेगा।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि देश पूर्णरूपेण चुनावी मोड में आ चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर दिन कहीं ना कहीं वंदे भारत ट्रेन का हरी झंडी दिखा रहे हैं तो कहीं नए-नए प्रोजेक्ट का आधारशिला रख रहे हैं। साथ हैं विपक्षियों की एकजुटता पर चुटकी लेते हुए कहते हैं कि भ्रष्टाचारी एकजुट हो रहे है।ं हमें तो सिर्फ 130 करोड़ जनता के आशीर्वाद की जरूरत है। विपक्षी दलों को भ्रष्टाचार के नाम पर सिर्फ हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट हैं जिनसे एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार इत्तेफाक नहीं रखते हैं। भाजपा के किसी भी बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप नहीं है, जहाँ भी कांग्रेस सत्ता में है वहाँ गुटबाजी चरम पर है। अगले महीने कर्नाटक में चुनाव है यदि कांग्रेस पार्टी आगामी चुनाव में भाजपा को हरा देती है तो विपक्षी गठबंधन मजबूत होने की संभावना है अगर कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी से पिछडती है तो विपक्षी एकता बनने से पहले ही बिखर जाएगी।
(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)