
-देशबन्धु में संपादकीय
पिछले माह यानी मार्च में, तत्पश्चात मात्र 6 दिन पहले कांग्रेस की अहमदाबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी आये ही थे, मंगलवार-बुधवार को वे फिर से गुजरात में थे। वे आये थे एक ऐसे राज्य की पार्टी इकाई में प्राण फूंकने पहुंचे जो पिछले साढ़े तीन दशकों से सत्ता से बाहर है। यहां पार्टी का केवल एक सांसद है तथा सिर्फ 17 विधायक हैं। दरअसल कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ-साथ राहुल गांधी ज़मीनी स्तर तक पार्टी का रूप-रंग बदलते दिखाई दे रहे हैं।
राज्य के चुनाव अभी दूर हैं (2027 में होंगे) लेकिन संगठन की जो नयी कार्यप्रणाली यहां राहुल विकसित कर रहे हैं, वह अन्य सूबों में भी लागू हो सकती है। होनी ही चाहिये। पिछले दौरे पर राहुल ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मैराथन मुलाकातें की थीं। उसके बाद कार्यकर्ताओं को दिये सम्बोधन में उन्होंने भितरघात करने वाले कांग्रेसियों को साफ कर दिया था कि ‘वे भारतीय जनता पार्टी की बी-टीम बनकर काम करने की बजाय संगठन से बाहर चले जायें।’ इस बात को उन्होंने इस दौरे में दोहराया है। उन्होंने पिछली बार गुजरात में ही कहा था कि ‘पार्टी से कुछ ऐसे लोगों को निकाल बाहर करने की ज़रूरत है जो भारतीय जनता पार्टी से मिले हुए हैं।’ साफ़ है कि उनकी यह चेतावनी गुजरात के नेताओं तक सीमित न होकर सभी राज्य इकाइयों के लिये अलार्म होगी।
मंगलवार को अहमदाबाद कांग्रेस कार्यालय में उन्होंने जिला अध्यक्षों तथा पर्यवेक्षकों के साथ बैठक की थी जिसमें 5 सदस्यों की एक टीम बनाई गई जो 45 दिनों में आलाकमान को ज़मीनी रिपोर्ट देगी। इसके बाद नये जिलाध्यक्ष नियुक्त होंगे। इसका मानदण्ड उनकी सक्रियता, पार्टी के प्रति निष्ठा एवं दृढ़ वैचारिक प्रतिबद्धता होगी। बुधवार को राहुल ने मोडासा जिले के अरावल्ली में ‘संगठन सृजन अभियान’ की शुरुआत की जिसका उद्देश्य जिला कांग्रेस समितियों और उनके अध्यक्षों को सशक्त और जवाबदेह बनाना है। इस नई प्रणाली से पार्टी के संगठन को मजबूती मिलने की आशा है। याद हो कि अहमदाबाद सीडब्ल्यूसी में राहुल ने कहा था कि जिला अध्यक्ष ही संगठन की नींव बनें। वे ही पार्टी की मुख्य ताक़त होने चाहिये। जिला कमेटी और जिला अध्यक्ष को शीर्ष नेतृत्व पार्टी की बुनियाद बना रहा है। पार्टी इकाई ने अधिवेशन के बाद गुजरात के 33 जिलों और 8 प्रमुख शहरों के अध्यक्षों की नियुक्ति हेतु 42 केंद्रीय और 183 प्रदेश स्तर के पर्यवेक्षक नियुक्त किये हैं।
उन्होंने इस बात को दोहराया कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हराने की ताकत केवल कांग्रेस में है; और जीत का रास्ता गुजरात से होकर जाता है। बुधवार की बैठक में राहुल ने कहा कि, ‘देश में चल रही लड़ाई सिर्फ राजनीतिक नहीं वरन भाजपा-संघ और कांग्रेस के बीच विचारधाराओं की लड़ाई भी है। उन्होंने याद दिलाया कि ‘गुजरात ने ही पार्टी को दो सबसे बड़े नेता- महात्मा गांधी और सरदार पटेल दिये हैं परन्तु हमें लंबे समय से गुजरात में नाकामी मिल रही है।’ राहुल का यह बतलाना कि कई सूत्रों से उन्हें जानकारी मिली है कि वरिष्ठ नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा रचनात्मक नहीं बल्कि विनाशकारी है। साथ ही, टिकट वितरण प्रक्रिया में स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं को शामिल न किया जाना भी नुकसानदेह साबित हुआ है।
गुजरात के तीनों ही दौरे (अधिवेशन समेत) पार्टी को अनेक महत्वपूर्ण संकेत व संदेश दे रहे हैं। हर बार राहुल का यह कहना कि भाजपा को हराने की ताक़त कांग्रेस रखती है, न सिर्फ़ कार्यकर्ताओं में जोश भर रहा है वरन उन्हें 2027 की तैयारियां अभी से करने के लिये प्रेरित भी करता है। यह केवल गुजरात की बात नहीं वरन लगभग हर राज्य में यही दिखता है कि चुनाव सिर पर आने तक कांग्रेस की तैयारियां नहीं रहतीं। अंतिम समय तक उम्मीदवार घोषित नहीं होते तथा जिसे भी प्रत्याशी बनाकर उतारा जाता है, प्रतिस्पर्धी खेमा जो पार्टी टिकट से वंचित रह जाता है वह या तो निष्क्रिय हो जाता है अथवा भाजपा को प्रत्यक्ष-परोक्ष मदद करता है। यदि कोई समझे कि राहुल की यह चेतावनी केवल गुजरात इकाई के लिये है तो वह गलतफ़हमी में है। पार्टी के भीतर से जो संकेत मिल रहे हैं वे यही बताते हैं कि किसी भी राज्य में अब आलाकमान ऐसे लोगों से मुरव्वत नहीं बरतने जा रहा।
भितरघात से कांग्रेस को बहुत नुक़सान हुआ है। जिन लोगों को संगठन ने महत्वपूर्ण पद दिये वे भी पिछले दिनों विभिन्न कारणों से पार्टी को ठेंगा दिखाकर अलग हो गये। इनमें से ज्यादातर तो भाजपा में ही गये- कुछ केन्द्रीय जांच एजेंसियों से घबराकर तो कुछ पैसे या पदों के लालच में। जो सीधे छोड़ जाते हैं वे फिर भी कम आघात पहुंचाते हैं, लेकिन ऐसे लोग जो दल के भीतर रहते हुए पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होते हैं, कहीं अधिक नुकसानदेह साबित हुए हैं। राहुल अब ऐसे लोगों को सीधे चुनौती दे रहे हैं कि जिन्हें पार्टी छोड़कर जाना है, वे अभी से चले जायें।
इसका कारण यह है कि राहुल, उनकी पार्टी तथा सभी लोग जान गये हैं कि कांग्रेस की लड़ाई जैसे-जैसे ज़ोर पकड़ रही है, भाजपा सरकार संगठन के नेताओं को अधिक डरायेगी। कहें तो डरा ही रही है। 9 अप्रैल को प्रवर्तन निदेशालय की ओर से नेशनल हेराल्ड के मामले में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राजीव के प्रेस सलाहकार सुमन दुबे व एक ट्रस्टी और ओवरसीज़ कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के खिलाफ ईडी कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया है। मंगलवार को प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा को भी हरियाणा जमीन मामले में ईडी ने पूछताछ के लिये बुलाया था। साफ है, जो डरेगा वह कांग्रेस में रह नहीं सकेगा। राहुल के गुजरात दौरे बड़े निश्चयों के साथ बड़ी लड़ाई का संकेत है।