
भले ही कांग्रेस ने राजस्थान में आठ और देश में 99 लोकसभा सीट जीत ली है मगर जमीन पर अभी भी कांग्रेस छत्रपौ के जाल में ही है। राजस्थान में ब्लॉक अध्यक्ष से लेकर प्रदेश स्तर पर जो नियुक्तियां हुई है उनमें ज्यादातर नियुक्तियां हारे हुए प्रत्याशियों और उनके कहने पर हुई हैं। आज भी राहुल गांधी के बब्बर शेर कुंठित होकर अपने घरों में बैठे हुए हैं।
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा 17 सितंबर मंगलवार को राजस्थान के दौरे पर पहुंचे। 2023 के विधानसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले, राजस्थान कांग्रेस के नेताओं में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहे विवाद के चलते कांग्रेस ने राजस्थान में अपने प्रभारी अजय माकन को बदलकर पंजाब के नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा को राजस्थान कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया था।
रंधावा 2023 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस के लिए लकी नहीं रहे मगर, रंधावा के लिए 2024 लोकसभा चुनाव में राजस्थान लकी रहा जब कांग्रेस ने राजस्थान में आठ लोकसभा की सीट जीती और रंधावा भी पंजाब के गुरदासपुर से लोकसभा के सांसद चुने गए।
पंजाब के चुनाव हो रहे थे तब रंधावा राजस्थान की जगह पंजाब में ही रहना चाहते थे और विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे मगर पार्टी हाई कमान ने रंधावा को राजस्थान पहुंचाया। राजस्थान में रंधावा की नियुक्ति ऐसे समय पर हुई थी जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे। प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बड़ा विवाद था। कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद और उस विवाद को सुलझा कर कांग्रेस की सत्ता में लगातार दूसरी जीत दिलाना रंधावा के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। मगर लाख कोशिशो के बावजूद रंधावा प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बनवाने में असफल रहे। मगर रंधावा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 25 में से 8 सीट जितवाने में सफल रहे।
राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर कांग्रेस के भीतर अभी भी विवाद जस का तस बना हुआ है। पहले यह विवाद अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच में था मगर अब कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के एक और दावेदार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी नजर आने लगे हैं।
अभी भी राजस्थान में कांग्रेस संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के कंधों पर है। भले ही कांग्रेस ने राजस्थान में आठ और देश में 99 लोकसभा सीट जीत ली है मगर जमीन पर अभी भी कांग्रेस छत्रपौ के जाल में ही है। राजस्थान में ब्लॉक अध्यक्ष से लेकर प्रदेश स्तर पर जो नियुक्तियां हुई है उनमें ज्यादातर नियुक्तियां हारे हुए प्रत्याशियों और उनके कहने पर हुई हैं। आज भी राहुल गांधी के बब्बर शेर कुंठित होकर अपने घरों में बैठे हुए हैं।
रंधावा लंबे समय से राजस्थान में कांग्रेस को मजबूत करने पर काम कर रहे हैं इतने दिन में रंधावा राजस्थान की राजनीति और राजस्थान के कार्यकर्ताओं को समझ गए होंगे। शायद इसीलिए वह कह रहे हैं कि जो सक्रिय हैं उन्हें संगठन में स्थान मिलेगा और जो निष्क्रिय हैं उन्हें संगठन के पदों से हटा दिया जाएगा।
क्योंकि रंधावा पार्टी हाई कमान के दूत बनकर राजस्थान में काम कर रहे हैं, राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के भीतर भी विवाद है। भाजपा के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी राजपूत समुदाय के लिए आन बान और शान बंनती हुई नजर आ रही है। भाजपा की तरफ से पहली बार गैर राजपूत समुदाय का नेता मुख्यमंत्री बना है। इस कारण राजपूत समुदाय भाजपा से नाराज दिखाई दे रहा है। ऐसे में कांग्रेस के पास अवसर है। कांग्रेस राजस्थान में किसी बड़े राजपूत नेता को आगे लेकर आए। कांग्रेस के पास प्रताप सिंह खाचरियावास राजपूतों के नेता हैं मगर प्रदेश में जमीनी राजपूत नेता भी है जिस पर कांग्रेस हाई कमान की नजर नहीं है। प्रदेश कांग्रेस सेवा दल के अध्यक्ष हेम सिंह शेखावत ऐसे नेता है जो इस कमी को पूरा कर सकते हैं !
हेम सिंह शेखावत ईमानदार और कांग्रेस के प्रति वफादार नेता हैं जो लंबे समय से प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने का काम कर रहे हैं। पार्टी हाई कमान को जमीनी नेताओं पर अधिक ध्यान देना होगा और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी भी देनी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)