
-देवेंद्र यादव-

जब देश की राजनीति जाती पर आधारित हो रही है ऐसे में देश का वैश्य समाज क्यों पीछे रहे, इसे शायद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने समझा। उन्होंने जयपुर में वैश्य समाज के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि वैश्य समाज को एकजुट होना चाहिए। सम्मेलन में यह बात भी सामने आई कि राजस्थान में समाज के कभी 40 विधायक हुआ करते थे मगर अब केवल 16 विधायक ही हैं और मंत्री केवल एक।
ओम बिरला की वैश्य समाज की एकजुटता की पहल राजस्थान की राजनीति में बड़ा राजनीतिक संकेत है, क्योंकि देश और राज्य की मौजूदा राजनीति में जाति का महत्वपूर्ण योगदान है। राजस्थान में इन दिनों जाति की राजनीति कुछ ज्यादा ही उछाले मार रही है।
राजस्थान में भाजपा के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर चल रहा विवाद भी जाति के महत्व को समझा रहा है।
जहां एक तरफ मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर राजपूत समुदाय के नेता पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे, उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौड़ मैदान में है तो वहीं जाटों के नेता सतीश पूनिया दलितों के नेता अर्जुन मेघवाल, आदिवासी नेता डॉ किरोड़ी मीणा और ब्राह्मण नेता मुख्यमंत्री भजनलाल शामिल हैं। ऐसे में क्या वैश्य समाज के नेता ओम बिरला बनेंगे, क्योंकि बिरला 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री की कुर्सी की रेस में वसुंधरा राजे के बाद दूसरे बड़े नेता थे।
ओम बिरला ने लगातार 6 चुनाव जीते हैं। जिनमें तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के चुनाव हैं। बिरला लगातार दूसरी बार लोकसभा के अध्यक्ष भी बने। बिरला हाडोती संभाग के लोकप्रिय नेता हैं। यही वजह है कि उन्होंने विधानसभा और लोकसभा के लगातार 6 चुनाव जीते। लेकिन सवाल यह है कि क्या बिरला भविष्य में राजस्थान के मुख्यमंत्री बन पाएंगे। शायद इसीलिए बिरला सारे वैसमाश्य ज को एकजुट होने का आह्वान कर रहे हैं। बिरला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बहुत करीबी है। उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के लिए राजस्थान के नेताओं को भी अपने करीब लाना होगा। ओम बिरला से राजस्थान के नेताओं की दूरी के रहते वह 2023 में भाजपा की सरकार बनने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास होने के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए इसमें सबसे बड़ा राजनीतिक बैरिकेड पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे का रहा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)