
-देशबन्धु में संपादकीय
कथित शराब घोटाले के आरोप में 177 दिनों तक तिहाड़ जेल में रहने के बाद 13 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को जमानत मिली। रविवार को श्री केजरीवाल ने अगले दो दिनों के भीतर अपने पद से त्यागपत्र देने का ऐलान कर दिया है। यह स्पष्ट करते हुए कि उनके साथी मनीष सिसोदिया भी इस पद पर नहीं बैठेंगे जो इसी आरोप में जेल में ही लम्बा समय बिताकर जमानत पर छूटे हैं।
रविवार को पार्टी सहयोगियों के साथ आयोजित एक बैठक में इस्तीफ़े के फैसले साथ ही उन्होंने बतलाया कि अगला मुख्यमंत्री उनके इस्तीफ़ा देने के दो-तीन दिनों के बाद चुन लिया जायेगा। उन्होंने सरकार से यह मांग की कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी महाराष्ट्र के साथ नवम्बर में करा लिये जायें जो कि वैसे अगले साल की फरवरी में किये जाने की सम्भावना है। यह अलग बात है कि केन्द्रीय चुनाव आयोग आप की इस मांग को शायद ही माने। संभावना है कि भारतीय जनता पार्टी की सुविधा के अनुसार ही दिल्ली के चुनाव होंगे। माना यह जा रहा है कि केजरीवाल ने इसलिये इस्तीफ़ा दिया क्योंकि काम-काज के लिये कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई है। न तो वे सचिवालय जा सकते हैं और न ही किसी फ़ाइल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए इतनी तरह की शर्तें लगा दी हैं कि वे शायद ही कोई काम कर सकें। दिल्ली चुनाव के पहले सरकार को अनेक तरह के काम पूरे करने हैं। ज़रूरी है कि ऐसा मुख्यमंत्री हो जिसके पास तमाम अधिकार हों।
बहरहाल, यह फ़ैसला ऐसे वक़्त पर लिया गया है जब हरियाणा के चुनाव अक्टूबर के पहले हफ़्ते में होने जा रहे हैं जिसमें लगभग सभी 90 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है। वैसे राहुल गांधी ने बड़ी कोशिश की थी कि हरियाणा में कांग्रेस और आप मिलकर चुनाव लड़ें। इसे लेकर राहुल के कुछ ख़ास लोगों ने बात भी चलाई थी लेकिन आप ने स्वतंत्र रूप से लड़ना मुनासिब समझा। यह लगभग वैसा ही है जैसा लोकसभा चुनाव आप ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा लेकिन पंजाब में दोनों दल आमने-सामने थे। केजरीवाल कहें या उनकी पार्टी का यह रवैया लोगों में भ्रम पैदा करने के और भाजपा को लाभ देने के लिये काफ़ी होता है। इंडिया गठबन्धन का हिस्सा बने रहने का दावा आप करती है और कई मौकों पर कांग्रेस ने उसे मदद भी की। हरियाणा के चुनावों में भी वह अपने नेताओं की टिकटें काटकर आप को सम्मानजनक संख्या में सीटें देने वाली थी। इसके पहले कि सीटों का बंटवारा हो, आप ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। जिससे जनता के बीच एक संदेश यह चला गया है कि आप अब भी भाजपा की बी टीम के रूप में भूमिका निभाना चाहती है। 2024 के चुनाव के पहले आप को इसी रूप में निरूपित किया जाता रहा है। यह दावे भी हो रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल को जेल से इसलिये जमानत मिली है ताकि वे हरियाणा में दमखम से चुनाव लड़ें और भाजपा विरोधी वोटों को बांट सकें।
वैसे यह बात याद रखी जानी चाहिए कि जब केजरीवाल को गिरफ़्तार किया गया था, उसके बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडिया की बड़ी रैली में आप के साथ कांग्रेस के लोग भी थे। पूरी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के दल तब केजरीवाल की पत्नी सुनीता के साथ वैसी ही खड़ी थी, जिस प्रकार से वह झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना के साथ थी। गौरतलब बात यह भी है कि केजरीवाल का मुकदमा कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में लड़कर उन्हें जमानत दिलाई है। यह अलग बात है कि जेल से छूटने के बाद उन्होंने अपना जो पहला भाषण दिया उसमें उन्होंने न तो सिंघवी को धन्यवाद दिया, न ही न्यायपालिका का आभार माना, उन्होंने ऐलान किया कि ‘उन्हें भगवान के आशीर्वाद से जमानत मिली है क्योंकि वे सच्चे और ईमानदार हैं।’
यह साफ़ बतलाता है कि केजरीवाल की राजनीति या रणनीति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। वे इंडिया गठबन्धन का हिस्सा रहते हुए हरियाणा के महत्वपूर्ण चुनाव में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर चुके हैं, उससे यही संकेत मिलता है कि वे गठबन्धन का हिस्सा उतना ही रहेंगे जितने में उन्हें फ़ायदा हो। कहा यही जा रहा है कि आप और कांग्रेस का गठबंधन लोकसभा के लिए ही है, विधानसभा के लिए नहीं। जहां तक श्री केजरीवाल के इस्तीफ़े की बात है, तो जानकारों का मानना है कि अब वे हरियाणा चुनाव में अपने आप को पूरी तरह से झोंक सकेंगे और उन्हें सहानुभूति भी मिलेगी। ज़ाहिर है कि कई स्थानों पर आप के प्रत्याशी कांग्रेसी उम्मीदवारों से भी लड़ेंगे, जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। अरविंद केजरीवाल को अपनी पार्टी के ऊपर भाजपा की बी टीम होने का कलंक मिटाने का एक मौका हरियाणा चुनाव में मिला था, जो शायद उन्होंने गंवा दिया है। अब देखना यह है कि क्या दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल अपने इस्तीफ़े को भुना कर फिर से सत्ता में आ पाएंगे, क्योंकि यहां भाजपा एक अर्से से कुर्सी पर काबिज होने के लिए बेकरार है।