
-देवेन्द्र कुमार शर्मा-

कोटा। एक ओर कोटा स्मार्ट सिटी की एक के बाद एक पायदान चढ़ता जा रहा है दूसरी ओर शहर के कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक और ही दुनिया है जो इस कोचिंग सिटी से एक दम भिन्न अभावों और विकास से कोसों दूर है। शहर में विशालकाय चौराहों और रिवर फ्रंट और मूर्तियों पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है वहीं ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केन्द्र मामूली सुविधाओं तक को तरस रहे हैं। कहा जाता है कि असली भारत गांवों में बसता है। लेकिन जैसे हालात मैंने देखे यदि आजादी के 75 साल बाद भी यही भारत की असल तस्वीर है तो बहुत ही शोचनीय स्थिति है।
दस साल बाद भी न पुताई हुई न मरम्मत

मैं सुबह घूमता हुआ केशोरायपाटन रोड के किनारे स्थित गुड़ला गांव पहुंच गया। वहां का आंगनबाड़ी भवन देखा जो 2011 में बना था। वहां चार पांच बच्चे पढ़ रहे थे। केंद्र पर उपस्थित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और गांव के एक सज्जन दिखे। उनसे बात की तो उन्होंने शिकायत की कि जब से ये छोटा सा भवन बना है ना तो इसकी कभी पुताई हुई और न मरम्मत। बरसात में पूरे कमरे और बरांडे की छत बुरी तरह से टपकती है। छत की आरसीसी के सरिए बाहर दिख रहे हैं और उन में जंग लग रहा है। शासन को शिकायत करो तो कहते हैं फंड नहीं है।
जर्जर इमारत में स्कूल

जब मैं घूमता हुआ गांव के बाहर स्थित प्राइमरी स्कूल पहुंचा तो इस स्कूल में दो टीचर और एक मिड डे मील बनाने वाली महिला दिखी, जो लकड़ी जला कर चूल्हे पर कुछ बना रही थी। टीचर से बात की तो पता चला कि कई दिन पहले स्कूल में चोरी हो गई। चोर गैस सिलेंडर और गैस का चूल्हा चुरा कर ले गए। पुलिस में रिपोर्ट कर दी लेकिन न चोर पकड़े गए और न सिलेंडर मिला। स्कूल बिल्डिंग की हालत यहां भी जर्जर हो रही है और आरसीसी की छत के सरिए बाहर झांक रहे हैं। बरसात में पूरी छत टपकती है, लेकिन मरम्मत के लिए प्रशासन या तो उदासीन है या यहां भी फंड नहीं हैं।
हाथी-घोड़ों की मूर्तियों के लिए पैसा और स्कूलों के लिए भामाशाह का इंतजार

इन दो जगहों के हालत देख कर मुझे याद आया कि कोटा शहर में चौराहों और सड़क के डिवाइडरों की सजावट के लिए करोड़ों रुपए फूंके जा रहे हैं। किशोर सागर की सीमेंट ईंटों से बनी सुंदर दीवार को तोड़ कर वहां लोहे की ग्रिल लगा कर लाखों रुपए बरबाद कर दिए। चौराहों पर हाथी, घोड़े,रॉकेट लांचर और मूर्तियां लगा कर उनको सजाया जा रहा है लेकिन स्कूलों के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। इन सरकारी स्कूलों के लिए भामाशाहों का मुंह ताका जाता है कि वो कुछ दान करें तो बच्चों को आवश्यक सुविधाएं दी जा सके।
क्या यही विकास है?
एक तरफ अनावश्यक कामों पर पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है दूसरी तरफ बच्चों के स्कूलों के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। शहर के अंदर बाहर की सड़कों पर असंख्य गड्ढे हैं जो दुर्घटनाओं को जन्म दे रहे हैं और वाहन खराब हो रहे हैं। उन पर किसी का ध्यान नहीं है। पैसे को मूलभूत सुविधाओं पर खर्च करने के बजाय सजावटी काम पर खर्च किया जा रहा है। सवाल यही है कि क्या इस तरह के कार्यों से कोटा स्मार्ट सिटी बन जाएगा। क्या जनता से लिए गए टैक्स को इस तरह बर्बाद करना उचित है। क्या यही कल्याणकारी राज्य की अवधारणा है।हमारी सरकार, जनप्रतिनिधियों को और अफसरों को इन बातों पर विचार करने की आवश्यकता है।

(लेखक सेवानिवृत रेल अधिकारी और नेचर प्रमोटर हैं)
आंखें खोल देने वाला सच उजगार करने के लिए लेखक को बधाई।
आंखें खोल देने वाला सच उजगार करने के लिए लेखक को बधाई।
कोटा नगर के विकास की चमचमाती तस्वीर के उलट गांवों के स्कूलों की धुंधली कहानी विकास की सच्चाई को बयां कर रही है। शिक्षा विभाग जिले के निजी विद्यालयों के भवनों की प्रतिवर्ष आडिट करता है और भवन की फिटनेस सर्टिफिकेट, सार्वजनिक निर्माण विभाग की मांगता , इसके अभाव में विद्यालय की मान्यता निरस्त कर सकता है लेकिन सरकारी विद्यालयों की खस्ताहाल बिल्डिंग के बावजूद ,शिक्षण कार्य नहीं रुक रहा है। सरकार को ग्रामीण विकास की ओर ध्यान देने की जरुरत है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं परन्तु गांवो की हालत में वांछित सुधार नहीं होने से अमृत महोत्सव सिर्फ ढकोसला। साबित होगा।गुडला की हालात का सटीक विश्लेषण करने के लिए देवेन्द्र जीज्ञको साधुवाद।
कोटा नगर के विकास की चमचमाती तस्वीर के उलट गांवों के स्कूलों की धुंधली कहानी विकास की सच्चाई को बयां कर रही है। शिक्षा विभाग जिले के निजी विद्यालयों के भवनों की प्रतिवर्ष आडिट करता है और भवन की फिटनेस सर्टिफिकेट, सार्वजनिक निर्माण विभाग की मांगता , इसके अभाव में विद्यालय की मान्यता निरस्त कर सकता है लेकिन सरकारी विद्यालयों की खस्ताहाल बिल्डिंग के बावजूद ,शिक्षण कार्य नहीं रुक रहा है। सरकार को ग्रामीण विकास की ओर ध्यान देने की जरुरत है। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं परन्तु गांवो की हालत में वांछित सुधार नहीं होने से अमृत महोत्सव सिर्फ ढकोसला। साबित होगा।गुडला की हालात का सटीक विश्लेषण करने के लिए देवेन्द्र जी को साधुवाद।