
-1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान पिता-पुत्र की हत्या का मामला
नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को कांग्रेस के पूर्व नेता सज्जन कुमार को 1984 के सिख विरोधी दंगों के दौरान पिता-पुत्र की हत्या में उनकी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। राउज एवेन्यू कोर्ट में विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने यह फैसला सुनाया। दिल्ली कैंटोनमेंट क्षेत्र से जुड़े 1984 के दंगों के एक अलग मामले में पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुमार को 1 नवंबर, 1984 को सरस्वती विहार में जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की नृशंस हत्या की साजिश रचने का दोषी पाया गया। अदालत ने 12 फरवरी को उन्हें हिंसा भड़काने के लिए दोषी ठहराया था, जिसके कारण पिता और पुत्र की मौत हो गई। अभियोजन पक्ष ने पहले अदालत से अधिकतम सजा देने का आग्रह किया था, जिसमें तर्क दिया गया था कि कुमार ने लक्षित हत्याओं में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। मामले के रिकॉर्ड के अनुसार, कुमार द्वारा कथित रूप से उकसाई गई भीड़ ने पश्चिमी दिल्ली के राज नगर इलाके में पीड़ितों पर हमला किया। यह मामला 9 सितंबर, 1985 को एक संरक्षित गवाह द्वारा दायर शपथ पत्र के बाद दर्ज की गई एफआईआर से उपजा है।
गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा 1984 के दंगों के मामलों की फिर से जांच करने के लिए 2015 में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) की स्थापना के बाद मामले को फिर से खोला गया था। मुख्य गवाह ने बाद में 2016 में एक विस्तृत बयान दिया, जिसके कारण कुमार के खिलाफ फिर से कार्यवाही शुरू हुई।
इस मामले के सिलसिले में कुमार को 6 अप्रैल, 2021 को तिहाड़ जेल में अपनी पिछली आजीवन कारावास की सजा काटते हुए गिरफ्तार किया गया था। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि उसने आगजनी, लूटपाट और हत्या सहित बड़े पैमाने पर हिंसा भड़काई।
यह सजा 1984 के सिख विरोधी दंगों के सिलसिले में कुमार की दूसरी आजीवन कारावास की सजा है। उन्हें पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज नगर, पालम कॉलोनी में पाँच सिखों की हत्या और एक गुरुद्वारे में आग लगाने में उनकी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ उनकी अपील वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
दंगों से जुड़े अन्य मामलों में उन्हें बरी किए जाने को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग अपीलें भी दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित हैं। कुमार निचली अदालतों में दो अन्य मामलों में भी मुकदमे का सामना कर रहे हैं, जिनमें से एक नवादा के गुलाब बाग में गुरुद्वारे के पास हुई हिंसा से संबंधित है। जनकपुरी और विकासपुरी में हुए दंगों से संबंधित एक अन्य मामले की भी सुनवाई चल रही है।