
बहुत काम की चीज है पाॅलीथिन लेकिन फेंकते ही पर्यावरण को पहुंचाती है नुकसान
-देवेन्द्र कुमार शर्मा-

कोटा। किशोर सागर की पाल पर बैठा मैं पक्षियों की अठखेलियां निहार रहा था। तभी बाइक पर एक पढ़े लिखे सभ्रांत सज्जन आए। उन्होंने पॉलीथिन की एक थैली निकली जिस में पूजा के फूल थे। जैसे ही वो पानी तरफ बढ़े मैने उन्हे कहा ये पॉलीथिन पानी में मत डालियेगा।
उन्होंने मुझे देखा फिर थैली को उलट कर फूल पानी में गिरा दिए।
उन्होंने मेरी सलाह मान ली लेकिन ये क्या! थैली उन्होंने वहीं पटक दी। मैंने उन्हें देखा और कहा ये क्या। ये तो वापिस उड़ कर तालाब में ही जाएगी। एक बार ऐसी ही थैली में एक मछली फंसी मैने देखी थी। मछली और थैली दोनों पानी में डूबे हुए थे फिर भी मछली थोड़ी देर छटपटा कर वहीं शांत हो गई। चलिए मछली को तो मरना ही होता है लेकिन किशोर सागर के तल में कितनी पॉलीथिन बिछी है ये वो गोताखोर जानते हैं जिन्हे पानी में डूबे किसी व्यक्ति को निकालना होता है।
सफाई के महत्व पर इतना जोर देने के बावजूद भी अगर शिक्षित नागरिकों का ये हाल है तो फिर आम नागरिक से आप क्या उम्मीद करेंगे।
मैं जब भी पॉलीथिन में छिलके आदि बाहर फेंक कर आता हूं तो थैली को वापिस घर लेकर आता हूं ताकि यही थैली फिर काम आ सके। पॉलीथिन बहुत काम की चीज है जब तक आप इसका उपयोग करते हैं। लेकिन यदि आप ने इसे बेकार समझ कर सड़क पर फेंक दिया तो ये पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाने वाली चीज बन जाती है।
बाॅम्बे हिस्ट्री नेचुरलिस्ट्स सोसायटी के पूर्व निदेशक डाॅ असद रहमानी ने रविवार को ही कला दीर्घा में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि जल-जंगल और जमीन के लिए पाॅलीथिन बहुत घातक है। उन्होंने हाडोती के जंगलों और जलाशयों का दौरा किया तो पाॅलीथिन का कचरा देख चिंता जताई। इससे वन्य जीवों और पक्षियों पर बहुत बुरा असर पड रहा है।
(लेखक रेलवे के सेवानिवृत अधिकारी हैं और पर्यावरण, वन्य जीव एवं पक्षियों के अध्ययन के क्षेत्र में कार्यरत हैं)
संभ्रांत महिलाएं और पुरुष बच्चों को पोलीथीन के पैकेट बंद चिप्स,नूडल आदि पार्क, सार्वजनिक स्थलों पर खिलाते हैं और ,
कचरा फेंक देते हैं.नाली,नालों से बहकर पोलीथीन का कचरा नदियों को प्रदूषित कर रहा है, लेकिन हम हैं कि आने वाली पीढ़ी की चिंता ही नहीं करते है