रत्नों की चकाचौंध ने किया विस्मित

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रत्न जडित चेतक

मेरा सपना… 21

-शैलेश पाण्डेय-

हमें स्विट्जरलैंड को अलविदा कहकर अब इटली की ओर बढना था जहां 2000 साल राज करने वाले रोमन साम्राज्य की विरासत से रूबरू होना था। हमारे इस दौरे में फ्रांस के बाद इटली ही ऐसा देश था जिसका इतिहास समृद्धशाली रहा है। लेकिन इटली के रास्ते में अभी दो देशों का सफर बाकी था। इसमें लिंकेटेस्टाइन की राजधानी वादूज और ऑस्ट्रिया थे। वादूज तो एक समय स्विट्जरलैंड का ही हिस्सा था। इस छोटे से देश की राजधानी वादूज भी महज पांच हजार की आबादी का शहर है। जहां यदि आवासीय इलाकों में चले जाएं तो ऐसा लगेगा कि केवल बंगले हैं और यहां कोई रहता नहीं है। बीच-बीच में कोई कार आ जाए तो जीवन का अहसास होता है। हालांकि पहाड़ों के बीच घिरे होने से इसकी प्राकृतिक सुंदरता देखने लायक है।

ज्यूरिख से आप एक से डेढ़ घंटे के सफर में यहां पहुंच जाते हैं। इस छोटे से शहर की खूबसूरती देखने का सबसे अच्छा जरिया सिटी ट्रेन है। हालांकि यह देखने में टॉय ट्रेन की तरह है लेकिन वास्तव में मोटर व्हीकल है जिसका आगे रेल के इंजन जैसा आकार है और पीछे दो ट्रेन जैसे कोच बने होते हैं। इससे करीब 45 मिनट में आप शहर की हर गली और कोना देख लेते हैं। कई भाषाओं में कमेंट्री होती है जिसमें आप को जहां से ट्रेन गुजरती है वहां के बारे में रोचक जानकारी दी जाती है। यह पूरी तरह जीपीएस आधारित होती है। इसका फायदा यह होता है कि आप जिस जगह होते हैं वहां के बारे में ही जानकारी दी जा रही होती है। वैसे तो ट्रेन एक तय गति पर चलती है और उसमें कोई बाधा नहीं आती लेकिन कभी कोई समस्या हो तो गलत विवरण कमेंट्री में नहीं मिले इसलिए जीपीएस आधारित व्यवस्था है। ट्रेन के पूरे सफर में कुछ ही घरों के बाहर एक दो जने दिखाई दिए। लेकिन ऊँची नीची सड़कों पर ट्रेन बिल्कुल वैसे ही संचालित होती है जैसे पटरी पर चलने वाली ट्रेन। उसके आसपास से कार और अन्य वाहन गुजरते रहते हैं। इस ट्रेन राइड का फायदा यह है कि आप इस क्षेत्र के लोगों के रहन सहन से वाकिफ हो जाते हैं। यहां वाइनयार्ड (अंगूर के बाग) देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि शहरी आबादी के बीच यह कैसे हो सकते हैं। लेकिन यह वाइनयार्ड लिंकेटेस्टाइन की मशहूर वाइन में काम आते हैं। यूरोप में अंगूर की क्वालिटी उसके उत्पाद स्थल और वाइन केे स्वाद और अरोमा (खुशबू) से तय होती है। इसी से पता चलता है कि यह किस जगह के वाइनयार्ड की वाइन है।

ट्रेन के सफर की समाप्ति के बाद करीब आधा किलोमीटर के दायरे में शहर का बाजार और मुख्य आकर्षण स्थल हैं जहां केवल पर्यटक ही नजर आते हैं।  इस स्थल को बहुत खूबसूरती से सजाया गया है। वादूज कैसल यहां का प्रमुख आकर्षण है। यह राजकुमार का महल है जो पहाड़ी पर बना है। वहां तक पहुंचना श्रम साध्य है और समय लगता है इसलिए शहर के हृदय स्थल पर इसकी प्रतिकृति को देखकर ही संतोष कर लिया। यहां की ऐतिहासिक इमारतें, चर्च, संग्रहालय और कला दीर्घाएँ भी आकर्षण का केन्द्र हैं। लेकिन हम बाहर से ही इनका अवलोकन कर निकल लिए।

आज का अगला पर्यटन केन्द्र अपने क्रिस्टल, रत्न और क्रिस्टल के जेवरों के लिए प्रसिद्ध ऑस्ट्रिया का स्वारोवस्की था। आंद्रे हेलर ने करीब सवा सौ साल पहले इसकी स्थापना की थी। यहां क्रिस्टल के चमचमाते रंगबिरंगे संसार में आप खो जाते हैं। पार्किंग से आप क्रिस्टल म्यूजियम की ओर बढते हैं तो फूल पौधों से आकर्षक तरीके से सजाया शानदार द्वार आपका स्वागत करता है। जैसे-जैसे आप एक कक्ष से दूसरे कक्ष में बढ़ते हैं नया आश्चर्य सामने आता है। कहीं क्रिस्टल से बना चेतक है तो कहीं ताजमहल।

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स्वारोवस्की का आकर्षक प्रवेश द्वार।

कोई कक्ष पूरी तरह क्रिस्टल की तरह चमकता नजर आता है। लाइटों का इतनी खूबसूरती से प्रयोग किया गया है कि आप अद्भुत संसार में विचरण करते हैं। जिसने भी आमेर के किले में शीश महल देखा है उनके लिए यह और भी खूबसूरत अनुभव है। यहां बहुत बड़े बड़े आकार के कृत्रिम हीरे और नगीने देखने को मिले। (मैंने इससे पूर्व सूरत में गोल्फ की बॉल के आकार का हीरा एक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में देखा था। दो भाइयों ने उक्त हीरा प्रदर्शित किया था और उन्होंने मुझे तब 50 करोड रूपए कीमत के उस हीरे की फोटो लेने की अनुमति दी थीं।)  हम क्रिस्टल से बने गहनों के संसार में पहुचे। अंगूठी, ईयररिंग से लेकर छोटे से लेकर सैकड़ों क्रिस्टल से युक्त हार तक देखने को मिले। अजातशत्रु ने जरूर कुछ खरीदी की। लेकिन जो भी गहने उपलब्ध थे वह हमारी जेब से बाहर के थे।  इसलिए हम अन्य साथियों से पहले ही बाहर निकल आए। लेकिन अंदर की चमक दमक से अभिभूत थे। मुख्य द्वार पर हम इंतजार कर रहे थे तभी एक गुडिया जैसी बच्ची अकेले खेलते दिखी। वह स्वचालित गेट से कभी अंदर तो कभी बाहर आ रही थी। मुझे लगा कि कहीं इसे चोट नहीं लग जाए तो उसे रोकने आगे बढ़ा तभी उसके पिता वहां आए और उन्होंने कहा कि चिंता मत करो मैं बच्ची पर नजर रखे हूं।  यह पठान युवक हमारी हिंदी सुनकर प्रेम से मिला और अपनी दो बहनों और पत्नी से भी मिलाया। वे अफगानिस्तान के थे लेकिन पांच साल दिल्ली में पढाई करने के बाद इटली आ गए थे। उनकी बहने हिन्दी फिल्मों और सीरियल की शौकीन थीं। इन्हीं से उन्होंने हिंदी सीखी थी। उन्होंने पूरे समय हम से सहजता से हिंदी में बातचीत की।

दिन का समापन इंस्ब्रुक घूमने के साथ हुआ। यह ऑस्ट्रिया के पश्चिमी राज्य टायरोल की राजधानी है और पर्यटकों के लिए वास्तुशिल्प के अलावा यहां का बाजार और स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों विशेषकर आइसक्रीम की वैरायटी प्रसिद्ध है। वैसे यह शहर सर्दियों में बर्फ पर स्कीइंग के लिए अधिक पहचान रखता है लेकिन इसके सिटी सेंटर का टायरोल आर्किटेक्चर भी किसी भी यूरोपीय शहर से कम नहीं है। कई इमारतों पर तो ऐसा लगा मानो सोने की परत चढ़ा रखी हो। यहां से आइसक्रीम के नए स्वाद की शुरूआत हुई। अजातशत्रु ने लम्बी लाइन में लगकर आइसक्रीम कोन खरीदे। उस समय तो लगा कि यह लाइन में समय बर्बाद कर रहे हैं लेकिन जब हमने खाया तो स्वाद बेहतरीन था। बॉम्बे में एक दशक पूर्व मैरीन ड्राइव क्षेत्र में पारसी पार्लर की आइसक्रीम का स्वाद आज भी जुबान पर है। लेकिन इंस्ब्रुक की जलेटो जैसी आइसक्रीम पहले कभी नहीं खाई थी। अजातशत्रु ने ही बताया कि इटली में इससे भी बेहतरीन वैरायटी और स्वाद मिलेंगा।

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इंसब्रुक का सिटी सेंटर।

इसी दौरान अलग-अलग नस्ल के डॉग को घुमाते लोग नजर आए। कई ने उन्हें कपड़ों से सजा रखा था। एक महिला के डॉग ने पॉटी की तो उसने तुरंत बैग से पॉलीथिन निकालकर उसे उठा लिया। यह आश्चर्य जनक था क्योंकि हमारे यहां तो लोग सड़क पर डॉग को घुमाने ही इसलिए निकलते हैं कि वह जहां तहां पॉटी कर दे भले ही वह पड़ोसी का घर ही क्यों न हो। बस उनका घर साफ रहना चाहिए। इस दौरान जो भी शोरूम दिखे उनमें टॉप ब्राड्स के प्रोडक्ट नजर आए। इन पर कुछ खास भीड़ तो नहीं दिखी। ज्यादातर पर्यटकों की भीड़ बॉर, रेस्त्रां और सोविनियर शॉप पर देखने को मिली।

यहां से हम सीफेल्ड स्थित टायरॉल अल्पेनहॉफ़ होटल में पहुंचे। यह होटल अभी तक के होटलों की चकाचौंध से अलग था। चारों ओर पहाड़ों और शांत प्राकृतिक वातावरण से घिरा हुआ। इसमें कर्मचारियों के नाम पर केवल दो जने ही दिखे। डिनर करने के बाद हम इस छोटे से क्षेत्र में घूमने निकल गए। रविवार का दिन होने से अधिकांश होटल, रेस्त्रां और दुकाने बंद थी। इक्का-दुक्का लोग आते जाते दिख जाते। लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा कि मन नहीं भर रहा था। यही लगता रहा कि काश यहीं बस जाते। यहां शीतकालीन ओलंपिक की स्कीइंग प्रतियोगिताएं भी हो चुकी हैं।

 

 

 

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